भारत मे शासन व प्रशासन की एक आदत सी है कि पहले किसी घटना व मामले का संज्ञान नही लिया जाता बल्कि उसे टाला जाता है फिर उसी मे कुछ घटनाएं जब विकराल रूप धारण कर लेती है तब शासन व प्रशासन को होश आता है तब शुरू होती है बदले की कार्रवाई।
इसके अलावा सरकार स्तर पर बहुत कुछ हद तक अपने मुखिया को अधिकारी गुमराह करते है।
इसके अलावा योगी सरकार का एक वर्ग के खिलाफ की मंशा के मद्देनजर इसका लाभ अपराधी से लेकर सभी उठा रहे है। जिसका उदाहरण है कानपुर की शर्मनाक व अफसोसनाक घटना।
योगी सरकार पूरे समय सूबे के कद्दावर नेता, पूर्व कैबिनेट मंत्री व साफ सुथरी छवि वाले नेता पर ही जोर आजमाईश करती रही और सरकार ने जो किया वह सबके सामने है।
योगी जी को जहां शासन चलाने का अनुभव कम है वही वह दिखावे के तौर पर आत्मविश्वास व तानाशाही रवैया अपना रहे है। जो भारत जैसे लोकतंत्र मे सूट नही करता।
योगी जी को अक्सर देखा जाता है कि उन्हे यह एहसास नही होता कि वह एक उच्च संवैधानिक पद पर है और निष्पक्षता, ईमानदारी व भेदभाव न करने की शपथ ली है।
भ्रष्टाचार मुक्त और अपराध मुक्त होने या करने का दावा तो आसान लगता है लेकिन जमीनी हकीकत का सामना तो जनता करती है।
कानपुर की घटना ने बहुत से सवाल खड़ा कर दिए है। लेकिन अब वह दौर भी नही रहा, कि सरकार से नैतिकता के आधार पर इस्तीफा मांगा जाता। सरकार व उसका अमला अपनी नाकामी को छिपाने के लिए बहुत कुछ करता हुआ दिखाई पड़ रहा है। लेकिन अगर यह सजगता पहले से होती तो शायद इतनी बड़ी घटना न होती और न ही आठ पुलिस कर्मचारियो को अपनी कीमती जान न गवानी पड़ती।
अब से ही सरकार अगर सबक हासिल करले और संवैधानिक ढंग से निष्पक्ष रूप से काम करने पर अमल करे तो भविष्य को सुधारा जा सकता है।
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