आज मजदूर दिवस है हर साल 1 मई को मजदूर दिवस मनाया जाता है. यह दिवस उन लोगों के नाम समर्पित है जिन्होंने अपने खून पसीने से देश और दुनिया के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. किसी भी देश, समाज, संस्था और उद्योग में मजदूरों, कामगारों और मेहनतकशों का योगदान अतुलनीय है। कभी भारत को सोने की चिडिया कहा जाता था। हमारे देश के भूतपूर्व लालबहादुर शास्त्री ने जयजवान जयकिशान का नारा था। आज भी हमारे देश के मिट्टी की महक से पूरा विश्व अपनी तरफ खिंचा चला आता है। परंतु आज इस भयंकर महामारी के बवंडर मे सभी मजदूर किसान जहां के तहां फसें हुए है। उनके आंखों से गरीबी,मजबूरी,लाचारी का दर्द एवं पीडा. झलक रहा है। मैं एक लेखक एवं पत्रकार होने के कारण अपनी लेखनी से पाठकों को संतुष्ट कर सकता हूं परंतु इस ब्यथा पर देश एवं राज्य की सरकार को सोचना चाहिए अगर देश में किसान नहीं होता तो खेती भी नही होती। किसान एवं धनवान एक सिक्के के दो पहलू है। जिस दिन संसार में किसान नहीं रह जायेगा उसी दिन धनवान अस्तित्व खत्म हो जायेगा। हमारे देश के लोगों ने बहुत से भयंकर त्रासदी एवं युद्ध झेला है। और अंत मे सबसे अधिक नुकसान एक गरीब मजदूर किसान का परिवार इस दंश से जीवन भर उभर नही पाता है। भूख एवं गरीबों का दर्द आंखों से आंसू बनकर टपकता है। जिसके कारण लूट, हत्या एवं आत्महत्या, चोरी, वेश्यावृत्ति की घटनाएं जन्म लेने लगती है। आज जहां इस महामारी मे देश का राजा अपनी प्रजा के रक्षा के लिए नित्य नये संकल्प के साथ प्रयत्नरत है।
कुछ दिन पहले राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में यमुना नदी के एक पुल के नीचे रह रहे सैकड़ों प्रवासी मज़दूरों की तस्वीर सामने आई, इस जगह पर यमुना नदी एक नाले की तरह दिखती है और उसके तट पर कूड़े कचरे बिखरे रहते हैं। इन लोगों ने बताया कि वे तीन दिनों से भूखे प्यासे हैं, नहाए नहीं हैं क्योंकि जिस शेल्टर होम में वे रह रहे थे उसमें आग लग गई थी. हालांकि अब इन लोगों को दूसरे शेल्टर होम में भेजा गया है.
ऐसे ही पंजाब के लुधियाना शहर में फंसे महराजगंज जिले के बृजमनगंज ब्लाक के हाताबेला हरैया के रहने वाले प्रखर पूर्वांचल मीडिया से फोन पर वार्ता कर अपना हाल सुनाया वह अपने घर आना चाहते हैं। ऐसे ही आकडों के अनुसार केवल लुधियाना शहर में लगभग सात लाख प्रवासी मजदूर इस लाकडाउन मे सारे काम काज बंद, खाली जेब,भूख से परेशान फंसे हुए हैं। उन्होंने जो भी खोया उसकी भरपाई कोई नहीं कर सकता। आज तेलंगाना राज्य से झारखंड के लिए एक ट्रेन प्रवासी मजदूर को घर लेकर चली है। अन्य राज्य में भी इस प्रकार की मांग उठ रही है। मुझे एक गीत का लाईन याद आ गया साथी हाथ बढाना, एक अकेला थक जायेगा, मिलकर बोझ उठाना, साथी हाथ बढाना।
इन सभी घटनाओं से लाखों ग़रीब लोगों की दुर्दशा का अंदाज़ा लगाया जा सकता है, जो आजीविका की तलाश में गांवों से शहरों की ओर आते हैं और किस तरह लॉकडाउन में वे अपने घरों से दूर फंसे हुए हैं, ना तो उनके पास कोई नौकरी बची है और ना पैसा है।
व्हाट्सएप पर शेयर करें
No Comments






