Breaking News

आवश्यकता है “बेखौफ खबर” हिन्दी वेब न्यूज़ चैनल को रिपोटर्स और विज्ञापन प्रतिनिधियों की इच्छुक व्यक्ति जुड़ने के लिए सम्पर्क करे –Email : [email protected] , [email protected] whatsapp : 9451304748 * निःशुल्क ज्वाइनिंग शुरू * १- आपको मिलेगा खबरों को तुरंत लाइव करने के लिए user id /password * २- आपकी बेस्ट रिपोर्ट पर मिलेगी प्रोत्साहन धनराशि * ३- आपकी रिपोर्ट पर दर्शक हिट्स के अनुसार भी मिलेगी प्रोत्साहन धनराशि * ४- आपकी रिपोर्ट पर होगा आपका फोटो और नाम *५- विज्ञापन पर मिलेगा 50 प्रतिशत प्रोत्साहन धनराशि *जल्द ही आपकी टेलीविजन स्क्रीन पर होंगी हमारी टीम की “स्पेशल रिपोर्ट”

Tuesday, April 29, 2025 11:26:19 PM

वीडियो देखें

लॉकडाउन वाली ईद

लॉकडाउन वाली ईद
से बेखौफ खबर के लिए स्वतंत्र पत्रकार वाफिया अन्सार की रिपोर्ट

रमज़ान अब खत्म होने वाले ही है और इसके पहले ही सभी लोग ईद की तैयारियों में लग जाते है। ईद का त्यौहार मुस्लिम समाज के लिए सबसे बडे त्यौहार के रूप में देखा जाता है। इसे ईद-उल-फित्र के नाम से जाना जाता है। वैसे तो सभी लोग इसे मीठी ईद भी कहते है मग़र क्या आपको इसका हकीकी मतलब पता है? अगर नहीं पता तो चलिए हम आपको बताते है। ईद का मतलब होता है खुशी। ये हकीकत में खुशियों का त्यौहार होता है। और ईद-उल-फित्र खुशियों की दावत होती है। ये त्यौहार मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए खुशियों का खजाना लेकर आता है।

दरअसल रमज़ान के पूरे एक महीने में सभी लोग रोज़ा रखकर भूख क्या होती है उसकी तड़प महसूस करते है और अपनी सभी आरजू और तम्मनाओं पर भी कंट्रोल रखते है। ईद-उल-फितर भूख-प्यास सहन करके एक महीने तक सिर्फ खुदा को याद करने वाले रोजेदारों को अल्लाह का इनाम है। पैगंबरे इस्लाम ने कहा है कि जब अहले ईमान रमजान के पवित्र महीने के एहतेरामों से फारिग हो जाते हैं और रोजों-नमाजों तथा उसके तमाम कामों को पूरा कर लेते हैं तो अल्लाह एक दिन अपने उन इबादत करने वाले बंदों को बख्शीश व इनाम से नवाजता है। इसलिए इस दिन को 'ईद' कहते हैं और इसी बख्शीश व इनाम के दिन को ईद-उल-फितर का नाम देते हैं।

इतने लम्बे वक़्त तक रोज़ा रखने के बाद ईद-उल-फित्र आती है और वो दावत की खुशिया लेकर आती है। सेवइयां में लिपटी मोहब्बत की मिठास इस त्योहार की खूबी है। ईद-उल-फित्र पर सभी लोग अच्छे-अच्छे व्यंजन बनाकर खाते है। ईद दरअसल इस्लाम धर्म की परंपराओं का आईना और मोहब्बत का मजबूत धागा है। भारत मे तीन दिन तक चलने वाले इस त्यौहार में नये कपडे और नये जूते खरीदे जाते है। सभी मुसलमान अपने परिवार,दोस्तो और रिश्तेदारों के साथ मिलकर खुशियां मनाते है। ये ईद न सिर्फ हमारे समाज को जोड़ने का मजबूत पॉइंट है, बल्कि यह इस्लाम के मोहब्बत और भाईचारे से भरे संदेश को भी पुरअसर ढंग से फैलाती है।

