Breaking News

आवश्यकता है “बेखौफ खबर” हिन्दी वेब न्यूज़ चैनल को रिपोटर्स और विज्ञापन प्रतिनिधियों की इच्छुक व्यक्ति जुड़ने के लिए सम्पर्क करे –Email : [email protected] , [email protected] whatsapp : 9451304748 * निःशुल्क ज्वाइनिंग शुरू * १- आपको मिलेगा खबरों को तुरंत लाइव करने के लिए user id /password * २- आपकी बेस्ट रिपोर्ट पर मिलेगी प्रोत्साहन धनराशि * ३- आपकी रिपोर्ट पर दर्शक हिट्स के अनुसार भी मिलेगी प्रोत्साहन धनराशि * ४- आपकी रिपोर्ट पर होगा आपका फोटो और नाम *५- विज्ञापन पर मिलेगा 50 प्रतिशत प्रोत्साहन धनराशि *जल्द ही आपकी टेलीविजन स्क्रीन पर होंगी हमारी टीम की “स्पेशल रिपोर्ट”

Sunday, February 9, 2025 7:24:43 PM

वीडियो देखें

झंडा ऊंचा रहे हमारा!

झंडा ऊंचा रहे हमारा!
_____________ से स्वतंत्र पत्रकार _____________ की रिपोर्ट

रिपोर्ट : राजेन्द्र शर्मा

शुक्र है कि मोदी जी विरोधियों के विरोध की परवाह नहीं करते हैं। न संसद में, न सडक़ पर। बल्कि वह तो किसी की सुनते भी नहीं हैैं, विरोधियों तो विरोधियों, अपनों की भी नहीं। अपनों की छोडि़ए, खुद अपने मन की भी नहीं, बस अपने मन की दूसरों को सुनाते हैं। जो सुनेगा ही नहीं, उसके किसी के कहे की परवाह करने का सवाल ही कहां उठता है। और जब न किसी की सुनी जाएगी और न किसी बात की परवाह होगी, तो फिर काहे का अटकना और काहे का लटकना, भटकना वगैरह। एक बार तय कर लिया, तो उसके बाद तो रिकार्ड बनाने के रास्ते पर देश का सरपट दौड़ना ही रह जाता है।

 

इसीलिए तो, अब दुनिया में नये इंडिया का डंका नॉन स्टॉप बज रहा है। एक रिकार्ड का डंका बजना बंद नहीं होता है कि उससे पहले, दूसरे रिकार्ड का डंका बजना शुरू हो जाता है। मसलन फोर्ब्स के डाटा के हिसाब से मोदी जी के नये इंडिया का वर्ल्ड में नंबर वन होने का डंका बजना अभी ठीक से शुरू हुआ ही है, तब तक झंडा फहराने में वर्ल्ड नंबर वन का हमारा रिकार्ड, डंका बजवाने की क्यू में भी लग चुका है। माना कि झंडा फहराने का वर्ल्ड रिकार्ड अभी बनना बाकी है, पर डंका बजवाने की अग्रिम बुकिंग करने में ही समझदारी है। जब तक विश्व झंडा गुरु का डंका बजने का नंबर आएगा, तब तक अमृत वर्ष वाला पंद्रह अगस्त भी आ जाएगा। और विरोधियों की टांग अड़ाने की सारी कोशिशों के बावजूद, तिरंगा फहराने का विश्व रिकार्ड तो बनना ही बनना है।

 

और कुछ नहीं मिला, तो विपक्ष वाले अब बाहर से तिरंगों के आयात पर हल्ला मचा रहे हैैं। कह रहे हैं कि पहले झंडा खादी का होता था। हाथ की खादी की जगह, मिल के, पॉलिएस्टर वगैरह के झंडे का रास्ता खोलकर, खादी बनाने वालों के पेट पर लात मारी, बहुत गलत किया। पर वहां तक तो फिर भी देश का झंडा देश में ही बनना था। यानी खादी नहीं, पॉलिएस्टर सही, पर तिरंगा कम से कम देशी तो था। अब तो विदेशी झंडा आएगा और दूसरों के बनाए झंडों की गिनती पर भारत इतराएगा! हथियार में, पूंजी में, तेल में, जरूरत की दूसरी बहुत सी चीजों में, बड़ी मशीनरी में, शिक्षा में, चिकित्सा में परनिर्भरता के बाद, अब तिरंगे में भी परनिर्भरता! क्या हुआ आत्मनिर्भरता का तेरा वादा? पर तिरंगे बनाने में आत्मनिर्भरता का तो सिर्फ बहाना है, विरोधियों का असली मकसद तो झंडे फहराने का विश्व रिकार्ड बनाने के रास्ते से मोदी जी को डिगाना है। वर्ना मंत्री किरण कुमार रेड्डी की इस सफाई के बाद तो सारा विवाद खत्म ही हो जाना चाहिए था कि वर्ल्ड रिकार्ड बनाने के लिए जितने झंडे चाहिए, उतने झंडे खादी वाले दो-तीन हफ्ते में तो क्या, दो-तीन महीने में भी बनाकर नहीं दे सकते थे। यानी चॉइस एकदम क्लीअर थी, या तो झंडों का वर्ल्ड रिकार्ड बना लो या फिर खादी के झंडे बना लो। जाहिर है कि मोदी जी को तो वर्ल्ड रिकार्ड ही चुनना था। आजादी के अमृतकाल में नये इंडिया की एंट्री को धमाकेदार बनाने पर मोदी जी कंप्रोमाइज हर्गिज नहीं कर सकते थे। आखिरकार, दुनिया भर में भारत का डंका बजवाते रहने का सवाल है।

