31 अगस्त को जारी एनआरसी की अंतिम सूची कई परिवारों के लिए डरावने सपने लेकरआई है. 3 करोड़ 10 लाख की भारी-भरकम लिस्ट में जैसे-जैसे लोग अपना नाम चेक कर रहे हैं, उनकी पहचान का संकट गहराता जा रहा है. असम के बारपेट जिले में एक शिक्षक परिवार के साथ तो अनहोनी ही हो गई है. इस परिवार में 50 लोग हैं लेकिन इनमें से किसी का भी नाम इस लिस्ट में नहीं है. 52 साल के अहमद हुसैन अपने पूरे परिवार के साथ बारपेट जिले के बागबोर विधानसभा स्थित निचंचर गांव में रहते हैं. एनआरसी के आंकड़े आने के बाद पेशे से शिक्षक अहमद हुसैन जब नाम चेक करने पहुंचे तो उनके होश उड़ गए. परिवार के किसी भी सदस्य का नाम लिस्ट में नहीं था. अहमद हुसैन के सात भाई हैं. उनके परिवार में 15 बच्चे हैं. किसी का भी नाम लिस्ट में नहीं है. जब एनआरसी के लिए आवेदन दी जाने की प्रक्रिया चल रही थी तो इस परिवार ने 1951 के आंकड़े सरकारी विभाग को दिए थे. शिक्षक अहमद हुसैन कहते हैं कि उन्होंने अपने पिता हरमुज अली भुइयां से जुड़े दस्तावेज प्राथमिक स्कूल में जमा किए थे. हैरानी की बात ये है कि जब एनआरसी का ड्राफ्ट जारी किया गया था तो अहमद हुसैन के एक भाई को छोड़कर पूरे परिवार का नाम ड्राफ्ट में था, लेकिन अंतिम सूची से सभी बाहर हो गए हैं. ड्राफ्ट सूची से बाहर रहने वाले अहमद हुसैन के भाई का नाम अब्दुल था. एनआरसी के अधिकारियों ने जब अब्दुल से पूछताछ की तो उन्होंने 1966 के दस्तावेज सरकारी अधिकारियों को दिए. अब अहमद हुसैन को शक है कि 1951 और 1966 के दस्तावेजों में अंतर की वजह से उनके परिवार का नाम एनआरसी से बाहर हुआ है. अहमद हुसैन ने कहा, “जब हमारे भाई ने 1966 के दस्तावेज दिए तो हमें सरकार ने कई नोटिस भेजा, हम चार बार सुनवाई में शामिल हुए, फिर भी अंतिम एनआरसी में हमारा नाम नहीं आया, अब हम बहुत परेशान हैं, हमें भविष्य की चिंता सता रही है. हम एक बार फिर से आवेदन करेंगे, हमें बस सरकार के नोटिस का इंतजार है.” बता दें कि जिनका नाम एनआरसी से बाहर है उन्हें 120 दिन के अंदर विदेशी ट्रिब्यूनल के सामने अपनी नागरिकता साबित करनी होगी. 19 लाख लोगों को 4 महीने के अंदर सालों पुरानी अपनी पहचान सरकार के सामने साबित करनी है. ये प्रक्रिया न सिर्फ कानूनी पेचिदिगियों से भरी है, बल्कि गरीबी में पलने-बढ़ने वाले लोगों के लिए खर्चीली भी है.
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