वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी ने साबित कर दिया कि देश में गरीबों और मजदूरों के लिए कोई जगह नहीं है पहले भी बगैर किसी तैयारी के अचानक उन्होंने मोहम्मद बिन तुगलक की तरह कोरोना का मुकाबला करने के नाम पर महज चार घंटे के नोटिस पर लाकडाउन का एलान कर दिया। उनके लाकडाउन के एलान का शिकार देश का गरीब और मजदूर तबका हो गया। तकरीबन साठ दिनों के लाकडाउन के दौरान उन्होंने चार बाद देश से खिताब (सम्बोद्दित) किया। एक बार भी उनकी जुबान पर मजदूरों का नाम नहीं आया। बारह मई को उन्होंने बीस लाख के भारी भरकम राहत पैकेज की शक्ल में झूट का जो पुलिंदा मुल्क की आंखों में द्दूल झोकने के लिए फेंका उसमें उन्होंने उन्हीं माइक्रो, स्माल और मीडियम इण्डस्ट्रीज को हजारो करोड़ रूपये कर्ज की शक्ल में सौंप दिए जिन बेईमान और बेरहम एमएसएमई मालिकान ने लाकडाउन होते ही मुलाजमीन को न सिर्फ तंख्वाहें देना बंद कर दिया बल्कि उनके लिए खाने पानी और दवाइयों तक का इंतजाम नहीं किया और उन्हें लावारिसों की तरह पुलिस की लाठियाँ खाने के लिए छोड़ दिया। उन्हीं एमएसएमई इकाईयों को तीन लाख करोड़ रूपये के कर्ज बगैर किसी कोलेट्रल सिक्योरिटी (जमानत) के दिए जाएंगे, जाहिर है पहले के कर्ज न अदा करने वाले यह कर्ज भी वापस नहीं करेंगे। मजदूरों के साथ द्दोकेबाजी करने वाली एमएसएमई इकाईयों को कर्ज देने के लिए बीजेपी सरकारें इतनी उतावली बैठी थी कि मोदी की जानिब से पैकेज का एलान होते ही उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने चौबीस घंटों के अंदर ही छप्पन हजार सात सौ चौव्वन एमएसएमई इकाइयों को दो हजार करोड़ रूपये कर्ज के नाम पर सौंप दिए। दूसरी तरफ मजदूरों के साथ सरकार ने कुछ नहीं किया। महीनों से लाखों मजदूर सड़कों पर चल रहे है मर रहे है न उनके लिए ट्रान्सपोर्ट का कोई माकूल बंदोबस्त न खाने पानी और दवाइयों का। एक इत्तेला के मुताबिक खबर लिखे जाने तक पूरे देश में सड़कों पर चलने के दौरान तकरीबन पांच सौ गरीब मजदूरों की मौत हो चुकी थी वजीर-ए-आजम मोदी ने औरय्या में एक साथ मारे गए छब्बीस (26) मजदूरों के लिए हमदर्दी (संतावना) तो जाहिर करके अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली, लेकिन किसी भी मजदूर को मरने पर उसके घर वालों को कोई माली मदद नहीं दी। दें भी क्यों बेईमान व्यापारियों को देने से पैसा बचे तो मजदूरों को भी दें।
बुजुर्ग ख्वातीन के पैरों की पैदल चलने से उद्दड़ी खाल, सड़क पर बच्चा पैदा होने के दो घंटे के अन्दर कोई खातून अपने बच्चे को उठा कर फिर पैदल चल पड़े, कोई मां अपने बच्चे को ट्राली बैग पर लिटा कर हजारों किलो मीटर के सफर पर पैदल चल पड़े, तेरह साल की बच्ची ज्योति अपने जख्मी वालिद मोहन पासवान को सायकिल पर बिठा कर एक हजार दो सौ किलोमीटर का सफर तय करके गुड़गांव से बिहार के दरभंगा तक सात दिनों में पहुंची, औरय्या के सड़क हादसे में मारे गए झारखण्ड, बिहार और बंगाल के छब्बीस मजदूरों की लाशें स्याह पालीथिन में लपेट कर ट्रक में मुर्दा मवेशियों की तरह रवाना किए जाने जैसे मजदूरों के दिल दहलाने वाले हालात के हजारों वीडियोज सोशल मीडिया पर वायरल होते रहे लेकिन नरेन्द्र मोदी का दिल किसी पर नहीं पसीजा। वह अपनी सरकार के छः साल मुकम्मल होने के छः साल बेमिसाल के जश्न में ही डूबे रहे।
पंडित अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में वजीर रहे बुजुर्ग जाट लीडर सोमपाल शास्त्री से दि सत्य हिन्दी डाट काम के शीतल पी सिंह ने देश के मौजूदा हालात पर बात की तो सोमपाल शास्त्री की आंखों में आंसू आ गए, बोले कि देश के गरीबों और कामगारों की हालत देख कर उन्हें नींद नहीं आती। तीन दिनों उन्हें नींद की गोलियां खाकर सोना पड़ता है। सोमपाल शास्त्री ने कहा कि उन्होंने ऐसी दरिन्दगी कभी नहीं देखी शर्मनाक बात यह है कि इन हालात को भी इवेन्ट बनाया जा रहा है। उन्होंने अपनी जिन्दगी में कभी इतनी गैर जिम्मेदार और सफ्फाक (क्रूर) सरकार कभी नहीं देखी। हमें अफसोस है कि हमने किन लोगों के हाथों में मुल्क की बागडोर सौंप दी अब तो ऐसा लगता है कि आज के हुक्मरा के सीने में दिल भी है या नहीं है। यह दर्द सिर्फ सोमपाल शास्त्री का ही नहीं है देश के तमाम हस्सास (संवेदनशील) इंसानों का है सड़कों पर मजदूरों की हालत देख कर हर किसी की आंखों में आंसू आ रहे हैं, लेकिन वजीर-ए-आजम मोदी पर भी कोई असर पड़ रहा हो ऐसा लगता नहीं है।
खुद वजीर-ए-आजम मोदी और उनकी सरकार ने लाकडाउन लगते ही देश के सनअतकारों एमएसएमई फैक्ट्री मालिकान से साफ कहा था कि लाकडाउन के दौरान मजदूरों की तंख्वाहों में कोई कटौती न की जाए, फंसे हुए मजदूरों के रहने और खाने के इंतजाम भी किए जाये। दिल्ली के चीफ मिनिस्टर अरविन्द केजरीवाल ने सख्ती के साथ कहा था कि कोई भी मकान मालिक किराया न मिलने की वजह से किसी मजदूर से मकान खाली नहीं कराएगा। किसी भी फैक्ट्री मालिक और मकान मालिक ने सरकार की इन बातों को नहीं सुना, सड़कों पर चल रहे मजदूर बार-बार कहते दिखते कि उनके मकान मालिक ने किराया न अदा कर पाने की वजह से उनका सामान फेंक दिया। कोई रोते हुए बयान करता मिला कि फैक्ट्री मालिक ने उन्हें तंख्वाहें नहीं दी खाने पानी तक का भी बंदोबस्त नहीं किया। अब उन्हीं बेईमानों और जालिम किस्म के फैक्ट्री मालिकों को बगैर किसी कोलेट्रल सिक्योरिटी के तीन लाख करोड़ रूपये कर्ज देने का एलान कर दिया। तंख्वाह न देने वाले फैक्ट्री मालिकों के खिलाफ सरकार ने कोई कार्रवाई भी नहीं की। कार्रवाई करें भी कैसे एलक्शन में चंदा भी तो उन्हीं से मिलना है। लाकडाउन के दौरान मजदूरों के साथ सबसे ज्यादा ज्यादतियां और जुल्म सूरत और मोदी के गुजरात के दीगर सनअती शहरों में ही सबसे ज्यादा किया गया है। मजदूरों का सामान फेंकने और किराए के लिए उन्हें घरों से बेदखल करने वाले मकान मालिकान के साथ अब कोई कार्रवाई अरविन्द केजरीवाल भी नहीं कर रहे हैं।
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