इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि आपराधिक मामलों में अभियुक्त होने मात्र से पुलिस को उसके परिवार के सदस्यों के साथ दुर्व्यवहार करने का अधिकार नही मिल जाता. बिना कोर्ट आदेश के पुलिस को रात में किसी भी समय अभियुक्त के दरवाजे को खटखटाने का अधिकार नहीं है.कोर्ट ने याची के पुलिस के खिलाफ आरोपों को गम्भीर माना और जिलाधिकारी बरेली को जांच कर एक माह में व्यक्तिगत हलफनामे के साथ रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है. याचिका की सुनवाई 7 जनवरी को होगी. यह आदेश न्यायमूर्ति बी अमित स्थालेकर तथा न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल की खंडपीठ ने गुल्फसा खान की याचिका पर दिया है.याची अधिवक्ता केके मिश्र व वरुण मिश्र का कहना है कि याची के पति सभासद का चुनाव में प्रत्याशी था. उसी समय से पुलिस ने परिवार को परेशान करना शुरू कर दिया. थाना इज्जतनगर की पुलिस आए दिन रात-बिरात याची के घर में घुसकर दुर्व्यवहार करने लगी. 19 मई 2017 को याची के पति को पुलिस 9 बजे रात पकड़ कर ले गई. कोई कारण नहीं बताया. इसकी शिकायत डीएम व एसएसपी से की गई लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. इसके बाद उसने कोर्ट में धारा 156(3) में अर्जी दी है, जो लंबित है.इसके बाद 9 जुलाई 2018 की रात साढ़े ग्यारह बजे उपनिरीक्षक सुनील राठी, उपनिरीक्षक लाला राम, कांस्टेबल आशीष कुमार व सलीम खान ने घर में घुसकर गाली-गलौज की और धमकाया. सरकारी वकील का कहना था कि याची के पति पर एनडीपीएस एक्ट, गुंडा एक्ट, व गैम्बलिंग एक्ट के तहत आपराधिक मुकदमे कायम हैं. इस पर कोर्ट ने कहा कि मात्र मुकदमे कायम होने से अभियुक्त दोषी नहीं हो जाता. पुलिस को जब भी चाहे रात-बिरात आरोपी के घर दबिश डालने का अधिकार नहीं मिल जाता.
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