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Tuesday, April 29, 2025 4:35:42 PM

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धान की फसल में कीट/रोग प्रबन्धन के समय से उपाय करें किसान वातावरण की नमी और तापमान को देखते हुए सतर्क रहें किसान

धान की फसल में कीट/रोग प्रबन्धन के समय से उपाय करें किसान  वातावरण की नमी और तापमान को देखते हुए सतर्क रहें किसान
_____________ से स्वतंत्र पत्रकार _____________ की रिपोर्ट

बहराइच 02 सितम्बर। जिला कृषि रक्षा अधिकारी प्रियानन्दा ने बताया कि वर्तमान समय में वातावरण की नमी और तापमान को देखते हुए धान की फसल में कीट/रोग के प्रकोप के कारण भारी क्षति होती है। इसलिए यह आवश्यक है कि इन कीट/रोगों की पहचान करते हुए इनसे होने वाली क्षति से बचाव हेतु समय से निदान करना आवश्यक है।

जिला कृषि रक्षा अधिकारी प्रियानन्दा ने किसानों को सुझाव दिया है कि शीथ ब्लाइट रोग धान की पत्ती एवं शीथ पर 1-3 सेमी0 लम्बे अण्डकार हरे धूसर रंग के धब्बे दिखाई पड़ते है, जिसके किनारे कत्थई रंग के हो जाते है। इस रोग के नियंत्रण हेतु प्रोपीकोनाजोल 25 प्रतिशत ई.सी. 500 मिली प्रति हेक्टेयर अथवा कार्बेण्डाजिम 12 प्रति0 $ मैनकोजेब 63 प्रतिशत डब्लू.पी. 750 ग्राम प्रति हेक्टेयर 500-750 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें।

कण्डुआ रोग इस रोग की दशा धान की बाली के दाने नीले और काले रंग के आवरण से ढक जाते है, इनको हाथ से छूने पर पीले एवं काले अथवा हरें रंग के पाउडर जैसे रोग के स्पोर लग जाते है। इस रोग के नियंत्रण हेतु कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत डबलू.पी. 500 ग्राम प्रति हेक्टर अथवा प्रोपीकोनाजोल 25 प्रतिशत ई.सी. 500 मिली प्रति हेक्टेयर को 500-750 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करना चाहिए।

इसी प्रकार धान की फसल में पत्ती लपेटक कीट के प्रबन्धन हेतु श्री वर्मा ने किसानों को सुझाव दिया है कि इस कीट के प्रकोप की दशा में क्यूनालफॉस 25 प्रतिशत ई.सी. 1.25 ली./हे. की दर से छिड़काव करें। उन्होंने बताया कि पत्ती लपेटक कीट की सूड़ियां प्रारम्भ में पीले रंग की तथा बाद में हरे रंग की हो जाती हैं, जो पत्तियों को लम्बाई में मोड़कर अन्दर से उसके हरे भाग को खुरच कर खा जाते है।

कृषि रक्षा अधिकारी ने धान की फसल में तना वेधक कीट प्रबन्धन के लिए किसानों को सुझाव दिया है कि कीट के प्रकोप की दशा में कार्बाेफ्यूरान 03 प्रति 20 किग्रा. अथवा कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 4 प्रति. की 25 किग्रा. मात्रा को प्रति हे. की दर से 3-5 सेमी. पानी में बुरकाव करें। उन्होंने बताया कि तना वेधक कीट की मादा पत्तियों पर समूह में अण्डा देती है। अण्डों से सूडियां निकल कर तनों को वेघ कर मुख्य शूट को क्षति पहुचाती है। जिससे बढ़वार की स्थिति में मृतभोग दिखाई देता है।

धान की फसल में भूरा फुदका रोग के निदान हेतु श्री वर्मा ने किसानों को सुझाव दिया है कि इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रति. एस.एल. की 250-350 मिली./हे. मात्रा को 800-1000 ली. पानी में घोलकर छिड़काव करें अथवा फिप्रोनिल 0.3 जी 20 किग्रा. प्रति हे. की दर से 3-5 सेमी. स्थिर पानी में बुरकाव करें। उन्होंने बताया कि भूरा फुदका रोग के कीट के प्रौढ़ भूरे रंग के पंखयुक्त तथा शिशु पंखहीन होते है। इस कीट के शिशु एवं प्रौढ़ दोनो ही पत्तियों एवं कल्लों के मध्य रस चूस कर फसल को हानि पहुंचाते है।

उन्होंने किसानों को सुझाव दिया है कि गन्धी बग कीट के निदान हेतु एजाडिरैक्टिन 0.15 प्रति. ईसी की 2.5 ली. मात्रा को प्रति हे. 800-1000 ली. पानी में घोलकर छिड़काव करें अथव मैलाथियॉन 5 प्रति धूल प्रति हे. 20-25 किग्रा. सुबह के समय बुरकाव करें। उन्होंने बताया कि इस कीट के शिशु एवं पौढ़ लम्बी टांगो वाले भूरे रंग के विशेष गंध वाले होते है। जो बालियों की दुग्धावस्था में दोनो में बन रहे को चूस कर क्षति पहुंचाते है।

जिला कृषि रक्षा प्रियानन्दा ने बताया कि कीट/रोग सम्बन्धित किसी भी समस्या के निदा एवं सुझाव हेतु जिले के कृषक सहभागी फसल निगरानी एवं निदान प्रणाली (पीसीएसआरएस) के मोबाइल नम्बर 9452247111 एवं 9452257111 पर व्हाटसअप या टेक्सट मैसेज कर उचित सलाह प्राप्त कर सकते हैं।

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