बहराइच। एक ओर जहाँ प्रदेश व केंद्र की सरकार बढ़ रहे प्रदूषण की उग्रता को देखते हुवे जंगलों से लेकर गांवों व शहरों तक नए पेड़ों को लगाने व पुराने पेड़ों को सम्हालने के लिए जद्दो जहद कर रही है वहीँ दूसरी ओर जिले में जगह जगह पर हरे पेड़ों की कटान होने के बाद भी जिम्मेदारों द्वारा कार्यवाही करने की बात तो दूर बल्कि सही जवाब तक नहीं दिए जाते हैं। यहाँ हम बात कर रहे हैं पालीटेक्निक कॉलेज की जहाँ पर छात्रों को इंजीनियरिंग की पढ़ाई के साथ साथ देश की तरक्की के गुरु भी सिखाय जाते हैं। बाउजूद कुछ हफ्ते पूर्व ही कॉलेज के इसी परिसर में महिला पालीटेक्निक के हो रहे निर्माण में 100 पेड़ों की परमिट के नाम पर सैकड़ों पेड़ काट दिए गए। बताया जा रहा है कि जिसमे कई बेशकीमती पेड़ जैसे सागवान,शीशम,आम जैसे फलदार पेड़ को भी सुनियोजित तरीके से प्रिंसिपल के आदेश से काट दिया गया। जिसकी जड़े विद्दमान होने के साथ साथ परिसर में ही काफी समय तक कटे हुवे पेड़ों के अवशेष भी पड़े रहें। सूत्र बताते है की तमाम बेशकीमती पेड़ों के अवशेष अतिथि गृह इत्यादि कई जगहों पर काफी समय तक ढेर के रूप में देखे जाते रहे लेकिन कार्यवाही के नाम पर कुछ भी देखने को नहीं मिला। जबकि प्रोसीजर के तहत टेंडर व नीलामी के बाद ही पेड़ों को कटवाकर प्राप्त धन को सरकार के खाते में जमा करवाने के बाद ही कार्य स्थल की सफाई करानी चाहिए। कहा तो यहाँ तक जा रहा है कि प्रिंसिपल के करीबी ठेकेदारों द्वारा काटी गई लकड़ी के बोटों की ढुलाई भी करवाई जाती रही। अपुष्ट सूत्रों की माने तो मामले को लेकर प्रिंसिपल को घटना की रात में ही पुलिस अपने साथ ले गई थी जिन्हें सुबह छोड़ दिया गया था। और तभी से प्रिंसिपल साहब विद्द्यालय से गायब बताये जाने लगे। और पुलिस की भूमिका भी संदिग्ध मानी जाती रही। मामले में मीडिया की भी दस्तक बताई गई लेकिन किन वजहों से यह हाई प्रोफाइल मामला चर्चा का विषय नहीं बना यह किसी के समझ में नहीं आया। सूत्र बताते हैं कि धीरे धीरे करोड़ों की बेशकीमती लकड़िया प्रिंसिपल की मनमानी से गायब होकर पर्यावरण को छति पहुचाने के बाद भी मामले में किसी भी प्रकार की प्रशाशनिक या दंडात्मक कार्यवाही नहीं की गई। जबकि पूरे मामले में पर्यावरण के साथ साथ राजस्व को भी भारी छति पहुचाईं गई है। संदर्भित प्रकरण के सन्दर्भ में जब डीएफओ से खरपतवार की आंड में बेशकीमती लकड़ियों के काटे जाने की बात पूछी गई तो कहा यदि किसी निर्माण कार्य में किन्ही पेड़ों की वजह से कोई बाधा आ रही हो तो उस पेड़ को काटा जा सकता है लेकिन जब उनसे पेड़ों की संख्या की परमिट की बात पूछी गई तो वे इसका सीधा सीधा उत्तर नहीं दे सके और समय समय पर तीन बार फोन करने के बाद भी पेड़ों की परमिट का हवाला नहीं दिया। जबकि कई बार कॉलेज जाने के बाउजूद कॉलेज के प्रधानाचार्य सुरेन्द्र पाल से मुलाकात नहीं हो सकी। मालूम हो की यह वही प्रधानाचार्य है जिनका गत वर्ष भी एक बड़ा मामला पूरे जनपद में चर्चा का विषय बना था।
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