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Thursday, March 27, 2025 6:35:20 PM

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षडयंत्र ही षडयंत्र, गिन तो लें!

षडयंत्र ही षडयंत्र, गिन तो लें!

रिपोर्ट : राजेंद्र शर्मा

 

लीजिए, गिन लीजिए, अमृतकाल वाले मोदी जी के भारत के खिलाफ एक और विदेशी षडयंत्र सामने आ गया। वैश्विक भूख सूचकांक वालों ने अमृतकाल तक का ख्याल नहीं किया और भारत को और नीचे खिसका दिया। 125 देशों में 111वें नंबर पर। पिछले साल के 107 वें नंबर से भी नीचे। मोदी जी गंगाजली उठाकर, पार्वती-कैलाश को साक्ष्य मानकर के पांच साल में साढ़े तेरह करोड़ लोगों को गरीबी से उबारने का एलान ही करते रह गए; इन पट्ठों ने देश को भूख के जबड़े में और भीतर खिसका दिया। यह अगर विश्व गुरु के खिलाफ षडयंत्र नहीं है, तो और क्या है?

 

पर षडयंत्र एकाध होता, तब तो मोदी जी और उनके जेम्स बांड जी चुटकियों में निपट लेते। पर यहां तो षडयंत्रों का तांता लगा हुआ है। भूख सूचकांक पर नीचे खिसकाने के षडयंत्र का सरकार मुंह तोड़ जवाब दे भी नहीं पायी थी, कि दूसरी तरफ से लंदन के फाइनेंशियल टाइम्स ने अडानी भाई की कोयले की दलाली में कालिख दिखाने का षडयंत्र चला दिया। लगता है, भूख सूचकांक दर्शन की तरह ही, अडानी कलंक-प्रदर्शन भी, सिंगल-सिंगल षडयंत्र नहीं, षडयंत्र के सीरियल हैं। एक एपीसोड खत्म होता नहीं है, तब तक भाई लोग दूसरे की शूटिंग शुरू कर देते हैं; एंटी-भारत कहीं के!

 

फिर भी, षडयंत्रों की इस भीड़ में न्यूजक्लिक वाले षडयंत्र को कोई भूले नहीं। आखिर, वह डाइरेक्ट चीनी षडयंत्र है — दुश्मन देश का षडयंत्र। और वह भी सिंपल षडयंत्र नहीं, षडयंत्र के अंदर षडयंत्र। चीनी पैसे के षडयंत्र के भीतर, मोदी जी के भारत के खिलाफ प्रचार का षडयंत्र। प्रचार के षडयंत्र के भीतर, किसानों के आंदोलन का षडयंत्र। किसानों के आंदोलन के अंदर, देश में आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई ठप्प करने का षडयंत्र। षडयंत्र-दर-षडयंत्र होते हुए, अंतत: मोदी जी की कुर्सी हिलाने का षडयंत्र!

 

पर अब इन षडयंत्रकारियों की खैर नहीं। इन खबरिया षडयंत्रकारियों की छोड़ो, उन लेखक टाइप षडयंत्रकारियों की भी खैर नहीं, जो मोदी जी के कुर्सी पर आने से पहले से, उनकी कुर्सी को हिलाने का षडयंत्र रच रहे थे। पट्ठी अरुंधती राय ने तो पूरे चार साल पहले, 2010 से ही षडयंत्र शुरू कर दिया था। उससे और पहले, इंदिरा ने, नेहरू ने। कम्युनिस्टों ने। पर अब किसी की भी खैर नहीं। मोदी जी ने संसद को सेंगोल उर्फ राजदंड का मंदिर जो बना दिया है।

 

व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।

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