Breaking News

आवश्यकता है “बेखौफ खबर” हिन्दी वेब न्यूज़ चैनल को रिपोटर्स और विज्ञापन प्रतिनिधियों की इच्छुक व्यक्ति जुड़ने के लिए सम्पर्क करे –Email : [email protected] , [email protected] whatsapp : 9451304748 * निःशुल्क ज्वाइनिंग शुरू * १- आपको मिलेगा खबरों को तुरंत लाइव करने के लिए user id /password * २- आपकी बेस्ट रिपोर्ट पर मिलेगी प्रोत्साहन धनराशि * ३- आपकी रिपोर्ट पर दर्शक हिट्स के अनुसार भी मिलेगी प्रोत्साहन धनराशि * ४- आपकी रिपोर्ट पर होगा आपका फोटो और नाम *५- विज्ञापन पर मिलेगा 50 प्रतिशत प्रोत्साहन धनराशि *जल्द ही आपकी टेलीविजन स्क्रीन पर होंगी हमारी टीम की “स्पेशल रिपोर्ट”

Sunday, February 16, 2025 1:48:11 AM

वीडियो देखें

नये इंडिया के नये शेर!

नये इंडिया के नये शेर!
_____________ से स्वतंत्र पत्रकार _____________ की रिपोर्ट

रिपोर्ट : राजेन्द्र शर्मा

अब ये सेकुलर वाले क्या मोदी जी को नया इंडिया भी नहीं लाने देंगे! पहले बेचारों को अच्छे दिन नहीं लाने दिए। बेचारों ने कितनी कोशिश की। अठारह-अठारह घंटे काम किया और वह भी न कोई छुट्टी, न कोई ब्रेक और कोई फेमिली टाइम तक नहीं। बस भाषण और काम और हवाई यात्रा। उसके पहले भी भाषण और काम और हवाई यात्रा। और बाद में भी भाषण और काम और हवाई यात्रा। हवाई जहाज थककर पुराने पड़ गए और नये हवाई जहाज खरीदने पड़े, तब भी मोदी जी ने कोशिश नहीं छोड़ी। फिर भी सेकुलर वालों ने उन्हें अच्छे दिन नहीं लाने दिए, तो नहीं ही लाने दिए।

 

हर चीज में नुक्ताचीनी। हर कदम पर झगड़ा, हर बात पर किचकिच। कारखाना बेचें, तो क्यों बेचा? तेल पर टैक्स बढ़ाएं तो क्यों बढ़ाया? नोटबंदी करें, तो पब्लिक को लाइन में क्यों लगवा दिया? आजादी गैंग को जेल पहुंचाएं, तो आजादी पर कैंची क्यों चलायी? जेएनयू वालों को देशभक्ति सिखाने के लिए वहां टैंक रखवाएं, तो टैंक क्यों रखवा दिया? और तो और, सूट-बूट पहनने से लेकर मशरूम खाने जैसे पर्सनल मामलों पर भी किचकिच। चुनावी बांडों पर, रफाल जैटों पर, बुलेट ट्रेन पर भी किचकिच।

 

पट्ठों ने इतनी किचकिच करी, इतनी किचकिच करी, कि आजिज़ आकर खुद पब्लिक ने एक दिन मोदी जी से प्रार्थना करी कि अच्छे दिन अडानी जी, अंबानी जी के आ चुके सो उन्हें ही मुबारक, हमारे लिए तो आप बस एक ठो नया इंडिया ला दो!

 

अच्छे दिन लाने की शुरूआत होने के बाद, बीच में ही छोड़ना प्रधान सेवक जी को पसंद तो नहीं आया, पर डैमोक्रेसी में पब्लिक ही राजा होती है। राजा की मर्जी मानकर, अच्छे दिन लाने का प्रोग्राम छोड़ना पड़ा।

 

अब मोदी जी ने तो नया इंडिया लाने का नया प्रोग्राम पकड़ लिया, मगर इन सेकुलर वालों की किचकिच अब भी ज्यों की त्यों जारी है। हर छोटी-से-छोटी बात पर किचकिच। बताइए! अब तो ये इस पर भी किचकिच कर रहे हैं कि मोदी जी जो नयी संसद बनवा रहे हैं, उसके शिखर पर जो विशाल लाट लगवा रहे हैं, उसके शेरों की छाती इतनी चौड़ी क्यों है? कि ये शेर जो भी देखे, उसे फाड़-खाने की मुद्रा में क्यों हैं? अशोक की लाट वाले पहले के शेरों की तरह, ये शेर शांत क्यों नहीं हैं? बेचारी सरकार ने समझाने की कोशिश की कि लाट वही है, बस साइज का अंतर है, तो बंदे इसी पर शुरू हो गए, बात साइज की नहीं अनुपात की है। छाती से लेकर, खुले मुंह और उसमें से झांकते दांतों तक, मोदी लाट के शेरों का तो अनुपात ही गलत है।

 

अब इन्हें कोई कैसे समझाए कि अनुपात गलत नहीं है, नया है। लाट नयी है, संसद भवन नया है, बनवाने वाला नया है, तो शेर ही क्यों पुराना रहे? मोदी जी के नये इंडिया का नया शेर है तो, दहाड़ता हुआ और हर वक्त फाड़-खाने को तैयार ही तो होगा!

