रिपोर्ट : संजय पराते
यह दुख की बात है कि पहलगाम में पाक-प्रायोजित आतंकी हमले के बाद भाजपा और संघी गिरोह पूरे देश में मुस्लिम विरोधी माहौल बना रहा है। इसके नतीजे में जगह-जगह कश्मीरियों पर और मुस्लिमों पर हमले हो रहे है।
इस बात को साफ तौर पर समझने की जरूरत है कि हमारी असली लड़ाई पाकिस्तान के सत्ताधारियों और आतंकवादियों से है, मुस्लिमों से नहीं और न ही पाकिस्तान की उस जनता से, जो हमारी तरह ही बेरोजगारी, भूख, गरीबी, ज़हालत और सरकारी दमन की भट्टी में जल रही है। दोनों ओर की आम जनता की लड़ाई तो एक है, लेकिन दोनों ओर की सत्ताधारी पार्टियां अपने राजनैतिक स्वार्थों के लिए उसका इस्तेमाल कर रही है।
इस आतंकी हमले के इतने दिनों बाद भी हमारे परिधान मंत्री के श्रीचरण कश्मीर में नहीं पड़े हैं। वे प्रचार मंत्री बनकर बिहार में आतंकवादियों को ललकार रहे हैं, पाकिस्तान पर गरज रहे हैं, लेकिन बरसेंगे कब, इसका किसी को अता-पता नहीं है। संघी मीडिया इस आतंकी हमले को हिंदुओं पर मुस्लिमों के हमले का रूप देने में लगा है। सबको पता है कि नफरत की जो फसल बोई जा रही है, बिहार चुनाव में कटेगी और संघ-भाजपा को सत्ता के और करीब ले जायेगी।
पाकिस्तान और आतंकवाद के खिलाफ युद्ध छेड़ने की घोषणा भी इसी तरह की है। पूरे देश में युद्ध का उन्माद फैलाया जा रहा है, पुलवामा की तरह। तब भी संघी गिरोह इसी तरह गरजा था। उसने पाकिस्तान और आतंकवादियों को नेस्तनाबूद करने की कसमें खाई थीं, ठीक वैसी ही, जैसी पहलगाम मामले में खाई जा रही है। लेकिन पुलवामा की असलियत आज तक जनता के सामने नहीं आई, पुलवामा के आतंकी हमले की जिम्मेदारी आज तक मोदी सरकार ने स्वीकार नहीं की। ऐसा ही हाल पहलगाम पर हमले का होने वाला है।
भारत में अटल राज की कृपा से पाकिस्तान परमाणु संपन्न देश बन चुका है। संघी गिरोह की विदेश नीति हमेशा विफल रही है। मोदी राज भी इसी का प्रमाण है। आज हमारे देश की किसी भी पड़ोसी देश से अच्छी मित्रता नहीं है। इसलिए यदि हमारे न चाहने के बावजूद कोई युद्ध होता है, तो न चीन हमारा समर्थन करने वाला है और न अमेरिका हमारे साथ आने वाला है। भारत की सैन्य शक्ति पाकिस्तान पर कितनी भी भारी क्यों न हो, उसकी परमाणु संपन्नता उसे हमारी बराबरी पर ला खड़ा करती है।
पिछले दस सालों में निजीकरण की नीतियों के कारण रक्षा उद्योग में हमने अपनी आत्मनिर्भरता खो दी है। हमने शोध और विकास पर जितना भी खर्च किया हैं, जितनी भी नई तकनीक ईजाद की है, वह मस्जिदों को खोदकर मंदिरों को ढूंढने के लिए तो कारगर है, लेकिन दुश्मन देश की सेनाओं का और उसकी सैन्य तकनीक का मुकाबला करने के लिए नहीं। गोदी मीडिया से परे की रिपोर्ट बता रही है कि पिछले दस सालों से हम मंदिर-मस्जिद, हिंदू-मुस्लिम का खेल ही खेलते रहे, पाकिस्तान उन्नत अस्त्र-शस्त्रों और तकनीक से लैस होता गया है। अपनी सेनाओं को अग्निवीरों को ठेके पर देने का नतीजा यह हुआ है कि जल, थल, वायु की तीनों सेनाएं नियमित और प्रशिक्षित सैनिकों की भारी कमी से जूझ रही है।
युद्ध किसी का भला नहीं करता — और युद्धरत देशों की आम जनता का भला तो करता ही नहीं। परमाणु संपन्न देशों की लड़ाई का नतीजा आम जनता के लिए सिवा तबाही के और कुछ नहीं होगा। लेकिन आम जनता की चिंता किसको है? दोनों ओर गद्दी की चिंता है। मोदी सरकार ने पाकिस्तान को पानी रोकने का जो फैसला लिया है, उससे न तो किसी आतंकी की और न ही किसी पाकिस्तानी नेता की नल की टोंटी सूखने वाली है। यह फैसला पाकिस्तान की जनता को प्यासा मारकर बदला लेने का फैसला है। हालांकि इस फैसले पर अमल उतना आसान नहीं है, जितना मोदी सरकार सोचती है। लेकिन इससे साफ हो जाता है कि मोदी सरकार के निशाने पर पाक सरकार और आतंकवादी नहीं, पाकिस्तान का हिन्दू-मुस्लिम अवाम है। इस फैसले के बदले में पाकिस्तान ने जो एयर स्ट्राइक की है, उसका हमारी देश की अर्थव्यवस्था पर तुरंत प्रभाव पड़ने जा रहा है। कुल मिलाकर, दोनों ओर के सत्ताधारियों के फैसले से महंगाई बढ़ने वाली है और बेरोजगारी और गरीबी भी ; यहां भी और वहां भी। आज युद्ध दोनों ओर के सत्ताधारियों की जरूरत है, सत्ता में बने रहने के लिए। देखना केवल यह है कि यह युद्ध किस रूप में होता है।
