मोहर्रम का चांद दिखाई देने के साथ ही मातमी अंजुमनों ने बुधवार रात से इमाम बरगाहो व मजलिस वाले स्थानों को साफ-सफाई के बाद आलम उठा कर और ज़िक्र ए कर्बला (मोहर्रम) का आगाज किया। मस्लिम महिलाओ ने भी अपनी चूड़ियां इमाम के ग़म में तोड़ी दी। मोहर्रम का महीना शुरू होते ही हजरत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत की याद दिलाता है। हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम रसूले खुदा के नवासे थे। जिन्होंने करबला के मैदान में इंसानियत को बचाने के लिए अपने छह माह के बच्चे से लेकर नौजवानों और बूढ़ों की कुर्बानी दी थी और खुद भी शहादत हुवे थे। उन्हीं की याद में मुस्लिम समुदाय मोहर्रम के महीने में हजरत इमाम हुसैन का शोक मनाते हैं। मोहर्रम के महीने में मजलिसों तथा जुलूसों के माध्यम से हजरत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का पैगाम लोगों तक पहुंचाया जाता है। बुधवार की शाम मोहर्रम का चांद दिखाई देते ही शिया मुस्लिम समुदाय ने हजरत इमाम हुसैन तथा करबला के 72 शहीदों की याद में इमाम बारगाहों में अलम और ताजिये सजाए। इसी के साथ सोगवारों का इमाम बारगाहों में आना जाना शुरू हो गया। चांद दिखने के बाद कौशांबी जिले के हर कस्बे और गांवो में ज़िक्र ए कर्बला का सिलसिला शुरू हो गया।
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