बहराइच। भारत द्वारा मानसरोवर यात्रियों को ध्यान में रखते हुए लिपुलेख उत्तराखंड में सड़क निर्माण किया है। जिसको लेकर नेपाल के विभिन्न राजनीतिक संगठन विरोध कर रहे हैं। जबकि सच्चाई यह है कि भारत ने उत्तराखंड में सड़क निर्माण की सूचना नेपाल सरकार को पहले ही दे दी थी। इस सड़क के निर्माण के बाद तीर्थ यात्रियों का लगभग एक लाख से डेढ़ लाख रुपये तक बचने का अनुमान है।
बहराल इस सड़क के बनने के बाद मानसरोवर यात्री जो पूर्व में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से रुपईडीहा होते हुए नेपालगंज व नेपालगंज से पहाड़ी ज़िलों सिमीकोट व हुमला तक हवाई यात्रा करते हुए कैलाश मानसरोवर तक तीर्थ यात्रा करते थे। जिससे बांके तथा कैलाली जिलों में नेपाली होटलों व ट्रैवल एजेंसियों को भारी लाभ होता था। यहां बताते चलें नेपाल का आय का स्रोत या तो भारतीय टूरिस्ट यात्रियों से होता है या फिर भारतीय उत्पाद से उसूलों गया कस्टम शुल्क इसमें एक बहुत बड़ी भूमिका अदा करता है। ट्रैवल एजेंसियां यात्रियों को सिमीकोट व हुमला जिलों तक पहुंचाने में हेलीकॉप्टर व नेपाली विमानों का प्रयोग करती थी। नेपाली विमानों का भाड़ा ₹15000 तथा हेलीकॉप्टर का भाड़ा ₹25000 भारतीय मुद्रा में लिया जाता था। इस काम में लगभग 7 हेलीकॉप्टर कंपनियों का इस्तेमाल किया जाता था। काफिले बताते हैं की चूंकि भारत के विभिन्न राज्यों से बड़ी संख्या में कैलाश मानसरोवर तीर्थ यात्रियों के पिछले कई वर्षों से आने का नेपालगंज बहुत बड़ा क्षेत्र बन गया था। जिससे इस क्षेत्र में बड़े-बड़े होटल तथा कैसीनो कि भरमार हो गई थी। एसोसिएशन ऑफ कैलाश मानसरोवर ट्रेवलएंड ट्रैकिंग एजेंट आपरेटर्स नेपाल के पूर्व अध्यक्ष तेन्जिन नोर्बू लामा के अनुसार नेपाल सरकार की सड़क निर्माण की ढिलाई के कारण हमने तकरीबन 10 लाख भारतीय तीर्थ यात्रियों जो कि नेपाल के जरिए तिब्बत तक की मानसरोवर यात्रा करते थे। उन्हें खो दिया है। जिसकी वजह से नेपाल के होटलों ट्रैवल एजेंसियों तथा नेपाल में पर्यटन उद्योग पर इसका बुरा असर पड़ेगा। लामा के अनुसार भारतीय तीर्थयात्री काफी धनाढ्य होते हैं। जो नेपाल में तीर्थ यात्रा भी करते हैं। तथा यहां के होटलों के कैसीनो का भी आनंद लेते हैं। जिसकी वजह से नेपाल में आय का बड़ा स्रोत बने इन तीर्थ यात्रियों को खोने का गम नेपाल के पर्यटन उद्योग से जुड़े लोगों को हो रहा है। उनका कहना है कि 1960 में तातोपानी तथा 1993 में हिलसा नमक दो नाके को तीर्थ यात्रियों के लिए चिन्हित किया गया था। लेकिन इन रास्तों के निर्माण सरकारी उदासीनता के भेंट चढ़ गए। अब भारत ने नये रास्ते लिपुलेक का निर्माण खुद ही कर लिया है तो ऐसी स्थिति में भारतीये तीर्थ यात्री नेपाल क्यों आएंगे।
एक अनुमान के अनुसार कैलाश मानसरोवर यात्रा पर एक भारतीये तीर्थ यात्री तकरीबन 2 से तीन लाख भारती मुद्रा खर्च करता है। जिसमें 30 प्रतिशत रकम नेपाल में खर्च होती है। और लगभग 60 प्रतिशत रकम हवाई यात्रा पर खर्च होती है।
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