बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने चुनावी साल में ‘मास्टर स्ट्रोक’ खेला है. दरअसल सरकार ने बड़ा फैसला करते हुए राज्य के सभी संविदाकर्मियों को सरकारी कर्मियों की तरह लाभ देने की घोषणा की है. इस घोषणा को 2019 में होने वाले आम चुनाव और 2020 में बिहार के विधानसभा चुनाव से जोड़ कर देखा जा रहा है.राज्य के विभिन्न कार्यालयों में संविदा पर पांच लाख से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं और उनकी ये चिर प्रतिक्षित मांग थी कि सरकार सभी कर्मियों की सेवा को स्थायी करे और सरकारी कर्मियों की तरह लाभ और सुविधा दे. नीतीश कुमार ने इस बात का ख्याल रखा और मौके का इंतजार करने के बाद चुनावी साल से ठीक पहले स्वतंत्रता दिवस के मौके पर ये बड़ी घोषणा की.कॉन्ट्रैक्ट कर्मियों का कहना था कि सरकार उनसे सरकारी कर्मियों की तरह ही काम लेती है ऐसे में उन्हें वो सारी सुविधाएं मिलनी चाहिये जो कि बिहार सरकार के सरकारी कर्मचारियों को मिलती है. सीएम की इस घोषणा के बाद राज्य के सभी संविदाकर्मियों को सरकारी कर्मियों की तरह लाभ मिलने लगेगा. जानकारों की मानें तो औसतन एक कॉन्ट्रैक्ट कर्मी के साथ पांच से सात लोगों का परिवार जुड़ा होता है ऐसे में पांच लाख कर्मियों के हितों का ख्याल रख कर नीतीश ने राज्य के लगभग 25 से 30 लाख वोट पर निशाना साधने की कोशिश की है. इस घोषणा के बाद एनडीए सरकार इसे अपनी उपलब्धियों में भी जोड़ेगी और इस आधार पर वोट भी मांगेगी.नीतीश ने बुधवार को पटना के गांधी मैदान में कहा कि संविदाकर्मियों को सभी तरह का लाभ मिलेगा और उनकी सेवा शर्त अनुशंसा के अनुसार लागू होगी. इसके तहत छुट्टी, सेवा दिवस, नई वेकेंसी में मौका जैसी बातें शामिल हैं. सीएम ने कहा कि समिति द्वारा की गई अनुसंशा के अनुसार नियम लागू होंगे. दरअसल बिहार में एक हाई लेवल कमेटी ने सभी संविदाकर्मयों की सेवा 60 साल तक स्थायी करने और रेगुलर कर्मचारियों की तरह बोनस, मेडिकल लीव और अन्य सुविधाएं देने की सिफारिश की थी.इस कमिटी के अध्यक्ष राज्य के पूर्व मुख्य सचिव अशोक कुमार चौधरी हैं. अशोक चौधऱी कमेटी की सिफारिशों को लागू करने से राज्य सरकार के खजाने पर खासा बोझ पड़ेगा लेकिन अगले साल होने वाले चुनाव को देखते हुए इसे नीतीश कुमार का मास्टर स्ट्रोक कहा जा रहा है.
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