महराजगंज। आज पूरे भारत में हिन्दू धार्मिक मान्यताओ के अनुसार महिलाओं द्वारा पूजन निर्जला एकादशी का व्रत किया जाता है यह व्रत बिना अन्न, फल,,पानी के उपवास रखकर किया जाने वाला. व्रत है। ज्योतिष के अनुसार यह सुर्योदय 5 बजकर 13 मिनट पर और सायंकाल 5 बजकर 3 मिनट तक है। द्वादशी के दिन प्रातः स्नान करके(अन्न,वस्त्र, छतरी, पंखी,जल,कलश इत्यादि वस्तुओं का दान)करना चाहिए। निर्जला एकादशी का व्रतज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को किया जाता है। हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का मात्र धार्मिक महत्त्व ही नहीं है। ये व्रत मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के नज़रिए से भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की आराधना को समर्पित होता है। इस एकादशी का व्रत करके श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार दान करना चाहिए। इस दिन विधिपूर्वक जल कलश का दान करने वालों को पूरे साल की एकादशियों का फल मिलता है। इस प्रकार जो इस पवित्र एकादशी का व्रत करता है, वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है।
एकादशी व्रत का इतिहास
एक बार बहुभोजी भीमसेन ने व्यासजीके मुख से प्रत्येक एकादशी को निराहार रहने का नियम सुनकर विनम्र भाव से निवेदन किया कि ‘महाराज! मुझसे कोई व्रत नही किया जाता। दिन भर बड़ी तीव्र क्षुधा बनी ही रहती है। अतः आप कोई ऐसा उपाय बतला दीजिये जिसके प्रभाव से स्वत: सद्गति हो जाय। ‘ तब व्यासजी ने कहा कि ‘तुमसे वर्षभर की सम्पूर्ण एकादशी नहीं हो सकती तो केवल एक निर्जला कर लो, इसीसे सालभर की एकादशी करने के समान फल हो जायगा। ’ तब भीम ने वैसा ही किया और स्वर्ग को गये। इसलिए यह एकादशी ' भीमसेनी एकादशी' के नाम से भी जानी जाती है।
निर्जला एकादशी का महत्व
निर्जला यानि यह व्रत बिना जल ग्रहण किए और उपवास रखकर किया जाता है। इसलिए यह व्रत कठिन तप और साधना के समान महत्त्व रखता है। हिन्दू पंचाग अनुसार वृषभ और मिथुन संक्रांति के बीच शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी कहलाती है।
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