बिहार के कैमूर में शराबबंदी के बावजूद दो पुलिसकर्मियों को शराब पीने के जुर्म में अलग-अलग सजा दी गई है. बताया जा रहा है कि शराब पीने के जुर्म में जहां सब-इंस्पेक्टर को बर्खास्त कर दिया गया है, वहीं चौकीदार पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है. ऐसे में लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या सब-इंस्पेक्टर का ओहदा चौकीदार से भी कम होता है? कुछ लोगों का कहना है कि बिहार सरकार शराबबंदी को लेकर सवर्ण के लिए अलग और दलितों के लिए अलग तरह से कानूनी कार्रवाई कर रही है.बताया जा रहा है कि सोनहन थाना के चौकीदार विरेन्द्र सिंह को दो माह पहले एसडीपीओ भभुआ ने शराब के नशे में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. इसके 15 दिन बाद ही वह हवालात से बाहर आ गया. उसके बाद उसे मालूम हुआ कि एसपी ने उसे बर्खास्त करने के लिए फाइल डीएम के पास भेज दी है. लेकिन उसके बाद अब तक चौकीदार को बर्खास्त नहीं किया गया है.दूसरा मामला कुदरा थाना के सब-इंस्पेक्टर का है. बताया जा रहा है कि सब-इंस्पेक्टर के पास से भारी मात्रा में शराब बरामद हुई. उसके बाद जैसे ही वह आवास पर गया, एसडीपीओ मोहनिया वहां पहुंचकर, उसे अपने गाड़ी में बैठाकर अपने कार्यालय ले गए. जहां मीडियाकर्मियों के साथ पीसी करते हुए उन्होंने बताया कि इस सब-इंस्पेक्टर ने शराब पी रखी है. इसीलिए इसे गिरफ्तार कर जेल भेजा जा रहा है. इसके बाद सात दिनों के अंदर उसे बर्खास्त भी कर दिया गया.सूत्रों का कहना है कि हवालात से निकलने के बाद चौकीदार विरेन्द्र सिंह कई नेताओं का दरवाजा खट-खटाया है, और कहा कि आप लोगों के रहते यदि मेरी नौकरी चली गई, तो भगवान भी माफ नहीं करेगा. इसके बाद कुछ जाति विशेष के नेता चौकीदार की मदद करने लगे हैं. बता दें कि दो माह हो जाने के बाद भी आज तक जांच रिपोर्ट फाइल में ही सिमटी हुई है. जब इस मामले में डीएम का गोलमटोल जवाब मिला.इस मामले में माले नेता मोरध्वज सिंह ने कहा कि दोनों पुलिस विभाग के कर्मचारी हैं. अंतर बस इतना है कि एक सब-इंस्पेक्टर तो दूसरा चौकीदार है. जिसे दो अलग-अलग एसडीपीओ ने गिरफ्तार किया है. लेकिन उसके बाद भी एक की सेवा सात दिनों में समाप्त कर दी जाती है, तो दूसरे मामले में कार्रवाई की बात तो दूर, उसके खिलाफ कोई अधिकारी बोलने के लिए तैयार भी नहीं है. उन्होंने कहा कि खैर मामला जो भी हो, बिहार में सबकुछ संभव है….
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