लेकिन इस बार लॉकडाउन में आने वाली ईद को लेकर मुस्लिम समाज मे खुशी उतनी नही महसूस की जा रही है जितनी पहले की ईद में महसूस की जा रही थी। दरअसल भारत में ईद का त्योहार यहां की गंगा-जमुनी तहजीब के साथ मिलकर उसे और खूबसूरत और खुशनुमा बनाता है। हर धर्म और वर्ग के लोग ईद को तहेदिल से मनाते हैं। ईद के दिन सिवइयों या शीर-खुरमे से मुंह मीठा करने के बाद छोटे-बड़े, अपने-पराए, दोस्त-दुश्मन गले मिलते हैं तो चारों तरफ मोहब्बत ही मोहब्बत नजर आती है। लेकिन आज लॉकडाउन के चलते लाखो लोग बेरोज़गार हो गए है। लोगो को खाना नही मिल रहा है। कोरोना महामारी के कारण मुल्क गम्भीर परिस्थिति से गुज़र रहा है।
ऐसे नाज़ुक हालात में जब देशवासी परेशान हो,बदहाल हो और मजबूर हो इस्लाम मज़हब खुशी की इज़ाज़त नही देता है। इसी वजह से इस लॉकडाउन की इस ईद पर मुस्लिम समाज नए कपड़े और जूते खरीदने से परहेज़ कर रहा है। ऐसा करके वो भारत के उस परेशान वर्ग को बताना चाह रहा है कि तुम्हे तकलीफ में देख कर हम कैसे खुशी मन सकते हैं? रमजान में हर सक्षम मुसलमान को अपनी कुल बचत के ढाई प्रतिशत हिस्से के बराबर की रकम निकालकर उसे गरीबों में बांटना होता है। इससे समाज के लिए उसकी जिम्मेदारी तो पुरी होती है। इस बार मुस्लिम समाज ने पूरे मुल्क में ज़कात का ये हिस्सा ज़्यादातर कोरोना रिलीफ के कामों में दिया है। मुस्लिम समाज की इस समाजी जिम्मेदारी को देखते हुए आरएसएस को भी मुस्लिमो से अपील करने पर मजबूर होना पड़ा की वो ज़कात की रकम को पीएम केयर फण्ड में दें। वसिउनज़र से देखें तो ईद की वजह से समाज के लगभग हर वर्ग को किसी न किसी तरह से फायदा होता है। चाहे वह वित्तीय फायदा हो या फिर सामाजिक फायदा हो। दुनिया चाहे जितना बदल जाए, लेकिन ईद जैसा त्योहार हम सभी को अपनी जड़ों की तरफ वापस खींच लाता है और यह अहसास कराता है कि पूरी मानव जाति एक है और इंसानियत ही उसका मजहब है।

रमज़ान एक महीने तक उस एक खुदा की इबादत के लिए कहता है जिसने सारी दुनिया को बनाया है। मुस्लिम समाज भी इस रमज़ान के महीने में ज़्यादा से ज़्यादा वक़्त इबादत में ही गुज़ारते है। मस्जिदें हर वक़्त रोज़ेदारों की चहल क़दमी से गुलजार रहती है। लेकिन इस बार कोरोना महामारी के लॉकडाउन में मस्जिदें बन्द होने से मुस्लिम समाज इबादतों की उस रूहानियत से महरूम रहा है जो इसकी असल बुनियाद है। भारत सरकार के फैसलों और शरीयत की रोशनी में काज़ियो और मौलानाओं के ज़रिए दी गई गाइडलाइन को मानते हुए उसने इस रमज़ान में मस्जिद से दूरी बनाई। हफ्ते में शुक्रवार को होने वाली बड़ी सामूहिक नमाज़ को भी घर पर अदा किया। इस महीने में आने वाला आखरी शुक्रवार 'जुमातुल विदा' और शबेक़दर के मौके पर सभी मस्जिदे नमाज़ियों से भरी रहती थी। लेकिन इस बार मुस्लिम समाज इनकी रौनक से महरूम है। अपने धर्म गुरुओं के आदेशों को मानते हुए समाज ईद की नमाज़ बड़ी संख्या में कहीं पर भी अदा नही करेगा।
रमजान इस्लामी कैलेंडर का नौवां महीना है। इस पूरे माह में रोजे रखे जाते हैं। इस महीने के खत्म होते ही दसवां माह शव्वाल शुरू होता है। इस माह की पहली चांद रात ईद की चांद रात होती है। इस रात का इंतजार वर्षभर खास वजह से होता है, क्योंकि इस रात को दिखने वाले चांद से ही इस्लाम के बड़े त्योहार ईद-उल-फितर का ऐलान होता है। इस तरह से यह चांद ईद का पैगाम लेकर आता है। इस चांद रात को 'अरफा' कहा जाता है। संसार के इतिहास की ये पहली 'चाँदरात' होगी जिसमें दूसरे दिन ईद की खुशी न मना पाने का गम भी होगा। ये लॉकडॉन वाली ईद सदियों तक याद रखी जाएगी। आज की युवा पीढ़ी जब नाती पोते वाली हो जाएगी तो वो लॉकडॉन वाली ईद के उनवान से अपने नाती पोतो को ये कहानी ज़रूर सुुनाएगी

व्हाट्सएप पर शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *