28 मई को जारी एक चिट्ठी ने बिहार में सियासी तूफान खड़ा कर दिया है. इसमें आरएसएस और उसके अन्य संगठनों से जुड़े नेताओं की गतिविधियों का ब्योरा देने का निर्देश दिया गया था. मोदी सरकार-2 के शपथ ग्रहण से दो दिन पहले 28 मई को जारी इस चिट्ठी में 'अति आवश्यक' शब्द का इस्तेमाल किया गया था. वहीं, इसमें डेडलाइन 3 जून का दिया गया था. जाहिर है इस चिट्ठी के सामने आने से बीजेपी के नेता, नीतीश कुमार की नैतिकता पर ही सवाल खड़े कर रहे हैं. बीजेपी सांसद और आरएसएस से जुड़े रहे राकेश सिन्हा ने कहा है कि बिहार सरकार के आरएसएस से जुड़े लोगों के बारे में जानकारी जुटाने का आदेश नैतिक रूप से गलत था. वहीं, बीजेपी के MLC सच्चिदानंद राय ने कहा कि जिस दिन चुनाव खत्म हुए उस दिन से ही नीतीश कुमार की मंशा साफ है. सच्चिदानंद राय ने कहा कि 19 मई को चुनाव खत्म होने के साथ ही जेडीयू ने अनच्छेद-370, 35ए और राम मंदिर जैसे मुद्दों पर जेडीयू का स्टैंड स्पष्ट करते हुए यह बता दिया था कि आने वाले समय में यह सहयोगी पार्टी मुश्किल खड़ी करेगी. ऐसे में यह न तो गठबंधन के लिए सही है और न ही बिहार के लिए. मुझे उम्मीद है कि शीर्ष नेतृत्व इसपर जरूर संज्ञान लेगा. बीजेपी युवा मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष संतोष रंजन राय ने इस मामले को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साधा है. उन्होंने अपने ट्वीट किया, 'कहां घिनौनी राजनीति में लगे पड़े हैं माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी…समाज की सेवा में लगे संघ एवं संघ के अंगों की जांच करवा कर क्या मिलेगा? बिहार बाढ़, अपराध और बेरोज़गारी की चपेट में है उसका संज्ञान लीजिए…कुछ काम कीजिए. आपके पास नया आइडिया ख़त्म हो गया है.' बहरहाल, बीजेपी के नेताओं द्वारा नीतीश कुमार को कठघरे में खड़ा करने के बीच जेडीयू ने इस मामले में चुप्पी साध ली है. बिहार प्रदेश जेडीयू अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ने कहा कि मुझे इस बारे में कोई जानकारी नहीं, मैं इस बारे में कुछ नहीं बता सकता. कांग्रेस ने नीतीश सरकार के फैसले की सराहना की है. पार्टी के प्रवक्ता प्रेमचंद मिश्र ने कहा कि इस खुलासे के बाद भी अगर बीजेपी-जेडीयू की सरकार बनी रहती है तो ऐसा माना जाएगा कि यह सुशील मोदी की शह पर हो रहा है. आशंका है कि इस खुलासे के बाद बिहार में राष्ट्रपति शासन लगे, लेकिन आरएसएस की गतिविधि की जांच के फैसले को लेकर हम सीएम को धन्यवाद देते हैं.
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