2014 के मोदी लहर में अपने 35 साल के सियासी सफर में हाशिए पर पहुंच चुकी बसपा सुप्रीमो मायावती एक बार फिर न केवल यूपी बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर धमाकेदार वापसी की तैयारी कर रही है. इसके लिए हथियार भी उन्होंने मोदी विरोध को ही बनाया है. मायावती के लिए कहा जाता है कि मौके पर वह चौका मारने से नहीं चूकतीं. यही वजह है कि जब उनकी मोदी विरोध के साथ पूरा विपक्ष एकजुट हो गया है, तो वे इस मौके को हाथ से जाने नहीं देना चाहती. यही वजह है कि कर्नाटक चुनाव के बाद मायावती बड़ी तेजी से यूपी महागठबंधन बनाने में जुटी हुई है. महागठबंधन की धूरी भी वही हैं.दरअसल, राष्ट्रीय स्तर की पार्टी कांग्रेस के साथ-साथ सपा और रालोद के समझ में भी यह बात आ गई है कि अगर बीजेपी के बाद सबसे बड़ा कैडर किसी के पास है तो वह बसपा का ही है. इसके अलावा 22 फ़ीसदी के करीब दलित वोट बैंक भी मायावती को गठबंधन में महत्वपूर्ण बनाता है.बसपा के वरिष्ठ नेता ठाकुर उम्मेद सिंह कहते हैं कि मायावती ही एक ऐसा चेहरा हैं जिन्हें दलित से लेकर मुस्लिम और सवर्णों का समर्थन प्राप्त है. 2019 में मोदी को रोकने के लिए मायावती ही एक चेहरा हो सकती हैं. उम्मेद सिंह के मुताबिक आज बीजेपी और मोदी से समाज का हर तबका नाराज है. लिहाजा एक ऐसे सर्वमान्य नेता की जरुरत है जो मोदी का विकल्प बन सके. इसके अलावा उनका कहना है कि गठबंधन यूपी में ही नहीं अन्य राज्यों में भी होगा. जहां बसपा का कैडर पहले से ही मौजूद है.दूसरी तरफ 2012 के बाद पहली बार कर्नाटक में बसपा का कोई विधायक मंत्री बना है. लिहाजा मायावती न सिर्फ यूपी में वापसी की तैयारी में जुटी हैं, बल्कि वह गठबंधन के सहारे पार्टी और खुद को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने की तैयारी में हैं. उनकी इस को मजबूती गठबंधन के अन्य दल देंगे. मसलन, मध्यप्रदेश, राजस्थान और पंजाब में कांग्रेस से हाथ मिलाकर वे पांव ज़माने की जुगत में हैं. कांग्रेस के साथ गठबंधन को लेकर शीर्ष नेताओं के बीच बात भी हो रही है. वहीं, हरियाणा में अभय चौटाला की इंडियन नेशनल लोकदल के साथ गठबंधन पहले ही हो चुका है. इसी तरह बिहार, वेस्ट बंगाल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में भी गठबंधन के सहारे राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी को मजबूत करने की रणनीति बनाई जा रही है.
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