लेकिन क्या देश की जनता को विभाजित और कमजोर करके यह युद्ध लड़ा जाएगा? क्या भारत-पाकिस्तान युद्ध को देश के अंदर हिंदू-मुस्लिम युद्ध में बदलने की कोई तैयारी चल रही है? पिछले एक सप्ताह के घटनाक्रमों और उसमें सरकार और प्रशासन के हस्तक्षेप को देखा जाएं, तो ऐसा लगता है कि भारत-पाकिस्तान युद्ध प्रत्यक्ष रूप से हो, चाहे न हो, लेकिन देश के मुस्लिमों के खिलाफ एक युद्ध छेड़ ही दिया गया है। संघी गिरोह एक ही सांस में ‘पाकिस्तान मुर्दाबाद’ का नारा लगा रहा है, पुतले जला रहा है और उसी सांस में देश के मुस्लिमों के खिलाफ जहर उगल रहा है, उन पर हमले कर रहा है। भोपाल के हबीबगंज रेलवे स्टेशन परिसर में नशे में धुत युवकों ने रेलवे पुलिस के हेड कांस्टेबल दौलत खान पर केवल उनके नाम की पट्टी देखकर उन पर हमला कर दिया। साफ है कि अब पुलिस और सैनिक भी संघी गिरोह के सांप्रदायिक हमलों से ऊपर नहीं है। अब स्थिति यह हो गई है कि एक हिंदू डॉक्टर अपने मुस्लिम मरीज का इलाज करने से मना कर रहा है। कितनी शर्मनाक बात है यह।
संघी गिरोह के हमले से तो अब खुद संघ के प्रति निष्ठावान लोग भी नहीं बचे हैं। जनसत्ता के संपादक रहे राहुल देव की यह टिप्पणी सोशल मीडिया पर तैर रही है — “बेटी के साथ अपनी डीपी हटा दी है, उससे पूछकर, क्योंकि उसकी इच्छा से लगाई थी। फेसबुक सहित सोशल मीडिया पर ‘राष्ट्रवादी सनातनी देशभक्तों’ की अश्लील निगाहों और टिप्पणियों का शिकार बेटी अब और न बने इसलिए। इस संस्कारी प्रजाति के सदस्य किसी की मां, पत्नी, बेटी पर अपनी कुत्सा बरसाने में भी संकोच नहीं करते। यहीं आशा करता हूं कि वे अपने परिवार-परिजनों की महिलाओं को बख्श देते होंगे।” राहुल देव का संघ के प्रति झुकाव जग जाहिर है। लेकिन उससे क्या? नफरत और कुत्सा की राजनीति किसी को नहीं छोड़ती, न किसी मुस्लिम को, न हिन्दू को। सूरत के दंगों में गर्भ में खेल रहे उस अजन्मे बच्चे को भी नहीं, जिसकी मां के पेट में तलवार घुसेड़कर भ्रूण को तलवार की नोंक पर नचाया गया था। उसका अपराध केवल यही था कि वह किसी गैर हिंदू मां के पेट में पल रहा था। इस कुत्सा की आग हिंदुओं यह भी पहुंचनी ही थी, पहुंच रही है। राहुल देव के साथ मेरा भी सिर शर्म से झुका हुआ है, क्योंकि नाम से एक हिंदू पहचान के बावजूद मेरा भी मैसेंजर ऐसे ही धमकियों और गलियों से भरा पड़ा है और मैं ऐसे सभ्य सनातनियों के खिलाफ कुछ भी करने में असहाय हूं। राहुल जी का दुख और क्षोभ मेरा अपना है।
भागलपुर, भिवंडी, मालेगांव, अलीगढ़, बनारस, मेरठ, मुरादाबाद, मुज़फ्फरनगर में हुए दंगों का इतिहास बताता है कि इन दंगों को आयोजित-प्रायोजित करने में भाजपा-संघ का कितना बड़ा हाथ था। ये सब दंगे मुस्लिमों की घरेलू अर्थव्यवस्था को तोड़ने और उनके उद्योगों पर हिंदू पूंजीपतियों का कब्जा कराने के उद्देश्य से किए गए थे, यह रहस्य की बात नहीं है। भाजपा राज में आज भी मुस्लिमों की आजीविका पर ही सुनियोजित रूप से हमले हो रहे हैं। दूसरी ओर, मालेगांव बम धमाका, समझौता एक्सप्रेस धमाका, मक्का मस्जिद धमाका आदि घटनाओं से इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि मुस्लिमों को आतंकवादी साबित करने के लिए संघी गिरोह ने खुद ही इन आतंकवादी घटनाओं को अंजाम दिया था। सबूत इतने पुख्ते हैं कि मोदी के राज में, मोदी के अधीन काम करने वाली जांच एजेंसी, एनआईए को भाजपा की पूर्व सांसद और कथित साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और सात अन्य हिन्दुत्ववादी आतंकवादियों के लिए फांसी की सज़ा की मांग करनी पड़ी है। नफरत की राजनीति को पालते-पोसते ये इतने गिर चुके हैं कि खुद ही आतंकी बन चुके हैं और जिंदा बम बनकर घूम रहे हैं। ये सभी दंगे और आतंकी घटनाएं, जिसमें संघी गिरोह की सीधी संलिप्तता है, और उसका मुस्लिम-विरोध, अंतर्राष्ट्रीय प्रेक्षकों की नजर में है। इससे भाजपा और मोदी सरकार का आतंकवाद के खिलाफ लड़ने और पहलगाम पर हमला पाक-प्रायोजित होने का दावा कमजोर पड़ता है।
मोदी सरकार की इस कमजोरी का अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति के स्तर पर पाकिस्तान पूरा फायदा उठा रहा है। उसने अपनी ओर से पहलगाम की घटना की “निष्पक्ष अंतरराष्ट्रीय जांच” करने की मांग की है, जिसे चीन ने अपना समर्थन दिया है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने 25 अप्रैल को सर्व-सम्मति से एक प्रस्ताव पारित करके पहलगाम में आतंकवादी हमले की निंदा की है, लेकिन इस हमले में पाकिस्तान और लश्कर-ए-तैयबा के हाथ होने के लगभग पुष्ट प्रमाणों के बाद भी प्रस्ताव में उसके नाम का उल्लेख नहीं किया है। संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के खिलाफ भारत के गर्जन-तर्जन के बावजूद प्रस्ताव पर इसका कोई असर नहीं दिखा है। ब्रिटेन, फ्रांस, अमेरिका और रूस जैसे भारत के मित्र देशों ने भी भारत के पक्ष में कोई रुचि नहीं ली है। कूटनीति के स्तर पर यह भारत की पराजय ही है। ऐसी परिस्थितियों में किसी भी संभावित युद्ध की स्थिति में भारत को शायद ही किसी शक्तिशाली देश से सक्रिय समर्थन मिलेगा।
अच्छी बात यही है कि पहलगाम की घटना के बाद भाजपा जिस तरह का सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करना चाहती थी, वह अभी तक नहीं हुआ है। अच्छी बात यह है कि कश्मीर की हिंदू और मुस्लिम जनता और उनका प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टियां और संस्थाएं आतंकवाद की इस घटना के खिलाफ खुलकर, एकजुटता के साथ खड़ी हुई है। अच्छी बात यह है कि कश्मीर की सभी मस्जिदों में हमारे मुस्लिम भाईयों ने आतंकवाद की निंदा करते हुए पहलगाम हमले में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि दी है और पीड़ित परिवारों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की है। अच्छी बात यह है कि इस भीषण आतंकी समय में कश्मीर के मुस्लिम परिवारों के दरवाजे हर हिंदू के लिए खुले हुए हैं। अच्छी बात यह है कि इस घटना से मानवीयता, संवेदनशीलता के कई ऐसे चमकदार उदाहरण सामने आए हैं, जिसने हिंदू-मुस्लिम एकता की भावना को नई धार दी है और दोनों कौमों के बीच भाईचारे के नए संबंध विकसित हुए हैं। अच्छी बात यह है कि बिना किसी देरी के कश्मीर में फिर से सैलानियों की बहार है। आतंकवादियों का असली उद्देश्य इसी पर्यटन उद्योग को कुचलना और हिंदू-मुस्लिम का सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करना था। लेकिन सबसे बुरी बात यह है कि संघी गिरोह किसी भी अच्छी बात से कोई सबक लेना नहीं चाहता और अपने चुनावी फायदे के लिए पूरे देश को सांप्रदायिक रूप से विभाजित करने की ही नीति पर चल रहा है। नफरत और सांप्रदायिकता के आधार पर विभाजित देश किसी भी प्रकार के हमले का सामना नहीं कर सकता — न पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का और न अमेरिका प्रायोजित आर्थिक हमलों का। आज की सबसे बुरी खबर यह है कि संघ-भाजपा की सांप्रदायिक और साम्राज्यवादपरस्त नीतियों ने हमारे देश को कहीं का नहीं छोड़ा है।
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