बजट सत्र 2018-19 का समापन हो गया. 5 मार्च से शुरू हुए इस सत्र में कुल 23 बैठकें निर्धारित की गईं थीं. बजट सत्र का पहला हिस्सा 29 जनवरी से शुरू होकर 9 फरवरी तक चला, जिसमें कुल 8 बैठकें हुईं. इस तरह 68 दिनों से इस बजट सत्र में कुल 31 बैठकें तय थीं. इस दौरान लोकसभा में करीब 28 विधेयक पेश किए जाने थे वहीं राज्यसभा के एजेंडे में 39 विधेयक शामिल थे. लोकसभा में सिर्फ 5 विधेयक ही पारित किए जा सके जिनमें वित्त विधेयक भी शामिल है. वहीं राज्यसभा से सिर्फ एक ग्रेच्युटी भुगतान संशोधन विधेयक 2017 ही पारित हो सका. कामकाज के लिहाज से यह सत्र बीते 10 साल का सबसे हंगामेदार सत्र साबित हुआ. सत्र के दौरान सत्ता पक्ष और विपक्ष में लगातार गतिरोध की स्थिति बनी रही और कार्यवाही को एक दिन में कई-कई बार स्थगित करना पड़ा.लोकसभा की कार्यवाही बीते 15 दिनों से औसतन 10-15 मिनट ही चल पाई है. सदन में जब से अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया गया तब से एक भी दिन सदन ऑर्डर में नहीं रहा. इसके चलते पूरे सत्र के दौरान विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव को सदन में नहीं रखा जा सका. राज्यसभा की कार्यवाही भी 10 से ज्यादा दिन तो सिर्फ 2 मिनट तक ही चल सकी है. बुधवार को राज्यसभा की सदन की कार्यवाही को हंगामे की वजह से 10 बार स्थगित करना पड़ा था. सांसदों ने विदाई भाषण के दिन जरूर सदन की कार्यवाही साढ़े तीन घंटे तक चली थी.पूरे बजट सत्र के दौरान लोकसभा की कुल 29 बैठकों में करीब 23 फीसदी कामकाज हुआ जबकि राज्यसभा की 30 बैठकों में 28 फीसदी कामकाज हो सका. कामकाज के मामले में बीते साल दोनों सदनों ने रिकॉर्ड बनाया था जब बजट सत्र के दौरान लोकसभा में 108 फीसदी और राज्यसभा में 86 फीसदी कामकाज हुआ था.इस सत्र को चलाने में अब तक 190 करोड़ से ज्यादा रुपये खर्च हुए हैं. इसमें सांसदों के वेतन-भत्तों, अन्य सुविधाओं और कार्यवाही से संबंधित इंतजाम पर खर्च शामिल है. लेकिन इतनी भारी-भरकम राशि खर्च होने के बावजूद संसद को सुचारू रूप से नहीं चलाया जा सका.इससे पहले 2012 के मॉनसून सत्र को संसदीय इतिहास का सबसे हंगामेदार सत्र माना गया. इस दौरान तत्कालीन यूपीए सरकार कोयला घोटाले के आरोपों से घिरी थी और विपक्षी दल सरकार पर लगातार हमले कर रही थी. इसके बाद टूजी मामले और नोटबंदी लागू किए जाने के बाद भी संसद का सत्र हंगामेदार रहा था. लेकिन इस बार का बजट सत्र बीते सभी रिकॉर्ड तोड़ते हुए कामकाज के लिहाज से संसद का सबसे खराब सत्र माना जा रहा है.संसद सत्र हंगामे की भेंट चढ़ने के बाद एनडीए सांसदों ने बजट सत्र का वेतन और भत्ता नहीं लेने का फैसला किया है. केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार ने लोकसभा में कहा कि सांसदों का काम संसद में आकर लोक हित के मुद्दों को उठाना होता है, लेकिन संसद में कोई कामकाज नहीं होने की वजह से इन 23 दिनों का वेतन भत्ता नहीं लेने का फैसला किया है. यह पैसा देश की जनता की सेवा के लिए हमें मिलता है और काम नहीं होने की वजह से हमें यह लेने का कोई हक नहीं है.
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