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Monday, April 21, 2025 4:33:19 AM

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दबंगों से पीड़ित युवती ने लगाई डीएम से न्याय की फरियाद

दबंगों से पीड़ित युवती ने लगाई डीएम से न्याय की फरियाद
से बेखौफ खबर के लिए स्वतंत्र पत्रकार अनिल कुमार की रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश /फतेहपुर दबंगों के कहर से आजिज युवती ने जिलाधिकारी से लगाई न्याय की गुहार बिन्दकी कोतवाली क्षेत्र के ग्राम सेलावन की निवासिनी रमा अग्निहोत्री की पैत्रिक जमीन पर इसी गांव के निवासी दबंगों द्वारा जबरन कब्जा करने का प्रयास किया जा रहा है। जिसके संम्बध में स्थानीय थाना पुलिस तथा तहसील के जिम्मेदार अधिकारियों से अभिलेखीय साक्ष्य दिखाते हुए न्याय की फरियाद की गयी किन्तु किसी सक्षम अधिकारी ने पीडिता के साथ की जा रही। बदसलूकी एवं प्रैत्रिक जमीन पर कब्जा करने की कोशिश की घटना पर उचित कार्यवाही करने की बजाय उल्टे पीड़िता को ही चौकी खजुहा की पुलिस हडका रही है। योगी सरकार के महिला सुरक्षा एवं संरक्षण के तमाम दावे स्थानीय पुलिस व जिम्मेदार अधिकारियों की उदासीनता के कारण दम तोड़ते दिख रहे हैं। जिलाधिकारी महोदय को उक्त भूखंड के संम्बध मे जिला एवं सत्र न्यायाधीश कोर्ट न0 4 के फैसले की कापी दिखा कर बताया कि उक्त जमीन पर पीड़िता के परिजनों का कब्जा पचासों वर्ष से रहा है। जिसके संम्बध दबंगों के परिजनों ने सिविल कोर्ट में वाद लगभग पचास वर्ष पहले दायर किया था जिसमें अवर न्यायालय ने पुख्ता सबूत के आधार पर उभय पक्षों को सुनने के बाद पीड़िता के ससुर के पक्ष में फैसला दिया इस आदेश के विरुद्ध विपक्षी ने पुनः जिला एवं सत्र न्यायालय में अपील की थी। जिसे उभय पक्षों को सुनने के बाद अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश कोर्ट न04 ने अपील खारिज करते हुए पीड़िता के परिजनों के पक्ष में फैसला 22-7-1975 में दे दिया था। मुकदमे के पूर्व से आज तक बदस्तूर उक्त भूखंड पर रमा व परिजन काबिज व दाखिल है। किन्तु इसे विडम्बना ही कहेगे माननीय जिला एवं सत्र न्यायालय के आदेश को पढ कर प्रकरण को समझने का प्रयास एस डी एम जैसे सक्षम अधिकारी नहीं कर रहे। वह भी न्यायालयी आदेश के अनुपालन की प्रक्रिया पूर्व में क्यों नहीं की गई है। कहकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर रहे हैं। जबकि इस मामले में रमा अग्निहोत्री व इनके पूर्वजों का ही कब्जा रहा है। और प्रतिपक्ष के विरुद्ध फैसला है। इनके कब्जे को कभी बाधित नहीं किया गया। तब न्यायालय द्वारा किस प्रकार की प्रकिया अमल में लाई जाती है। जब यह बात एक पीसी एस अधिकारी नहीं समझना चाह रहे तब प्रीडित पक्ष को कैसे न्याय मिलेगा

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