Breaking News

आवश्यकता है “बेखौफ खबर” हिन्दी वेब न्यूज़ चैनल को रिपोटर्स और विज्ञापन प्रतिनिधियों की इच्छुक व्यक्ति जुड़ने के लिए सम्पर्क करे –Email : [email protected] , [email protected] whatsapp : 9451304748 * निःशुल्क ज्वाइनिंग शुरू * १- आपको मिलेगा खबरों को तुरंत लाइव करने के लिए user id /password * २- आपकी बेस्ट रिपोर्ट पर मिलेगी प्रोत्साहन धनराशि * ३- आपकी रिपोर्ट पर दर्शक हिट्स के अनुसार भी मिलेगी प्रोत्साहन धनराशि * ४- आपकी रिपोर्ट पर होगा आपका फोटो और नाम *५- विज्ञापन पर मिलेगा 50 प्रतिशत प्रोत्साहन धनराशि *जल्द ही आपकी टेलीविजन स्क्रीन पर होंगी हमारी टीम की “स्पेशल रिपोर्ट”

Tuesday, April 29, 2025 12:25:39 AM

वीडियो देखें

राजनैतिक व्यंग्य-समागम : 1. ‘उन्हें’ नहीं पता कि ग़ुस्सा किस पर करें! : राजेंद्र शर्मा

राजनैतिक व्यंग्य-समागम : 1. ‘उन्हें’ नहीं पता कि ग़ुस्सा किस पर करें! : राजेंद्र शर्मा

 

भाई ये गजब देश है। पहलगाम में आतंकवादी हमला हो गया। अट्ठाईस लोग मारे गए और डेढ़ दर्जन से ज्यादा गंभीर रूप से घायल। नाम पूछकर और धर्म देखकर, गोली मारी। फिर भी पब्लिक है कि ठीक से गुस्सा तक नहीं है। लोग गुस्सा भी हो रहे हैं तो बच-बचकर। और तो और, जिन्होंने अपने परिजन खोए हैं, वह भी एक ही सांस में आतंकवादियों को गाली भी दे रहे हैं और कश्मीरियों के गुन भी गा रहे हैं।

 

और कश्मीरी नेताओं के नहीं, मामूली कश्मीरियों के गुन गा रहे हैं। टट्टू वालों का, टूर गाइडों का, छोटे-मोटे सामान की दुकान चलाने वालों का, टैक्सी ड्राइवरों का, होटल वालों का शुक्रिया अदा कर रहे हैं कि उन्होंने संकट के वक्त में बड़ा साथ दिया। जो बच गए, उन्हीं ने तो मौत के मुंह से बचा के निकाला। अपनी जान की परवाह नहीं की, अपरिचित सैलानियों को, घायलों को, औरतों को, बच्चों को बचाकर निकाला। जब गोलियां चल रही थीं, तब भी खुद बचकर भागने के बजाए, पीठ पर उठाकर घायलों को बचाया।

 

अजब देश है, जहां आंसुओं के बीच से भी मौका निकालकर भुक्तभोगी, स्थानीय कारोबारियों, दुकानदारों, व्यापारियों तक की तारीफ कर रहे हैं, जिन्होंने अपना नफा-नुकसान नहीं देखा, दर्द से तड़पते सैलानियों को इस कदर अपना लिया कि उनकी हमदर्दी में, कई दिन सब काम-काज बंद ही रखा। मारने वाले कश्मीरी थे कि नहीं, यह तो पता नहीं, पर खुद को मुसलमान जरूर कहते थे। पर मदद करने वाले पक्के कश्मीरी भी थे और मुसलमान भी। मारने वाले अगर चार या छह थे, हालांकि उनके पास बंदूक की राक्षसी ताकत थी, लेकिन जो मदद को बढ़े हाथ हजारों थे, जिनके पीछे इंसानियत का जज्बा था। फिर मारने वालों की वजह से, बचाने वालों पर गुस्सा कैसे करें? और वह भी तब, जबकि मरने वालों में टट्टू चलाने वाला सैयद आदिल हुसैन शाह भी था, जो सैलानियों को बचाने के लिए आतंकवादियों से ही भिड़ गया और मरते-मरते आतंकवादियों का मुसलमान का नकाब फाड़कर, उनकी पहचान फकत आतंकवादी की कर गया। तब सिर्फ गुस्सा करें, तो कैसे? गुस्से के साथ ही जो प्यार आ रहा है, उसका क्या करें?