 

सच पूछिए तो पहले वाला तो शेर था ही नहीं। माने ऐसे सूरत-शक्ल से तो शेर था, मगर शेर वाली कोई बात ही नहीं थी। न शेरों वाली दहाड़ और न आंखों में शेरों वाला आतंक। और होता भी क्या? राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त ने जिस ‘‘बौद्घ भ्रांति भयावही’’ के बारे में बताया था, उसके चक्कर में सम्राट अशोक शांति-शांति करने लगे। तलवार से डराना छोडक़र धर्मोपदेश से लोगों को समझाने लगे। मूर्तिकार को तो राजा का अनुकरण करना ही था। जो हाल इंसानों के राजा का, मूर्तिकार ने वही हाल जंगल के राजा का कर दिया। शेर बनाया और एक नहीं चारों दिशाओं में मुंह किए चार-चार शेर बनाए, पर उनमें शेर की आत्मा ही नहीं डाली। तभी तो सारनाथ की अशोक वाली लाट के शेरों को बैठे देखकर, ऐसा लगता ही नहीं है कि ये शेर हैं। क्या लगता है, यह कहकर हम राष्ट्रीय पशु का अपमान नहीं करना चाहते। पर शेर लगता है, यह हम नहीं मान सकते। जरूर पुराने भारत में ऐसे ही शेरों के साथ बकरी, एक ही घाट पर पानी पीती होगी। पर ये नया इंडिया है। इसमें शेर, शेर ही रहेगा। जरूरत हो तो बकरी के लिए अलग घाट भी बनवाया जा सकता है। लेकिन, बकरी को शेर के घाट पर पानी पिलवाने के लिए, मोदी जी शेर को बकरी किसी को भी नहीं बनाने देंगे।

 

नये इंडिया में यह तुष्टीकरण नहीं चलेगा। शेर है, तो दहाड़ेगा भी। बकरी होगी, तो उसे डरना भी पड़ेगा। यही प्रकृति का नियम है। और नया इंडिया प्रकृति के नियमों से ही चलेगा, कृत्रिम मानवतावादी नियमों से नहीं। हां! शेर और बकरी के रिश्ते की मिसाल से, हलाल को सही ठहराने की कोशिश कोई नहीं करे।

 

पुराने भारत में बहुत हो ली शेर को बकरी बनाने की कोशिश, अब और नहीं। नये इंडिया में शेर को फिर से जंगल का राजा बनाया जाएगा। जैसे इतिहास को सुधारा जा रहा है, पृथ्वीराज से लेकर सावरकर तक सब का गौरव संवारा जा रहा है, जैसे गाय का दर्जा उठाया जा रहा है, वैसे ही शेर का दर्जा ऊपर उठाया जाएगा। उसे भूखा शेर बनाया जा रहा है, जिससे उसे देखकर ही नहीं, उसकी दहाड़ भर सुनकर पूरा जंगल थर्राए। नये इंडिया के नये शेर को बकरी समझने की गलती कोई न करे। देश में अगर कोई हमारे शेर को बकरी समझेगा, तो शेर का पंजा खाएगा। 2002 में शेर की नाक में तिनका करने के लिए, 2022 में षडयंत्र के लिए लंबे टैम के लिए जेल जाएगा। और बाहर वाला तो कोई हमारे शेर को बकरी समझने की गलती करेगा ही क्यों? खैर! जरूरत पड़ी तो हम पब्लिसिटी पर पैसा पानी की तरह बहा देंगे, पर अपने शेर के वाकई का शेर होने का सारी दुनिया को विश्वास दिला देंगे।

 

मोदी लाट के घोड़े की पूंछ कुत्ते जैसी क्यों हो गयी, इसका जिक्र कोई नहीं करेगा। और ‘सत्यमेव जयते’ के गायब होने का जिक्र तो और भी नहीं। आखिर, नये इंडिया की नयी संसद की नयी लाट है। इतने नयों के बीच पुराने ‘सत्यमेव जयते’ का क्या काम? सत्य-सत्य जपने के चक्कर में मियां जुबैर जेल में यूं ही थोड़े ही पड़े हैं। ‘सत्यमेव जयते’ अगर नये इंडिया की जेल में नहीं है, तो जरूर नयी संसद की असंसदीय शब्दों की सूची में आ गया होगा। ‘सत्यमेव जयते’ की जगह भी कुछ नया हो ही जाए–फेकेव जयते!

 

*इस व्यंग्य आलेख के लेखक वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोक लहर’ के संपादक हैं।

व्हाट्सएप पर शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *