जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने मंगलवार को चर्चित सियासी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (पीके) को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया है. बीते महीने उन्होंने प्रशांत किशोर को पार्टी की सदस्यता दिलाई थी. पटना के सत्ता के गलियारे में चर्चा है कि पीके आगे नीतीश कुमार के उत्तराधिकारी भी हो सकते हैं.प्रशांत किशोर की रणनीति का ही असर था कि एनडीए में सीटों के तालमेल और नीतीश के नेतृत्व को लेकर जेडीयू मुखरता से बीजेपी पर दबाव बनाती नजर आई. प्रशांत किशोर ने जेडीयू नेताओं को नीतीश कुमार के चेहरे की चमक तेज करने को लेकर सुझाव दिए थे. बिहार विधानसभा चुनाव 2015 में नीतीश कुमार के लिए तैयार ‘बिहार में बहार है नीतीशे कुमार है’ काफी सुर्खियों में रहा था.प्रशांत किशोर की रणनीति का नीतीश कुमार को फायदा हुआ और लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त झेल चुके नीतीश कुमार ने अपनी खोई हुई जमीन हासिल की. लालू प्रसाद और कांग्रेस के साथ नीतीश कुमार ने भारी बहुमत के साथ एनडीए पर जीत दर्ज की. जीत के बाद कुर्ता-पायजामा में उनकी नीतीश कुमार के साथ तस्वीर टीवी और अखबारों की प्रमुख तस्वीर बनी.लोकसभा चुनाव 2014 में प्रशांत किशोर नरेंद्र मोदी की टीम में थे. बीजेपी की जीत के लिए रणनीति तैयार की. बताया जाता है कि प्रशांत किशोर ‘चाय पर चर्चा’ की रणनीति के अहम हिस्सेदार रहे, लेकिन सरकार गठन के बाद उनके अमित शाह के साथ मतभेद उभरे. साल भर बाद 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर, नीतीश कुमार के लिए रणनीति तैयार करने लग गए.भाजपा और नीतीश कुमार के अलावा पंजाब में कांग्रेस की जीत में भी प्रशांत किशोर की रणनीति काम आई. पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए काम करने के दौरान प्रशांत किशोर ने पटना छोड़ दिया. सूत्रों के मुताबिक, प्रशांत किशोर महागठबंधन टूटने को लेकर नाराज थे. सूत्रों का कहना है कि पंजाब में अमरिंदर सिंह को सीएम की कुर्सी तक पहुंचाने के बाद अप्रैल में पटना लौटने पर प्रशांत किशोर कुछ घंटे ही नीतीश कुमार के आवास पर रुके थे.साल 2015 में राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस और जनता दल यूनाइटेड को मिलाकर महागठबंधन बनवाने में भी अहम भूमिका निभाई थी. 2015 के विधानसभा चुनाव में जीत मिलने के बाद सीएम नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर को राज्य मंत्री का दर्जा दिया था. महागठबंधन टूटने और बीजेपी के साथ नई सरकार बनाने के बाद उन्हें पद से हटा दिया गया था.मोदी लहर के बावजूद भारी जीत हासिल होने के बाद नीतीश कुमार ने उन्हें अपना सलाहकार बनाया, लेकिन जल्दी ही पीके ने बिहार को अलविदा कह दिया. दोनों दूर तो हुए, लेकिन निजी रिश्तों में गर्माहट हमेशा बरकरार रही. नवंबर, 2015 में मुख्यमंत्री बनने के बाद नीतीश कुमार ने बिहार विकास मिशन बनाया और बुनियादी विकास के सात निश्चय के से जुड़े कार्यक्रमों की मॉनिटरिंग इसको सौंप दी. प्रशांत किशोर इसके मुखिया बनाए गए.2016 के फरवरी में इसका गठन हुआ. प्रशांत किशोर हमेशा नीतीश के साथ ही सात सर्कुलर रोड स्थित सीएम के सरकारी आवास में रहते थे. इसी से दोनों की नजदीकियों का अंदाजा लगाया जा सकता है. बिहार विकास मिशन से जल्दी ही प्रशांत किशोर का मोह भंग हो गया. वो मुश्किल से एक दो बैठकों में ही हिस्सा ले पाए और ज्यादा समय दिल्ली में बीतने लगा.चार महीने पहले नीतीश ने खुद ही प्रशांत किशोर को पार्टी में शामिल होने का न्यौता दिया था. कहा जाता है कि नीतीश के साथ दो मुलाकातों से उनके जेडीयू का दामन थामने का रास्ता साफ हो गया.नीतीश कुमार पांच मई, 2018 को जब दिल्ली गए, तब वहां प्रशांत किशोर से उनकी मुलाकात हुई. उन्होंने किशोर से कहा कि अब उन्हें बिहार लौटना चाहिए और जेडीयू में उनके लिए दरवाजे खुले हैं. प्रशांत किशोर से पार्टी की बैठकों में भी हिस्सा लेने की अपील की गई.इसके बाद तीन जून को पटना में नीतीश ने पार्टी की कोर कमेटी की बैठक बुलाई जिसमें प्रशांत किशोर भी शामिल हुए. उनको लाने में पवन वर्मा और केसी त्यागी ने भी अहम भूमिका निभाई. इसी बैठक से तय हो गया था कि पीके जेडीयू का दामन थामेंगे. हाल ही में हैदराबाद में एक कार्यक्रम में प्रशांत किशोर ने बिहार के विकास के लिए काम करने की इच्छा जताई थी.जब 2014 में नरेंद्र मोदी की जीत सुनिश्चित करने के बाद प्रशांत किशोर बिहार के सीएम नीतीश कुमार के संपर्क में आए तो उनके मुरीद हो गए. राजनीतिक गलियारों में पीके के नाम से चर्चित प्रशांत किशोर नीतीश के डेवलपमेंट एजेंडा और गुड गवर्नेंस की नीति से खासे प्रभावित थे. इसलिए 2015 में लालू से हाथ मिलाने के बावजूद प्रशांत किशोर ने नीतीश की शख्सियत को धुरी बनाते हुए चुनावी रणनीति बनाई.
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