कांग्रेस अपने ‘मिशन बिहार’ पर पूरी तरह से उतर चुकी है. पिछले पांच साल में कांग्रेस ने राज्यभर में जितने कार्यक्रम नहीं किए थे, पिछले पांच महीने में उससे ज्यादा धरना प्रदर्शन, रिक्शा, बैलगाड़ी वगैरह से कर चुकी है. लेकिन सवाल यही है कि क्या रिक्शा और बैलगाड़ी पर चढ़कर बिहार में कांग्रेस की नैया पार लग पाएगी.बिहार में कांग्रेस कभी रिक्शा पर होती है तो कभी बैलगाड़ी पर. दरअसल ‘मिशन बिहार’ के तहत बिहार में कांग्रेस अपने संगठन में नई जान फूंकने के मिशन पर काम कर रही है. बिहार कांग्रेस को नया प्रभारी मिला, फिर दो नए सचिव की नियुक्ति की गई. ये लोग बिहार में ताबड़तोड़ कार्यक्रम कर रहे हैं. बिहार कांग्रेस के प्रभारी राज्य में बैलगाड़ी पर सवार होकर निकलते हैं, तो पहली बार बिहार पहुंचते ही दोनों सचिव रिक्शा पर सवार हो जाते हैं.इतना ही नहीं, आने वाले एक महीने के लिए कांग्रेस ने दो दर्जन से ज्यादा कार्यक्रम तय किए हैं. दोनों सचिवों को बिहार के संगठन के हिसाब से राज्य को दो हिस्सों में बांटकर एक-एक का प्रभार दे दिया गया है. वहीं कांग्रेस के विरोध प्रदर्शन पर
पिछले दो दशक में बिहार में कांग्रेस ने कभी खुद के पैरों पर भरोसा ही नहीं किया. कांग्रेस हमेशा बिहार में वैशाखी के सहारे ही आगे बढ़ने की फिराक में लगी रही. अब देखना है कि कांग्रेस के प्रभारी और दो सचिव पार्टी को अपने दोनों पैरों पर खड़ा कर पाते हैं कि नहीं.
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