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Friday, February 7, 2025 1:56:53 AM

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काव्यलोक संस्था के तत्वावधान में कवयित्री गार्गी कौशिक के पिता नीरज कुमार शर्मा की 62वीं जयंती पर काव्य गोष्ठी का हुआ आयोजन 

काव्यलोक संस्था के तत्वावधान में कवयित्री गार्गी कौशिक के पिता नीरज कुमार शर्मा की 62वीं जयंती पर काव्य गोष्ठी का हुआ आयोजन 

 रिपोर्ट : दीपक कुमार त्यागी 

स्वतंत्र पत्रकार

 

गजियाबाद। राजनगर एक्सटेंशन में साहित्यिक संस्था काव्यलोक के तत्वावधान में कवयित्री गार्गी कौशिक ने अपने स्वर्गीय पिता नीरज कुमार शर्मा के 62वें जन्मदिन के उपलक्ष्य में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया। जिसकी अध्यक्षता सुप्रसिद्ध शायर दीक्षित दनकौरी ने की। मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ शायर गोविंद गुलशन एवं प्रसिद्ध कवि शिवकुमार बिलग्रामी रहे।

मुंबई से आए वरिष्ठ साहित्यकार प्रमोद कुमार कुश तनहा विशिष्ट अतिथि के रूप उपस्थित रहे।

काव्य गोष्ठी का शानदार संचालन कवयित्री अल्पना सुहासिनी ने किया। सभी अतिथियों ने मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का विधिवत शुभारंम्भ किया। कवयित्री सोनम यादव ने सुमधुर कंठ से मां सरस्वती की वंदना प्रस्तुत की।

 

मशहूर शायर दीक्षित दनकौरी ने पढ़ा –

मेरे ख़ुलूस को बेचारगी समझता है,

वो ख़ामुशी को मिरी बुज़दिली समझता है।

गोविन्द गुलशन अपनी शानदार ग़ज़ल पढ़ी –

जादू स़िफत लगी मुझे पत्थर की रौशनी,

मुझको भी खींच लाई तेरे दर की रौशनी

बढ़ते ही जा रहे थे क़दम आदतन मेरे

रस्ता बता रही थी, मुकद्दर की रौशनी।

 

शिवकुमार बिलगरामी ने कहा कि

दुआ लबों पे तो आंखों में बंदगी रखना,

नए अमीर हो तुम खुद को आदमी रखना।

मुंबई से सुप्रसिद्ध साहित्यकार प्रमोद कुश तनहा ने पढ़ा कि

वही ख़्वाब मंजिलों के,वही रास्तों के ग़म हैं,

वही हौसले हमारे, वही आपके सितम हैं

कभी आंसुओं के किस्से, कभी दर्द के फ़साने,

इस ज़िन्दगी पे जितनी ग़ज़लें कहें वो कम हैं।

काव्यलोक के संस्थापक राजीव सिंहल ने पढ़ा –

प्यार की एक कहानी लिखें,

आओ फिर से जवानी लिखें।

ग़म के किस्से सभी भूलकर,

जिंदगी की रवानी लिखें।

 

वरिष्ठ पत्रकार चेतन आनंद कहा,

फ़ासले हम में बढ़े और बढ़े और बढ़े,

दरमिंया शिकवे गिले और बढ़े और बढ़े।

लोग तो हम को गिराते ही गिराते ही रहे,

हम भी गिर गिर के उठे और बढ़े और बढ़े।

कवयित्री अल्पना सुहासिनी ने पढ़ा,

फिर दोस्ती की बात को लेकर ग़ज़ल कही,

रिश्तों की एक जमात को लेकर ग़ज़ल कही।

क्यों बात बढ़ गयी थी कोई मुद्दआ न था,

मैंने तो वाक़िआत को लेकर ग़ज़ल कही।

कवि देवेन्द्र शर्मा देव ने कहा कि

कैसे करें दर्द बयां अब किसी से हम,

लगने लगे हैं आज उन्हें अजनबी से हम।

कवयित्री निवेदिता शर्मा गीत पढ़ा,

कलम मेरी कागज से जब भी मिली है,

नई कोई इसने कहानी लिखी है।

काव्यलोक की सचिव गार्गी कौशिक ने पढ़ा,

यूं तो कितने सहारे हमारे लिए,

आसमां के सितारें हमारे लिए।

वक्त की वो नदी सब बहा ले गई ,

टूटे सारे किनारे हमारे लिए।

 

डॉ सुधीर त्यागी ने पढ़ा,

दिले-पाक से जब पुकारा करे है,

कहीं से कोई तो इशारा करे है।

शायर रिज़वी ने अपनी ग़ज़ल पेश की

दुख हो सुख हो सदा साथ मेरे रहते हैं ,

आंसुओं जैसे वफ़ादार कहां मिलते हैं।

सोनम यादव ने पढ़ा

है बुढ़ापा बेसहारा, कौन जिम्मेदार है,

मुश्किलों में है गुजारा, कौन जिम्मेदार है।

तुलिका सेठ ने खूब वाहवाही बटोरी

वह जो देते रहे हर घड़ी बद्दुआ

पूछते हैं वही क्या हुआ, क्या हुआ।

कवयित्री सीमा सिंकदर, डॉ श्वेता त्यागी ने भी शानदार काव्यपाठ किया।

अंत में, संस्था के संस्थापक राजीव सिंहल ने आयोजन को सफल बनाने के लिए सभी आगंतुकों का धन्यवाद ज्ञापित किया।

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