बहराइच जिले : में भारत -नेपाल सीमा पर स्थित कतर्नियाघाट वन्य जीव प्रभाग अपनी नैसर्गिक छटा के लिए जाना जाता है। नवम्बर से मार्च तक यहां देश के विभिन्न इलाकों से सैलानी आते हैं। पिछले कई दिनों से पड़ रही भीषण सर्दी के कारण यहां आने वाले सैलानियों को दुर्लभ वन्य जन्तुओं के दर्शन नहीं हो पा रहे थे। मंगलवार को धूप खिली तो वन्य जन्तुओं में भी तेजी नजर आई। पक्षी चहक उठे और जंगली जानवरों ने छलांग लगानी शुरू कर दी।
51 वर्ग किमी में फैले कतर्निया वन्य जीव प्रभाग में लगभग 25 से 30 बाघ, लगभग 80 तेंदुए, हिरणों की पांचों प्रजातियां चीतल, बारासिंघा, पाठा, सांभर व काकड़ के अलावा अन्य दुर्लभ वन्य जीव पाए जाते हैं। कतर्निया के मध्य से गुजरने वाली गेरुआ नदी इस वन्य जीव बिहार की जीवन रेखा है। यह वन सेंचुरी 15 नवम्बर से सैलानियों के लिए खुल जाता है, लेकिन मौसम की बेरुखी के कारण सैलानी अब तक बहुत कम ही वन्य जीवों को देख पा रहे थे। जनवरी का तीसरा बीतने के बाद मंगलवार को जब धूप खिली, तो वन्य जीव विहार भी गुलजार हो गया। कतर्नियाघाट फ्रेंड्स क्लब के अध्यक्ष भगवान दास लखमानी के नेतृत्व में पांच सदस्यीय दल मंगलवार को कतर्नियाघाट पहुंचा, तो देखा कि चीतल के बड़े बड़े झुण्ड हर तरफ विचरण कर रहे है, और ठण्डे खून के वन्य जीव भी हर तरफ धूप का आनन्द लेते दिखाई दिए। क्लब की ओर से गई टीम ने कई दृश्यों को अपने कैमरे में कैद किया। उन्होंने बताया कि मंगलवार का भ्रमण काफी अच्छा रहा, और काफी सुखद नजारे देखने को मिले।
व्हाट्सएप पर शेयर करें
No Comments






