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Wednesday, April 23, 2025 10:44:37 PM

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बेहूदे समय के त्रासद प्रहसन : डकैत रमेश सिकरवार बने चीता मित्रों के महानायक

बेहूदे समय के त्रासद प्रहसन : डकैत रमेश सिकरवार बने चीता मित्रों के महानायक
_____________ से स्वतंत्र पत्रकार _____________ की रिपोर्ट

रिपोर्ट: बादल सरोज

 

चीता पुराण को लेकर चले मंथन की सबसे चटख खबर है डाकू रमेश सिकरवार का चीता मित्र के रूप में नायक बनकर सामने आना। मध्यप्रदेश सरकार ने उसे चीता मित्र बनाया है। नामीबियाई चीतों और बर्थडे बॉय मोदी जी के बाद सबसे ज्यादा सुर्खियां इस पूर्व – अभूतपूर्व – डकैत के हिस्से में आयी। टीवी चैनलों ने बहुत रच-बस के इनके इंटरव्यूज दिखाये। खलनायक को नायक बनाया!! इन पंक्तियों का लेखक मोहर सिंह, माधो सिंह, मलखान सिंह से लेकर फूलन देवी तक चम्बल के सभी दस्युओं के साथ जेल में रह चुका है। वे सब अपने को डाकू नहीं “बागी” कहते थे – उनकी बात में दम था। बाद में उन्होंने भले कुछ भी किया हो, मगर उनकी शुरुआत किसी सामंत, किसी गुंडे, किसी थानेदार के जुल्म या न्याय व्यवस्था द्वारा इन्साफ न करने की वजह से उपजी खीज और छटपटाहट से हुयी थी। मगर एक प्राइवेट बस में क्लीनरी करने वाला रमेश सिकरवार खालिस डकैत था – वह बागी नहीं था, जमीन के पारिवारिक विवाद में अपने ख़ास चाचा, जो जाहिर है कोई सिकरवार ही रहे होंगे, की हत्या करके डांग में कूदा था।

 

पुलिस रिकॉर्ड में डकैत रमेश सिकरवार पर 250 मामले दर्ज थे, जिसमें 70 हत्याओं के थे – मगर खुद रमेश के अनुसार यह संख्या सही नहीं है। उसके अनुसार “वह 101 हत्याओं का संकल्प लेकर डकैत बना था।” इस शास्त्र सम्मत शुभांक को पूरा करने के बाद ही सरेंडर किया था। सरेंडर के बाद बजाय किसी केंद्रीय जेल में भेजने के उसे ज्यादातर सबलगढ़ की जेल में ही रखा गया, ताकि वहां से भी उसकी चौधराहट चल सके।

 

*लालझण्डे ने निकाली थी हैंकड़ी*

 

सरकार ने भले उसे अपना मेहमान बनाकर रखा हो, सबलगढ़ की खुद्दार जनता और उसको साथ लेकर लाल झण्डे की लड़ाईयों ने उसकी सारी हैंकड़ी निकाल दी। इतने सारे अपराधों के बाद भी रमेश सिकरवार को जल्दी ही रिहाई मिल गयी थी और कुंवर अर्जुन सिंह की सरकार ने उसे जाटवों के दलित बहुल गाँव कैमपुरा में जमीन के पट्टे दे दिए। तब मध्यप्रदेश किसान सभा के महासचिव, बाद में सीपीएम के राज्य सचिव बने कामरेड बहादुर सिंह धाकड़ की अगुआई में किसान इकट्ठा हुए और इस जमीन को डकैतों के गिरोह के कब्जे में जाने से रोकने के लिए लड़ाई छेड़ दी। आसान नहीं थी यह लड़ाई – जान से मारने की धमकियों से लेकर शरीके जुर्म पुलिसिया अफसरों के जरिये दबाब बनाना शुरू हो गया।

 

