भारत : आज जब पुरी दुनिया कोरोना से लडाई लड़ रहा है। ऐसे में भारत सरकार के गरीबों को लेकर बनी नीतियों का पोल खोल दिया इस कोराना वायरस ने क्योंकि भारत में जो इलेक्शन के समय में यहां के नेता सिर्फ गरीबों की बात करते हैं प्रधान से लेकर सांसद तक सिर्फ गरीबों की बात करते हैं लेकिन जैसे इलेक्शन खत्म होता है तो इनकी बात तो दूर की बात है इनको याद तक नहीं किया जाता है और इन्हें मरने के लिए छोड़ दिया जाता है। आज जब भारत कोरोना वायरस से लड़ाई लड़ रहा है। तो ऐसे में ना तो ग्राम प्रधान नजर आ रहे हैं सभी स्थानीय नेता गायब से नजर आते हैं। रोड से लेकर जितनी भी चीजें हैं सब गरीबों की मेहनत से बनती हैं लेकिन आज गरीब अपनी बनाई चीजों का इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है मरने के लिए मजबूर है। बड़ी-बड़ी दावा करने वाले स्थानीय नेता गायब नजर आ रहे हैं। आज इस समय ऐसा लगता है कि गरीब या तो वोट देने के लिए बना है या फिर सिर्फ चुनावी रैलियों में जाकर नारेबाजी करने के लिए बना है। हां लेकिन गरीबों के मरने के बाद घड़ियाली आंसू जरूर बहाये जाते हैं। क्या इन आंसुओं से जिसका घर उजड़ गया जिसका बच्चे मर गये क्या वापस आएंगे। हमारी सरकार अगर इन गरीबों के लिए अच्छी सुविधाएं की होती तो शायद इतने ज्यादा मजदूर या गरीब नहीं मरते। लेकिन कोई बात नहीं भारत में बहुत सारी जनसंख्या है 1 या 2 लाख मरने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। कोरोना वायरस से लड़ाई जरूर हम जीते गे लेकिन एक सवाल इस भारत में बना रहेगा क्या सच में भारत का गरीब मजदूर इंसान है या फिर वोट देने के लिए और चुनावी रैलियों में नारेबाजी करने की मशीन या फिर आने वाले दिनों में भारत का मजदूर गरीब मशीन ना बन कर एक इंसान बनेगा।
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