डंडे के जोर पर लॉकडाउन को सफल बनाने तक की बात तक तो ठीक है किन्तु उन गरीबों का क्या जो रोज कुवां खोदकर पानी पीतें है? उन गरीबों का क्या जो रोजी रोटी की तलाश में दर दर की ठोकर खाते फिर रहे है? उन गरीबों का क्या जो भूखे प्यासे सैकड़ो किलो मीटर पैदल चलकर घर वापसी के लिए मजबूर है? न जाने कितने लोग इलाज और भुखमरी जैसी समस्याओं से जूझ रहे है. क्या समय रहते ऐसी समस्याओं से लड़ने की तैयारी नहीं की जा सकती थी? कहने को तो हर कोई कह सकता है कि घर दहलीज मत लाघना किन्तु कितने हाथ भूखे गरीब को रोटी देने के लिए उठते है? भले ही कुछ लोगों के लिए इन सवालों के कोई मायने न हो किन्तु उन लोगो का क्या जो इन समस्याओं का सामना कर रहे है. कोरोना वायरस का पहला मामला दिसंबर २०१९ में चीन के वुहान में सामने आया था. उसके बाद से ये वायरस धीरे-धीरे दुनिया के 168 देशों में अपने पैर पसार चुका है. इसे लेकर दुनिया भर की सरकारें अपने नागरिकों को सतर्क और जागरूक कर रही हैं जिसे लेकर भारत सरकार ने २१ दिनों का लॉकडाउन घोषित किया है ताकि इस भयानक वायरस से देश के लोगो को बचाया जा सके. किन्तु प्लानिंग में कहीं चूक नजर आ रही है नहीं तो लोग पद यात्रा थोड़े न करते? ऐसे ही थोड़े न टमाटर के रेट ३० से १२० हो गए? लॉकडाउन के पहले दिन जहाँ एक ओर पुलिस और प्राशासन मुस्तैद रहा तो वहीँ दूसरी ओर काला बाजारी भी अछूती नहीं रही. कुछ लोगों ने भले ही टीवी और मोबाईल के जरिये दिन काट लिया हो किन्तु अनेको लोगो के लिए रोटी एक बड़ी समस्याओं में सुमार रही.
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