रिपोर्ट : संजय पराते
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की 24वीं कांग्रेस 6 अप्रैल को मदुरै में संपन्न हुई। कांग्रेस में स्वीकृत राजनैतिक प्रस्ताव में भाजपा-आरएसएस को अलग-थलग करने और उसे हराने का प्राथमिक उद्देश्य निर्धारित किया गया है। यह प्रस्ताव सही ढंग से इसका विश्लेषण करता है कि मोदी सरकार के लगभग 11 वर्षों के शासन में नव-फासीवादी विशेषताओं वाली दक्षिणपंथी, सांप्रदायिक, तानाशाही ताकतें मजबूत हुई हैं। यह प्रस्ताव रेखांकित करता है कि “मोदी सरकार हिंदुत्ववादी ताकतों और बड़े पूंजीपतियों के गठबंधन का प्रतिनिधित्व करती है। इसलिए, मुख्य कार्य भाजपा-आरएसएस और इसके पीछे की ताकत हिंदुत्व-कॉर्पोरेट गठजोड़ से लड़ना और उसे हराना है।”
इस राजनैतिक प्रस्ताव में इस बात पर जोर दिया गया है कि सांप्रदायिक ताकतों की विचारधारा और गतिविधियों के खिलाफ निरंतर संघर्ष करके ही भाजपा और हिंदुत्ववादी ताकतों को अलग-थलग करना और हराना संभव है। हिंदुत्ववादी सांप्रदायिकता के खिलाफ सभी धर्मनिरपेक्ष ताकतों की व्यापक लामबंदी के लिए प्रयास करते हुए भी, सीपीआई(एम) इस बारे में स्पष्ट है कि “हिंदुत्ववादी नवउदारवादी शासन के खिलाफ संघर्षों की सफलता के लिए सीपीआई(एम) और वामपंथी ताकतों की स्वतंत्र ताकत का विकास जरूरी है।”
पार्टी और वामपंथ की स्वतंत्र ताकत और प्रभाव में ठहराव – और बाद में गिरावट – काफी समय से चिंता का विषय रहा है। पार्टी को अपने पूर्व गढ़ पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में भारी असफलताओं का सामना करना पड़ा है, जिसके परिणामस्वरूप उसका जनाधार कम हो गया है।
इस संबंध में, राजनीतिक समीक्षा रिपोर्ट में यह उल्लेख करते हुए कि पार्टी भाजपा के विरुद्ध व्यापक धर्मनिरपेक्ष ताकतों को संगठित करने में सफल रही, आत्मालोचनात्मक रूप से यह भी स्वीकार किया गया है कि वह 23वीं कांग्रेस द्वारा निर्धारित अन्य कार्यभार को पूरा करने में विफल रही : अर्थात् इसके साथ ही, माकपा और वामपंथ की ताकत और प्रभाव को बढ़ाना।
23वीं कांग्रेस में स्वीकृत राजनैतिक-रणनीतिक लाइन को सही बताते हुए 24वीं कांग्रेस ने हिंदुत्व और विभिन्न आरएसएस संगठनों के प्रभाव और गतिविधियों का मुकाबला करने के लिए राजनीतिक, वैचारिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में निरंतर गतिविधियों का संचालन करने के लिए पार्टी को तैयार करने का आह्वान किया है। यह प्रस्ताव दोहराता है कि भाजपा और आरएसएस को एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता है और उन्हें केवल चुनावी लड़ाइयों के जरिए नहीं हराया जा सकता है। यह देखते हुए कि पिछले दशक में हिंदुत्ववादी ताकतों ने वैचारिक प्रभाव के आधार पर एक बड़ा समर्थन आधार बनाया है, उनका मुकाबला करने के लिए एक सर्वसमावेशी कार्यक्रम का होना आवश्यक है।
इस दिशा में पार्टी मज़दूर वर्ग के बीच और मज़दूर वर्ग के रिहायशी इलाकों, ट्रेड यूनियनों और अन्य जन संगठनों और मंचों पर सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के ज़रिए सांप्रदायिकता विरोधी कामों को संगठित करने पर विशेष ध्यान देगी। अन्य उपायों के अलावा, पार्टी धार्मिक आस्था और राजनीतिक लाभ के लिए धर्म के दुरुपयोग के बीच अंतर समझाने के लिए आस्थावानों तक पहुँचेगी। यह सांप्रदायिक राजनीति के लिए उनके दुरुपयोग को रोकने के लिए त्यौहारों और सामाजिक समारोहों में हस्तक्षेप करने की कोशिश करेगी और ऐसे त्यौहारों और आयोजनों में मौजूद अंतर-धार्मिक और अंतर-जातीय समन्वयकारी पहलों को प्रोत्साहित और मज़बूत करेगी। यह सामाजिक सेवा की गतिविधियों और लोकप्रिय विज्ञान आंदोलनों में भी शामिल होगी, धर्मनिरपेक्ष और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देगी और मनुवादी और रूढ़िवादी मूल्यों का मुकाबला करने के लिए व्यापक सांस्कृतिक गतिविधियाँ शुरू करेगी।
कांग्रेस ने इस बात पर जोर दिया है कि पार्टी को मजबूत बनाने के लिए पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में माकपा और वामपंथ का पुनर्निर्माण और विस्तार करना सबसे जरूरी काम है। पश्चिम बंगाल में ग्रामीण और शहरी गरीबों के बीच काम करने पर विशेष ध्यान दिया जाएगा और उन्हें संगठित करने की दिशा में प्रयास किए जाएंगे। त्रिपुरा के लिए महाधिवेशन ने निर्देश दिया है कि पार्टी जमीनी स्तर पर संगठन को मजबूत करे और ऐसा कार्यक्रम शुरू करे, जो आदिवासी लोगों की विशेष जरूरतों और मुद्दों को संबोधित करते हुए मेहनतकश लोगों को एकजुट करे।
पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में लोगों का विश्वास फिर से हासिल करने के लिए हर संभव प्रयास करते हुए, पार्टी अन्य राज्यों में भी अपना प्रभाव बढ़ाने का प्रयास करेगी। इसलिए 24वीं कांग्रेस ने इस बात पर जोर दिया है कि बुनियादी वर्गों के बीच पार्टी के काम को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। पार्टी कांग्रेस ने ग्रामीण-अमीरों के गठजोड़ द्वारा ग्रामीण गरीबों के शोषण के खिलाफ संघर्षों में मौजूद कमजोरियों को दूर करने का भी आह्वान किया है। यह भी स्पष्ट है कि पार्टी को स्वतंत्र राजनीतिक अभियानों और जन-आंदोलनों पर अधिक ध्यान देना चाहिए, ताकि “चुनावी समझ या गठबंधन के नाम पर हमारी स्वतंत्र पहचान धुंधली न हो या हमारी स्वतंत्र गतिविधियों में कमी न आए।”
जाति, लिंग और सामाजिक मुद्दों को केवल संबंधित जन संगठनों द्वारा उठाए जाने के पारंपरिक दृष्टिकोण पर निर्भर रहने के बजाय, पार्टी ने पिछले कुछ समय से इस बात की वकालत की है कि उसे इन मुद्दों पर सीधे अभियान चलाना चाहिए और संघर्ष करना चाहिए, साथ ही उन्हें वर्ग शोषण के खिलाफ संघर्षों के साथ जोड़ना चाहिए।
पार्टी मानती है कि इसके भविष्य के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण कारक ज्यादा से ज्यादा युवाओं को आकर्षित करना है। युवाओं के बीच इसकी अपील – अन्य बुर्जुआ पार्टियों से कुछ अलग – दिखनी चाहिए। हमारे युवा एक विकल्प की खोज में भटक रहे हैं, उनमें इस विकल्प को प्राप्त करने की तड़प है और उनकी इस तड़प को संबोधित किया जाना चाहिए। इस दिशा में, राजनीतिक समीक्षा रिपोर्ट में कहा गया है : “हमारे राजनीतिक और वैचारिक अभियान में कमी का एक महत्वपूर्ण पहलू है, व समाजवाद के लक्ष्य का प्रचार। जिस वामपंथी और लोकतांत्रिक विकल्प की हम बात करते हैं, उसे समाजवाद से जोड़ा जाना चाहिए। नई पीढ़ी के बीच हमारी अपील को बढ़ाने के लिए यह और भी ज़रूरी है। सोवियत संघ के पतन और समाजवाद को लगे धक्कों के बाद की अवधि में यह कमजोरी आई हैं।”
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