कैमपुरा में हो रही ऐसी ही एक ग्रामीण सभा में इलाके के प्रतिष्ठित और सबके आदरणीय माकपा नेता कामरेड मुन्ने खां टेलर और हरदिल अजीज कामरेड गणेश मरैया मंच पर थे और तब के युवा नेता अशोक तिवारी भाषण दे रहे थे कि तभी एकदम चाइना गेट की फ़िल्मी स्टाइल में खुली जीप में बंदूकें लहराते हुए रमेश सिकरवार का गैंग आ धमका – मगर जनता जनता होती है और अगर उसके हाथ में लाला झंडा हो, तो उसके नीचे लगा डण्डा किसी भी दोनाली या माउजर से ज्यादा ताकतवर होता है। गाँव वालों ने भरी जीप को खदेड़ बाहर किया और अंततः सरकार को भी यह लीज रद्द करनी पडी।

 

इसके बाद इस गिरोह को चम्बल किनारे के केवटों के गाँव रायड़ी राधेन टपरा नाम के गाँव के पास जमीन दी गयी। धाकड़ साब की अगुआई में लाल झण्डा वहां भी पहुंचा – यहां भी पट्टे रद्द कराये। तीसरी बार सबलगढ़ की बजाय कैलारस के भुरावली गाँव में पट्टे दिए। अब तक किसान डकैतों को पड़ोसी न बनने देने की लड़ाई लड़ना और जीतना सीख चुके थे। किसान सभा के साथ मिलकर ग्रामीणों ने यहां भी आंदोलन चलाया। यहां से भी खदेड़ा गया गिरोह।

 

सब जगह से खदेड़े जाने के बाद रमेश सिकरवार वीरपुर – श्योपुर के जंगल में बस गया । वर्चस्व बनाने के लिए अपनी हरकतें यहां भी आजमाई हैं। सुनते हैं 4-5 साल पहले यहां भी उसका नाम एक हत्या में आया। मोदी जी की यात्रा के दौरान दिए टीवी इंटरव्यू में उसने बताया है कि वह “पालपुर के अभयारण्य में 50 एकड़ जमीन पर खेती कर रहा है।” गरीब सहरिया आदिवासियों की झोंपड़ियों पर जेसीबी चलाने वाली, उनकी 10-20 बिस्बा जमीन पर खड़ी फसल को भी ट्रेक्टरों से रौंदने वाली शिवराज सरकार और उसके फारेस्ट के जंगलियों ने संरक्षित वन में बने अभयारण्य में रमेश सिकरवार के जमीन कब्जाने पर न कोई सवाल उठाया है – न भविष्य में उठाएंगे, क्योंकि जनाब अब चीता मित्र हो गए हैं।

 

कहते हैं कि सियार का मुंह सियार सूंघ लेता है। एक जैसे लोग स्वाभाविक रूप से एक दुसरे से हिलमिल जाते हैं। ऐसे ही हेलमेल का ताजा उदाहरण है, स्वघोषित 101 हत्याओं अपराधी डकैत रमेश सिकरवार का चीता मित्रों का महानायक बनना।

 

यह सवाल बाजिब होगा कि क्या अपराधियों को सुधरने और प्रायश्चित करने के बाद डाकुओं को शान्ति से अपना जीवन गुजारने का अधिकार नहीं है? बिलकुल है !! अंगुलिमाल से लेकर वाल्मीकि होते हुए फूलन देवी तक के उदाहरण हैं। मगर सवाल यह है कि क्या संबंधित अपराधी सुधर गया है ? टीवी चैनलों और ज्ञानी कलमघिस्सुओं ने भरे गले से इस आत्मसमर्पित डाकू को गांधीवादी करार दिया है।

इन सरकार नियुक्त चीता-मित्र रमेश सिकरवार के टीवी पर दिए सार्वजनिक एलान को सुनिए। उसका गांधीवादी दावा है कि “यहां कोई शिकार करेगा तो वह उसके हाथ काट देगा।” क्या किसी पुलिसिये ने इसका संज्ञान लिया या फिर हुकूमत निश्चिन्त है कि कूनो पालपुर के जंगलों में उसने नामीबियाई चीतों के साथ कुछ भेड़िये भी छोड़ दिए हैं।

 

*(लेखक बादल सरोज लोकजतन के संपादक और अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव हैं। संपर्क : 94250-06716)*

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