 

फिर भी देश गजब सही, पर देश में बहुत से अजब लोग भी हैं। ये परेशान हैं कि गुस्सा करें, तो किस पर? सिर्फ नकाबपोश आतंकवादी पर गुस्सा करें, तो गुस्सा निकालें किस पर? आस-पड़ोस का कोई तो होना चाहिए, जिस पर गुस्सा कर सकें! अफसोस कि हिंदुओं का खून, उतना नहीं खौला, जितना खौलना चाहिए था और सारे नफरती कड़ाह चढ़ाने के बाद भी हिंदुओं का खून उतना नहीं खौला। फिर भी उनकी मेहनत भी पूरी तरह अकारथ नहीं हुई और कुछ गर्मी तो हिंदुओं के खून ने दिखाई ही।

 

भुक्तभोगी अपीलें करते रह गए कि आम कश्मीरी मुसलमानों को दोषी बनाकर, गुस्से के नाम पर आतंकवादियों के मंसूबों को उनकी गोलियों से आगे बढ़ाने का काम कोई नहीं करे, पर खून की गर्मी जोर मारे बिना नहीं रही। नाराजगी थी आतंकवादियों से और निकाल दी पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा वगैरह में जगह-जगह कश्मीरी छात्रों पर ; छोटा-मोटा काम करने वाले आम कश्मीरियों पर। जहां-जहां राज में भगवाधारी, वहां-वहां उतनी ही मति गयी मारी!

 

देश अजब-गजब है, तो राज करने वाले और भी गजब हैं। पहलगाम के हमले की खबर मिली, तो मोदी जी अपनी विदेश यात्रा अधूरी छोड़क़र बीच में से ही वापस लौट आए। पर कश्मीर नहीं आए। शाह साहब को पहले ही कश्मीर भेज चुके थे, वह भी सब को बताकर। शाह साहब भी बिना वक्त गंवाए मरने वालों को सरकारी श्रद्धांजलि देने पहुंचे, लाल कालीन पर चलकर। शाह साहब मीटिंग-मीटिंग खेलकर दिल्ली लौट भी आए, पर मोदी जी कश्मीर नहीं आए। कश्मीर तो कश्मीर, मोदी जी तो पहलगाम पर अपनी सरकार की बुलायी सर्वदलीय बैठक तक में नहीं आए।

 

मोदी जी आए बिहार में मधुबनी में। बिहार में जल्द ही चुनाव भी तो होना है। सोचा, पब्लिक का दिमाग गर्म है, बेनिफिट ले सकते हैं। फिर क्या था, आंतकवाद पर जमकर बरसे। मधुबनी में हिंदी में तो हिंदी में, अंगरेजी में भी बरसे, ताकि इंग्लैंड-अमरीका तक सुनाई दे। आतंकवादियों को और उनके मददगारों को मिट्टी में मिला देने का एलान कर दिया। ऐसी सजा देने की धमकी दे डाली, जिसकी किसी ने कल्पना तक नहीं की होगी। फिर बिहार के लिए तोहफों की एक और किस्त का एलान किया। दो रेलगाड़ियों को हरी झंडी दिखाई। मंच पर नीतीश कुमार के साथ खी-खी की और दिल्ली आ गए। राहुल गांधी कश्मीर हो आए, पर मोदी जी कश्मीर नहीं आए। वैसे, मणिपुर तो उनका दो साल से इंतजार कर रहा है, कश्मीर का नंबर तो अभी चार-छह रोज पहले ही लगा है!

 

गजब देश है, तो मोदी जी के विरोधी भी कम अजब नहीं हैं। पहलगाम की खबर आने के बाद से, एक ही बात का शोर मचा रहे हैं कि यह तो सुरक्षा चूक हुई। फिर खुद ही सवाल करने लग जाते हैं कि इस सुरक्षा चूक के लिए जिम्मेदार कौन है? बेचारी सरकार कह रही है कि दु:ख है, गहरा दु:ख है, पर ये चूक और उसकी जिम्मेदारी पर ही अड़े हुए हैं। विपक्ष वालों ने चूक का इतना शोर मचाया, इतना शोर मचाया कि बेचारे छोटे वाले मंत्री, किरण रीजिजू से एक चूक तो करवा ही ली। अगले के मुंह से निकल ही गया कि चूक हुई थी, सब कुछ अच्छा चलने के बावजूद, कुछ चूक हुई थी! क्या फायदा हुआ? बेचारे को बाद में वीडियो का चूक वाला हिस्सा काटकर बाहर करना पड़ा। पर तब तक जुबान से निकले हुए शब्द, वह भी वीडियो में दर्ज शब्द, दूर-दूर तक फैल चुके थे।

 

खैर! जैसे चूक की बात मानकर भी सरकार को वापस लेनी पड़ी है, वैसे ही कहीं जिम्मेदार कौन, का अपना जवाब भी सरकार को वापस नहीं लेना पड़ जाए।

 

सर्वदलीय बैठक में सरकार ने कहा कि बैसारण घाटी में कोई सुरक्षा नहीं थी, क्योंकि सरकार को किसी ने बताया ही नहीं था कि वहां सैलानी जा रहे थे। सारी गलती मारने वालों के बाद अगर मरने वालों की नहीं भी मानी जाए, तब भी होटलवालों और टूर ऑपरेटरों की जरूर थी ; सरकार की इजाजत के बिना ही घाटी को सैलानियों के लिए खोल दिया! पर पता नहीं क्यों पहलगाम वाले और जम्मू-कश्मीर की सरकार वाले इस पर अड़े हुए हैं कि बैसारण की घाटी तो हमेशा से, ज्यादा बर्फ के टैम को छोडक़र, पूरे साल ही खुली रहती है। ना किसी से इजाजत ली जाती है, ना किसी को जानकारी दी जाती है। सरकार तो इतना बताए कि वहां से सीआरपीएफ किस के कहने पर हटाई गयी थी। दिल्ली की सरकार को अगर यह बहाना भी वापस लेना पड़ गया, तो सर्वदलीय बैठक में से बचेगा क्या ; बाबा जी का ठुल्लू। पर ठुल्लू बचा कैसे कहूं!

*****

 

*2. नफरत के चौकीदार : विष्णु नागर*

 

अगर आँखें हैं और दिल- दिमाग भी है, तो भलाई इसी में है कि आँखें बंद रखिए। आँखें बंद नहीं रख सकते, तो दिल और दिमाग के कपाट बंद रखिए और उनकी चाबी मोदी जी, अमित शाह जी, योगी जी प्रजाति के सज्जनों-दुर्जनों को देकर सुखी रहिए। इन पर भरोसा न हो, तो चाबी नागपुर जाकर भागवत जी को सौंप आइए। नागपुर में खतरा ये है कि वे आपकी चाबी कभी लौटाएँगे नहीं। लौटाएंगे तो ये भी नहीं, मगर इनके साथ अच्छाई ये है कि कल जनता ने इनकी छुट्टी कर दी (और करेगी ही) तो चाबी आपके पास लौट आएगी। नागपुर भेज दी, तो फिर हमेशा के लिए उनकी हो गई। तब आप यह भी भूल जाएँगे कि आपके दिल और दिमाग के दरवाजे पर ताला जड़ा है और उसकी चाबी नागपुर में है!

 

आँखें भी खुली रखना चाहते हैं और दिल- दिमाग के कपाट भी, तो केवल दुख -दर्द पाएँगे। तब आपको दिखाई देगा कि भारत की आधी आबादी की मासिक आमदनी पाँच हजार रुपये से भी कम है और उसके पास स्थायी संपत्ति जैसी कोई चीज नहीं है। तब आप रोज गरीबों के घरों-दुकानों को बुलडोजर से‌ रौंदते हुए पाएंगे।तब आप यह जानकर चौंक जाएंगे कि कोरोना काल में किसानों से ज्यादा आत्महत्याएं व्यापारियों ने की थीं। तब आपको उत्तर प्रदेश के मंत्री संजय निषाद के इस बयान में आज की भाजपाई राजनीति का आईना दिखाई देगा कि मैं सात दरोगाओं के हाथ -पैर तुड़वाकर उन्हें गड्ढे में फिंकवा कर यहां पहुंचा हूं और ऐसा कहनेवाले किसी मंत्री, किसी सांसद, किसी विधायक का बिगड़ता कुछ नहीं, बन जाता है। वह शीर्ष पर पहुंच जाता है। हत्यारों का स्वागत अब फूल-मालाएं पहना कर होता है।

 

तब आपको इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस मिश्रा के इस निर्णय से बू आने लगेगी कि किसी नाबालिग लड़की के स्तनों को झिंझोड़ना, उसके पाजामे की नाड़ी तोड़ना, उसे खींचकर पुलिया के नीचे ले जाना और उसकी चीखें सुनकर कुछ लोगों द्वारा अपराधियों को ऐसा करते हुए देख लेना बलात्कार या बलात्कार की कोशिश का मामला नहीं बनता। तब आपको जज साहब का यह फैसला सुनने का साहस करना पड़ेगा कि बलात्कार के लिए बलात्कारी नहीं, बलात्कृता जिम्मेदार होती है। तब आपको विश्व हिन्दू परिषद-बजरंग दल आदि हिंदूवादी संगठनों की रोज-रोज की अखिल भारतीय गुंडागर्दी दिखाई देगी। तब आपको रोज-रोज मुसलमानों के साथ ओछा और घृणित व्यवहार करते वे खाते -पीते लोग दिखाई देंगे, जिनके पास सब कुछ है, बस दिल और दिमाग नहीं है। तब इस बात पर हँसी आएगी कि पश्चिम बंगाल की जिस जनता ने भाजपा को उपयुक्त स्थान पर लात मार दी थी, उस जनता के साथ चट्टान की तरह खड़े रहने की बात भाजपा अध्यक्ष कर रहे हैं। जब मोदी जी कहेंगे कि विपक्ष बेहद नफरत फैला रहा है, तब यह दिखाई देगा कि इनकी नफरती जमात ने इतनी नफरत फैलाई है कि संसार भर में इनकी थू- थू हो रही है, जबकि ये इस झूठ को बार-बार दिखाना चाहते हैं कि मोदी जी के सत्ता में आने के बाद भारत का सम्मान दुनिया भर में बढ़ा है, कि मोदी जी भगवान विष्णु का अवतार हैं, कि वह शिवाजी के अवतार हैं। तब आपको याद आएगा कि इन्होंने भुखमरी में हमें दुनिया के सबसे गरीबतम देशों की कतार में लाकर खड़ा कर दिया है। प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में भी हमारा यही हाल कर दिया है। तब दीपावली पर अयोध्या में 12 या 15 लाख दिये — जो सरकारी खर्च पर करोड़ों रुपये फूँक कर जलाए गए थे — उनके पीछे का घना अँधेरा दिखाई देने लगेगा और उसमें गरीब औरतें, मर्द, बच्चे दियों में बचे हुए तेल की चंद बूँदें बटोरते हुए दिखाई देने लगेंगे। तब आपको कोरोना के दौर में गंगा किनारे दबी लाशों के वे दृश्य याद आएंगे, जिन्हें लाचार गरीबों के परिजनों की वहां छोड़ दिया था। तब रोज़-रोज़ हिंदू-हिंदू करनेवाले भगवा चोले के उस नेता की सूरत याद आएगी, जब उसने कुंभ में कुचल कर मारे गए हिंदू तीर्थयात्रियों की संख्या छुपाई थी और उनके परिजनों के साथ निकृष्टतम व्यवहार किया था। तब याद आएगा कि यही थे, जो न जुमे की नमाज़ सुकून से पढ़ने दे रहे, न हिंदुओं को होली खुशी से मनाने दे रहे थे। इन्हीं के राज में मस्जिद को तिरपाल से ढंकना पड़ा था। इन्हीं के राज में मस्जिदों पर भगवा फहराने की छूट है।

 

याद आएगा कि देश के मुखिया ने नोटबंदी करके देश की अर्थव्यवस्था को हमेशा के लिए चौपट कर दिया था।उसके बाद वह कभी ठीक से उठ नही़ं पाई, गिरती ही चली गई। एक बार तो शून्य से भी 27 तक नीचे आ गई थी। तब आपको दिखाई देगा कि ‘संविधान दिवस‌ ‘ का नाटक करके ये संविधान की धज्जियां उड़ाने का कुकर्म छुपाना चाहते हैं। तब दिखाई देगा कि हिंदुस्तान की सबसे नाकारा सरकार ने सबसे सफल सरकार की छवि बनाने के लिए दुनिया का वह कौन-सा झूठ है, जो नहीं बोला! आर्थिक मंदी दरवाजा खटखटा रही है और ये औरंगजेब की कब्र मिटाने के लिए दंगे करवा रहे हैं! उस पर शौचालय बनवाने की सिफारिश कर रहे हैं। तब समझ में आएगा कि ये कुछ नहीं हैं, नफ़रत के चौकीदार हैं। देश और देशभक्ति तो इनके लिए सत्ता भोगने का बहाना है।

 

यह तो जो हुआ है, जो हो रहा है, उसकी एक छोटी सी बानगी है, इसलिए आँखें बंद रखिए, मगर आँखें बंद करने से ही काम नहीं चलेगा। कान भी बंद रखने होंगे। ये आँखें जो देख चुकी हैं, ये कान जो सुन चुके हैं, उसे दुनिया के सामने रखने से बचने के लिए मुँह भी बंद रखना होगा। घास चरती गाय, कपड़े कुतरता चूहा, कबूतर या मच्छर जैसा कुछ बनना पड़ेगा। तैयार हैं आप इसके लिए? हैं, तो फिर आप इनके बड़े काम के हैं। तब आप आइए और इन्हें चुनाव जिताते चले जाइए। ये बहुत बेचैन हैं। इन्हें बिहार का चुनाव अवश्य जिताइए।2047 में ‘विकसित भारत’ के झांसे में आकर मोदी-मोदी का जाप करते जाइए!

 

आइए जी मंदिर पर मंदिर बनवाते जाइए और मस्जिदों के नीचे मंदिर ही मंदिर निकालते जाइए।आइए इतनी नफ़रत फैलाइए कि दुनिया में भारत का डंका इतनी जोर-जोर से बजे कि फूट जाए! जैन मंदिर भी न बचने पाए!

 

राजेंद्र शर्मा वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोकलहर’ के संपादक हैं। विष्णु नागर स्वतंत्र पत्रकार और साहित्यकार हैं।

व्हाट्सएप पर शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *