उत्तर प्रदेश की पुलिस में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. कहीं आईपीएस खुद को गोली मार ले रहा है तो कहीं जहर खा ले रहा है. वहीं निचले स्तर पर अब तक दो महिला सिपाहियों के थाने में फांसी लगा लेने और एक दरोगा के खुद को गोली मार लेने से पुलिस प्रशासन दहला हुआ है.नौकरी का दबाव और पारिवारिक उलझनों से निपटने में पुलिस अफसर और कर्मी किस कदर खुद को कमजोर महसूस कर रहे हैं?
पिछले 5 महीने में ही यूपी पुलिस ने अपने दो आईपीएस अफसरों को खो दिया. इनमें राजेश साहनी, जो भारतीय पुलिस सेवा में एक उच्च अधिकारी थे. वह एटीएस के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के रूप में तैनात थे. उन्होंने इसी साल 29 मई को लखनऊ के गोमतीनगर स्थित अपने दफ्तर में खुद को गोली मार ली. शुरुआत में नौकरी के दबाव की बात सामने आई. बहरहाल मामले की जांच सीबीआई को दी गई. अभी तक घटना का कारण साफ नहीं हो सका है.अब सितंबर में 2014 बैच के आईपीएस अधिकारी सुरेंद्र कुमार दास ने अधिक मात्रा में सल्फास निगल लिया, जिसके बाद अस्तपाल में उनकी इलाज के दौरान मौत हो गई. मौत के पीछे सुरेंद्र दास का सुसाइड नोट सामने आया. जिसके बाद आत्महत्या का कारण पारिवारिक कलह उजागर हुई. मामले की जांच जारी है.ऐसा नहीं है कि आईपीएस ही इसकी चपेट में हैं, निचले स्तर के पुलिसकर्मी भी कम दबाव नहीं झेल रहे हैं. सितंबर में ही यूपी के बांदा जिले के कमासिन थाने में तैनात महिला कांस्टेबल नीतू शुक्ला का शव संदिग्ध परिस्थितियों में थाना परिसर के आवास में लटकता पाया गया. मामले में महिला सिपाही के भाई और सब इंस्पेक्टर पिता ने मृतका के शरीर पर कई जगह ताजे घाव के निशान का हवाला देते हुए हत्या कर शव पंखे से लटकाने का आरोप लगाया. इस मामले में एसपी ने थानाध्यक्ष की लापरवाही मानते हुए पुलिस स्टेशन इंचार्ज प्रतिमा सिंह को लाइन हाजिर कर दिया. वहीं सीओ सदर को जांच अधिकारी बनाया है.2016 पुलिस बैच की नीतू शुक्ला (25) मूल रूप से कौशाम्बी जिले की रहने वाली थी. पिछले साल ही उसे कमासिन थाने में तैनाती मिली थी. वह यहां थाना परिसर में ही बने सरकारी आवास में तीन अन्य महिला सिपाहियों के साथ रह रही थी. रूम पार्टनर सिपाही नेहा ने बताया कि एक दिन पहले ही हम सब ने जन्माष्टमी का व्रत रखा था. जिस समय यह घटना घटी मृतका कमरे में अकेले थी और थाने में क्राइम मीटिंग चल रही थी. वहीं पिता अनिल शुक्ला कहते हैं कि उनकी बेटी की हत्या की गई है. उसने उन्हें फोन किया था तो डरी सहमी सी बात कर रही थी.इसके बाद 30 सितंबर को बाराबंकी की हैदरगढ़ कोतवाली में हड़कंप मच गया. यहां एक महिला कॉन्स्टेबल मोनिका ने पंखे से झूलकर आत्महत्या कर ली. सुसाइड नोट में कॉन्स्टेबल ने पुलिसकर्मियों पर मानसिक रूप से परेशान करने के गंभीर आरोप लगाए. हरदोई जिले की रहने वाली मोनिका भी 2016 बैच की सिपाही थी. करीब एक साल से कोतवाली में तैनात मोनिका किराये के मकान में रह रही थी. पुलिस ने मौके से महिला सिपाही के कमरे से एक सुसाइड नोट बरामद किया है, जिसमें उसने थानेदार और कुछ पुलिसकर्मियों पर मानसिक रूप से परेशान करने आरोप लगाए हैं.मामले में पुलिस अधीक्षक वीपी श्रीवास्तव ने एसओ हैदरगढ़ और मुंशी को तत्काल प्रभाव से लाइन हाजिर कर दिया गया है. साथ ही मामले की जांच अपर पुलिस अधीक्षक दक्षिणी को सौंप दी गई है. जांच रिपोर्ट में जो भी दोषी पाया जाएगा, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी.उधर फर्रुखाबाद में 2 अक्टूबर को केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री शिवप्रताप शुक्ला की सुरक्षा ड्यूटी में तैनात दारोगा तार बाबू तरुण ने अपनी सर्विस रिवाल्वर से खुद को गोली मार ली. वह मूलरूप से फिरोजाबाद के थाना टूंडला के गांव नगला सोना के रहने वाले थे.पुलिस के मुताबिक पुलिस लाइन में तैनात दरोगा तार बाबू की ड्यूटी बार्डर पर शाहजहांपुर में थाना अल्लहगंज के कस्बा हुल्लापुर में लगाई गई थी. वह हुल्लापुर में केंद्रीय वित्तराज्य मंत्री शिव प्रताप शुक्ला का इंतजार कर रहे थे. दरोगा तार बाबू को मंत्री के काफिले को स्कार्ट करना था. इसी बीच दरोगा ने एक पंक्चर की दुकान के अंदर जा कर खुदको सर्विस रिवाल्वर से गोली मार ली. इससे उनकी मौत हो गई.उधर आईपीएस सुरेंद्र दास की मौत के बाद यूपी मे पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह ने भी माना कि पुलिस महकमा बेहद तनाव में है. अधिकारी लंबे समय से काम का ज्यादा दबाव होने, लगातार कई घंटों तक काम करने, बर्बाद व्यक्तिगत जीवन और मांग करने वाले मालिकों के बारे में निजी रूप से शिकायत करते आ रहे हैं.मामले में यूपी पुलिस कर्मचारी परिषद के महासचिव अविनाश पाठक कहते हैं कि साप्ताहिक अवकाश और सार्वजनिक अवकाश को मिला लें तो साल भर में पुलिसकर्मी के पास 106 छुट्टियां होती हैं. लेकिन उन्हें बमुश्किल 70 छुट्टियां ही मिल पाती हैं, इसमें ज्यादातर साप्ताहिक अवकाश ही हैं. इन छूटी छुट्टियों का लाभ भी उन्हें किसी तरह का नहीं मिलता है. वह कहते हैं कि अगर किसी के घर में कोई आकस्मिक समस्या आ जाए तो भी अधिकारी छुट्टी जल्दी मंजूर नहीं करते. अपना हवाला देते हुए कहते हैं कि मेरी ही शादी थी मेरे पास 5 से 6 महीने की छुट्टी बाकी थी. मैंने अर्जी 1 महीने की छुट्टी के लिए दी लेकिन छुट्टी मिली सिर्फ एक दिन की. मेरी पोस्टिंग उन दिनों झांसी में थी और बारात मिर्जापुर जानी थी. आप बताइए क्या यह व्यवहारिक है.
व्हाट्सएप पर शेयर करें
No Comments






