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Friday, March 28, 2025 5:34:07 AM

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प्रसूताओं को नहीं मिल रहा प्रधानमन्त्री मातृ वंदना योजना का लाभ,फोन करने पर सीएमओ नहीं करते बात

प्रसूताओं को नहीं मिल रहा प्रधानमन्त्री मातृ वंदना योजना का लाभ,फोन करने पर सीएमओ नहीं करते बात

(रिपोर्ट:
डी0पी0श्रीवास्तव)
बहराइच। प्रधानमन्त्री मातृ वंदना योजनान्तर्गत जहाँ जिले के छोटे बड़े अधिकारी,कर्मचारी एक दूसरे की सरकारी पीठ थपथपाते हुवे देखे जा रहे हैं वहीँ धरातल पर सरकारी योजनाओं से महरूम जरूरतमंद एक दूसरे की बगलें झाँक कर अपने आपको ठगा महसूस करते हुवे आने वाले लोकसभा चुनाव में सरकार को अपनी ताकत का एहसास कराने की योजना बनाते हुवे भी सुने जा रहे हैं। हालांकि केंद्र व प्रदेश सरकार द्वारा सरकारी योजनाओं को लागू कर जिलों को सौगात तो दे दी जाती है,लेकिन भ्रष्ट मानसिकता के अधिकारी धरातल के जरूरतमंदों को योजनाओं का वास्तविक लाभ न देकर सरकारी धन का बंदरबांट कर अपने-अपने हिस्से की ओर प्रयासरत देखे जाते हैं। मालूम हो कि प्रधानमन्त्री मातृ वंदना योजना 1 जनवरी 2017 से प्रदेश में लागू हुई थी। जिसके तहत प्रत्येक गर्भवती महिला को पहली बार माँ बनने पर तीन किस्तों में पांच हज़ार रूपए प्राप्त होते हैं। पूर्व में भी पत्रकारों को योजना की जानकारी देते हुवे प्रदेश की मातृत्व एवं शिशु कल्याण मंत्री प्रो0 रीता बहुगुड़ा जोशी ने भी बताया था कि यह योजना चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण के तत्वाधान में राज्य परिवार नियोजन सेवा अभिनवी करण परियोजना एजेंसी (सिफ्सा)के माध्यम से संचालित है। उन्होंने यह भी कहा था कि यू0पी0 की हर तीसरी महिला अल्पपोषित है जो गर्भावस्था के बाद कम वजन के शिशु को जन्म देती है और यह योजना महिलाओं के गर्भावस्था में ही पंजीकरण से शुरू होकर इसका पूरा लाभ महिलाओं को देती है। जिससे कई गिरते हुवे समीकरण को सुधारा जा सके। मालूम हो कि जननी सुरच्छा की अन्य योजनाओं के साथ साथ इस योजना के तहत गर्भिणी का पंजीकरण होते ही 1000/-,गर्भावस्था के छः माह बाद काम से कम एक प्रसव पूर्ण जांच के बाद दूसरी क़िस्त के रूप में 2000/-व प्रसव के बाद नवजात शिशु के पंजीकरण एवं जन्म के बाद प्रथम टीका चक्र पूरा होने पर तीसरी व अंतिम क़िस्त के रूप में 2000/-देने का प्राविधान होने के बाउजूद अस्पताल प्रशाशन के भेदभावपूर्ण नीतियों व भ्रष्ट कार्यप्रणालियों के कारण धरातल पर ज्यादातर लोगों को इस योजना की जानकारी ही नहीं है। बल्कि ऐसी महिलाओं के तीमारदारों से कर्मचारियों व डाक्टरों द्वारा न सिर्फ अतिरिक्त धन की मांग की जाती है बल्कि जरुरी दवाओं हेतु बाहर की पर्चियां भी थमा दी जाती हैं। ऐसे में टेलीवीजन में दिखने वाले विज्ञापनों व धरातल पर महिला/पुरुष डाक्टरों का सचित्र चित्रण से वास्तविक भावनाओ का स्वतः विष्लेषण भी हो जाता है। यही नहीं जननी सुरच्छा योजना के अंतर्गत सीएमओ अरुण कुमार पांडे के संरच्छन में सरकारी धन को डकार रहे अधिकारी व ठेकेदारों की सज रही कोठियाँ भी उक्त योजनाओं की पोल खोलती नजर आती हैं। और यदि हम डीएम किंजल सिंह के ज़माने की बात करें तो जननी सुरच्छा योजना के अंतर्गत बीपीएल परिवार के लाभान्वितों की संख्या ही शून्य थी। जिस पर डीएम ने अधिकारियों के जवाब पर संदेह व्यक्त करते हुवे यहाँ तक कह दिया था कि”क्या गरीबों के घर में नहीं जन्मे बच्चे”,प्रदेश के इस चिकित्सालय में महिलाओं खासकर गरीब घर की महिलाओं के साथ हो रहे घोर अन्याय के बाउजूद धनलोलुपता के मद में चूर अधिकारी किसी भी स्तर पर इसे धरातल पर मानने को तैयार होते नहीं दीखते। जबकि जननी सुरच्छा योजनान्तर्गत करोङो रुपयों के घोटाले के तार सीएमओ के दफ्तर से जुड़े होने के कई सुबूत भी मिल चुके हैं। जिसमे जिम्मेदार अफसरों के सांठ-गाँठ से योजना में धांधली भी की गई है। जांच अधिकारी भी स्वीकार कर चुके हैं कि धन हड़पने की साजिश एक योजना के तहत की गई है जिसमे बहराइच की कुर्सी से चिपकने का आदी एक बाबू भी अपने ही घर के लोगों के नामों से कई फर्मे बनवाकर यहाँ से लेकर श्रावस्ती तक भ्रष्टाचार का न सिर्फ तांडव नृत्य करता रहा बल्कि अपने पावर के दम पर अपने स्थानांतरण पत्र को भी प्रभावित करता रहा। और ऐसी परिस्थितियों में प्रधानमन्त्री मातृत्व वंदना योजना के तहत लाभार्थियों को लाभ न मिल पाना कोई बड़ी बात नहीं दिखती। जबकि जांच के नाम पर अफसर सहयोग करने के बजाय मामला दूसरी दिशा में ले जाने की कोशिश करते हैं। सत्यापन रजिस्टर में फोटो किसी का लगा होता है और लाभ किसी और महिला को दे दिया जाता है। क्रॉस चेकिंग के लिए जब लाभार्थी से मिलने का प्लान तय होता है तो इन्हीं अफसरों पर झूंठी बयानबाजी दिलवाने के आरोप भी लगते रहे हैं। ऐसे में प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर बाल पुष्टाहार एवं बेसिक शिच्छा मंत्री अनुपमा जायसवाल का यह बयान देना कि कोई भी लाभार्थी सरकारी योजनाओं से नहीं रहेगा वंचित ढोंग नहीं तो और क्या है?क्या यही हिंदुस्तान की आधी आबादी की प्राथमिकता है?क्या इसी का नाम महिला सशक्तिकरण है?क्या ऐसे ही बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का सपना साकार होगा?क्या यही है जिले की आशाओं का फालोअप?क्या ऐसे ही कम होंगे मातृ एवं शिशु दर?ऐसे ही न जाने कितने सवाल होने के बावजूद यहाँ टीकाकरण के गीत गाकर ब्लाकवार डाक्टरों और आशाओं को प्रशस्ति पत्र बांटे जा रहे हैं। अधिकारियों द्वारा एक दूसरे की पीठ थापथपाय व थपथपावाये जा रहे हैं। जिस जिले में अस्पताल के डॉक्टरों की संवेदनहीनता व निर्दयता के कारण प्रसूताओं को अस्पताल की चौखट से लेकर सड़कों पर प्रसव करना पड़ रहा हो और सीएमओ को कई बार फोन करने पर भी पत्रकार को कोई जवाब न दिया जा रहा हो वहां प्रधानमन्त्री मातृ वंदना योजना का क्या हाल होगा इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।

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