बिहार में बाढ़ का कहर शुरू हो चुका है और कोसी के कई इलाकों में बाढ़ का पानी घुसने लगा है. बिहार के लिये बाढ़ कोई नई चीज नहीं है. यहां के लोग हर साल बाढ़ का प्रलय झेलने को मजबूर हैं. नदियों के कमजोर बांधों का टूटना इस बाढ़ का सबसे बड़ा जल प्रलय है.इससे भी बड़ा प्रलय ये है कि सरकार हर साल बाढ़ का खतरा सिर पर मंडराने के बाद बांधों की मरम्मती और मजबूतीकरण की सुध लेती है. इस साल भी कुछ ऐसा ही हुआ. सरकार ने जून के अंतिम सप्ताह में कैबिनेट की बैठक की और बांधों की मरम्मती के लिए राशि जारी करने का फैसला लिया है. बिहार में बाढ़ हर साल आता है. इस बार भी बाढ़ का खतरा सिर पर मंडरा रहा है. राज्य की कई नदियों के बांधों की हालत खस्ताहाल है लेकिन बाढ़ पूर्व तैयारियों के रुप में जून के अंतिम सप्ताह में बिहार सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग ने बिहार की नदियों के बांधों के मजबूतीकरण और मरम्मती के लिए 275 करोड़ रुपये जारी किए हैं.कैबिनेट के निर्णय में कहा गया है कि 2017 में आई बाढ में क्षतिग्रस्त बांधों की मरम्मती एवं सुदृढ़ीकरण के लिए ये पैसे मंजूर किये जा रहे हैं, ऐसे में सवाल यह उठता है कि इन क्षतिग्रस्त बांधों की सुध पूरे साल सरकार ने क्यों नहीं ली.2008 के कुसहा त्रासदी की भी यही कहानी थी जब कोसी के कमजोर तटबंध की ना सिर्फ उपेक्षा हुई बल्कि उसको लेकर खेल भी चलता रहा और कोसी पूर्वी तटबंध को ही लील गई. 2008 के इस जल प्रलय का खामियाजा बिहार के कई हिस्सों को झेलना पड़ा था.इस मामले को अर्थशास्त्री नवल किशोर चौधरी भी सरकार की लापरवाही मानते हैं. उनके मुताबिक बाढ़ राहत के नाम पर लूट मचती है लेकिन बाढ़ रोकने पर चर्चा नहीं होती. इस बात का प्रमाण बाढ़ के समय कैबिनेट से फंड मिलना भी है.
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