जौनपुर। जंक्शन पर प्राइवेट व्यक्ति से ठेके पर सायकिल स्टैण्ड और शौचालय को चलाने वाले दबंग किस्म के लोग निर्धारित शुल्क से दोगुना अवैध वसूली कर रहे हैं। जिसके कारण लोग अपने आप को ठगा महसूस कर रहे हैं और उनकी शिकायत भी कोई सुनने वाला नजर नहीं आता जिसको वह अपने लूटने के बारे में बता सकें। सूत्रों की माने तो रेलवे विभाग ने तीन माह के कोटेशन पर सायकिल मोटर सायकिल और चार पहिया वाहनों के स्टैण्ड का ठेका दिया हुआ है लेकिन रेलवे विभाग ने जिसको ठेका दिया है वह स्वयं स्टैण्ड न चलाकर स्थानीय लोगों को ठेका दोगुनी रकम लेकर आपसी सहमति से स्थानीय लोगों को स्टैण्ड चलाने की जिम्मेदारी दे रखा है। अब इसी का लाभ उठाते हुए स्थानीय लोग रेलवे के निर्धारित शुल्क के आदेश की खुलेआम धज्जियां उड़ाते हुए स्टैण्ड पर रेट बोर्ड भी नहीं लगाते और मनबढ़ दबंगई के बल पर बारह घण्टे सायकिल को स्टैण्ड पर जमा करने का शुल्क पांच रूपया है तो इन लोगों द्वारा दस रूपया वसूला जाता है। यही हाल मोटरसायकिल और चार पहिया वाहन के स्वामियों से निर्धारित शुल्क से दोगुना वसूला जाता है और जब कोई दोगुना शुल्क देने से इंकार करता है तो कभी कभी उसकी दैहिक समीक्षा भी स्टैण्ड चलाने वालों द्वारा कर दिया जाता है। आखिर थक हार के अपने को असहाय समझ कर मुंह मांगा शुल्क चुकाना ही बेहतर समझ कर लौट जाने में ही अपनी भलाई महसूस करते हैं और जो इन्हें दोगुना शुल्क लेने से रोक सकते हैं वह भी मूक दर्शक बन कर सब कुछ देख कर भी मौन धारण कर सहमति दिये रहते हैं। जिसके चलते स्टैण्ड चलाने वालों के हौसले हमेशा बुलंद रहते हैं और वह अवैध वसूली को करने की मनमानी को बदस्तूर जारी रखते हैं। यह तो रही स्टैण्ड की समस्या। दूसरी समस्या बहुत ही विकट है तत्कालीन जिलाधिकारी रहे भाुनचन्द्र गोस्वामी ने शहर से अतिक्रमण हटवाने के दौरान जंक्शन के बाहरी भाग में गन्दगी और यात्रियों एवं क्षेत्रीय लोगों की सुविधा को ध्यान में रख कर मामूली सा निर्धारित शुल्क अदाकर सभी शौचालय का प्रयोग करेंगे और हर तरफ साफ सफाई नजर आयेगी। इसलिए रेलवे की भूमि होने के चलते विभाग को अनुमति पत्र लिखने के बाद राज सरकार के मद से शौचालय का भव्य निर्माण करा दिया। जिसको देखने के बाद महसूस भी होता है लेकिन तत्कालीन जिलाधिकारी और रेलवे विभाग के संबंधित अधिकारियों की मंशा पर पूरी तरह पानी फेरने का कार्य करते हुए शौचालय को ठेके पर चलाने वाले लोग शौच के लिए निर्धारित शुल्क दो रूपया रखा गया है लेकिन दस रूपया अवैध रूप से वसूलते हैं। स्नान करने का पांच रूपया है तो पन्द्रह से बीस रूपया स्नान करने का वसूला जाता है हालांकि जिनके कंधों पर यह अवैध वसूली रोकने की जिम्मेदारी दी गयी वह पूरी तरह मस्त रहकर ठेकेदार से साठ गाठ कर मौन धारण किये रहते हैं और लोग अपने आप को ठगा से महसूस कर लौट जाया करते हैं कि यह कहते हुए कि अंधे बहरों की नगरी में न कोई सुनने वाला है और न ही कोई देखने वाला है।
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