 

और रही बात खादी की तो, मोदी विरोधी यह क्यों भूलते हैं कि आजादी की लड़ाई लडऩे वालों ने सिर्फ खादी का ही सपना नहीं देखा था। खादी भी थी उनके सपनों में, गांधी जी ने तो नेहरू जी, सरदार पटेल, सब से खादी बुनने-कातने की प्रैक्टिस भी करायी थी, फिर भी स्वतंत्रता के लिए लड़ने वालों के सपनों में सिर्फ खादी ही नहीं थी। और आजादी का उनका सपना, सिर्फ भारत की आजादी तक सीमित हर्गिज नहीं था। वे सारी दुनिया की आजादी की सोचते थे। वे सारी दुनिया के हित की सोचते थे। वे वसुधैव कुटम्बकम के आदर्श पर चलते थे। तब आजादी की लड़ाई के सैनिकों के सपनों का भारत बनाने में लगे मोदी जी, आजादी के अमृतकाल को सिर्फ भारत का नहीं बल्कि पूरी दुनिया का उत्सव बनाने से कैसे चूक जाते। और भारत की आजादी के 75 वर्ष पूरे होने के उत्सव को विश्व उत्सव बनाने का इससे अच्छा तरीका क्या हो सकता था कि जो भी है, जितना भी है, सब मिल-बांटकर खाएं; सब मिल-जुलकर तिरंगे बनाएं। ‘मेरा-तेरा कुछ नहीं, सब हमारा’ के इसी भाव को, तिरंगों का आयात प्रकट करता है। वैसे भी इस समय दुनिया भर में आर्थिक मंदी की परछाईं पड़ रही है। ऐसे में विश्व गुरु होने के नाते भारत को तो दूसरों की मंदी मिटाने में मदद तो करनी ही होगी। और उन्हें तिरंगों के निर्यात का नया बाजार मुहैया कराने से ज्यादा ठोस मदद और क्या दी जा सकती है? पड़ोस में कारखानों की भट्टियां ठंड़ी हों और हम अमृत काल में एंट्री का जश्न मनाएं, यह तो वैसे भी हमें अच्छा नहीं लगेगा। मिठाई का असली स्वाद तो पास-पड़ोस में बांटकर खाने में ही है। हमारे साथ, हमारी खुशी में सारी दुनिया शामिल हो, यह कौन नहीं चाहेगा! और इसे दूसरों के लिए रेवडिय़ां बांटने से कन्फ्यूज कोई नहीं करे। सब कुछ के बावजूद यह लेन-देन का मामला है, देश की पब्लिक को रेबड़ियां बांटने का नहीं, जिससे मोदी जी को अब एक नफरत-सी हो गयी है।

 

बाहर से आने वाले तिरंगों में चीनी तिरंगे कितने हैं, जाहिर है कि इसका कोई डाटा सरकार के पास नहीं है। सरकार देश भर में लगाए जा रहे रहे झंडों का डाटा रखे या चीन से आ रहे झंडों का? क्या ज्यादा जरूरी है? फिर बनाए कोई भी, बनेगा तो हमारा तिरंगा ही। बल्कि बनने के चक्कर में ही सही, दूसरे देशों में तिरंगा लहराएगा भी तो। यानी कुल झंडों की गिनती, भारत में गिने जाने वाले झंडों से भी कुछ न कुछ फालतू जरूर होगी। और इस सब के ऊपर से मोदी जी की मन की बात सुनकर, सोशल मीडिया में प्रोफाइल की डीपी में तिरंगे लगाए जाएंगे, वह और। है कोई झंडे फहराने के विश्व रिकार्ड में हमें टक्कर देने के लिए। चीनी हो सकते थे, पर उस से तो मोदी जी तिरंगे सिलवा रहे हैं। पंद्रह अगस्त का अपना वर्ल्ड वाकओवर पक्का।

 

इस व्यंग्य के लेखक वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।

व्हाट्सएप पर शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *