बहराइच 28 अक्टूबर। कृषि विज्ञान केन्द्र बहराइच प्रथम के सभागार में इन सीटू परियोजना के तहत आयोजित जनपद स्तरीय फसल अवशेष प्रबंधन कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए जिलाधिकारी डॉ दिनेश चन्द्र ने कहा कि भारत जैसे कृषि प्रधान देश की समृद्धि एवं विकास की रीढ़ किसान व श्रमिक हैं। मा. प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी व प्रदेश के मा. मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ की शीर्ष प्राथमिकता गॉव, गरीब व कृषक हैं। यही वजह है कि केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा किसानों के उत्थान के लिए अनेकों योजनाएं एवं कार्यक्रम संचालित किये जा रहे हैं।
जिलाधिकारी डॉ. चन्द्र ने कहा कि फसल अवशेष प्रबन्धन आज की प्रमुख ज़रूरत है। डॉ. चन्द्र ने किसानों का आहवान किया कि फसलों की कटाई के बाद बचे हुए डंठल तथा गुड़ाई के बाद बचे हुए पुआल, भूसा, तना तथा जमीन पर पड़ी हुई पत्तियों आदि का बेहतर प्रबन्धन कर भूमि की उर्वरा शक्ति में इज़ाफा कर अपनी आय को बढ़ा सकते हैं। डॉ. चन्द्र ने कहा कि विगत एक दशक में मशीनों का प्रयोग बढ़ने से खेतिहर मजदूरों की कमी की वजह से भी यह एक आवश्यकता बन गई है। ऐसे में कटाई व बुनाई के लिए कम्ंबाइन हार्वेस्टर का प्रचलन बहुत तेजी से बढ़ा है। जिसकी वजह से भारी मात्रा में फसल अवशेष खेत में पड़ा रह जाता है। इसलिए फसल अवशेष का समुचित प्रबन्धन करना आज एक बहुत बड़ी चुनौती है।
इससे पूर्व जिलाधिकारी ने दीप प्रज्ज्वलित कर तथा पं. दीन दयाल उपाध्याय के चित्र पर माल्यार्पण कर फसल अवशेष प्रबन्धन कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। तदोपरान्त लहसुन की दो प्रजातियां जी 323 व जी 282 व सरसों बीज के मिनी किट का वितरण किया गया। कार्यक्रम के दौरान जिलाधिकारी डॉ. चन्द्र ने सभी उपस्थित लोगों को पराली न जलाने की शपथ दिलायी।
उप कृषि निदेशक टी.पी. शाही ने कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए बताया कि फसल अवशेष जलाने से मृदा में होने वाली हानियों से भूमि के कार्बनिक पदार्थ नुकसान होने से के साथ फसल अवशेष से मिलने वाले पोषक तत्वों से मृदा वंचित रह जाती है तथा जमीन की ऊपरी सतह पर रहने वाले मित्र कीट एवं केंचुआ आदि भी नष्ट हो जाते हैं। कृषि विज्ञान केन्द्र के अध्यक्ष डॉ. बी.पी. शाही ने बताया कि फसल अवशेष जलाने से ओजोन परत का क्षरण होने से ग्रीन हाउस गैसों का अधिक मात्रा में उत्सर्जन होने से पर्यावरण को काफी नुकसान पहुॅचता है। जिला कृषि अधिकारी सतीश कुमार पाण्डेय ने कहा कि फसल विविधीकरण द्वारा अवशेष जलाने की समस्या से निजात मिल सकता है।
जिला उद्यान अधिकारी पारसनाथ ने बताया कि गन्ने की कटाई के बाद रोटरी डिस्क ड्रिल से गेहूं की बिजाई को बड़े पैमाने पर प्रचलित कर गन्ना फसल में प्रभावी अवशेष प्रबंधन किया जा सकता है। कृषि वैज्ञानिक डॉ. शैलेन्द्र्र सिंह ने बताया कि पराली जलाने से अस्थमा और दमा जैसी सांस से सम्बन्धित बीमारियों के मरीजों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। हाल के वर्षों में फसल अवशेष जलाने के वजह से कैंसर जैसी बिमारी के मरीजों की संख्या में वृद्धि हुई है। जनपद स्तरीय जागरूकता कार्यक्रम में लगभग में कुल 240 कृषकों ने प्रतिभाग किया।
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