सिद्धार्थनगर। खेसरहा। यह दृश्य उन बच्चों की है जो अपने जान को हथेली पर लिए स्कूल जाते है। एक अभिभावक से मिलने पर उनका कहना है कि जब स्कूलों की प्रवेश का समय होता है तब उन्हें उनके बच्चों की पूरी जिम्मेदारी और सभी से अलग उच्च कोटि की पढ़ाई 90 प्रतिशत रिज़ल्ट्स, बच्चों को आने जाने की उत्तम व्यवस्था प्रशिक्षित अध्यापक व अध्यापिकाओं द्वारा शिक्षा की व्यवस्था ऐसे तमाम वादे और समर्पण की बात स्कूल प्रभंधन द्वारा किया जाता है। परन्तु जब बच्चे का प्रवेश करा दिया जाता है तो सभी वादे और समर्पण धरे के धरे राह जाते हैं हम अभिभावक अपने बच्चों को तो एक सुरक्षित व उत्तम भविष्य की कामना के साथ घर से स्कूल भेजते है। लेकिन इस प्रकार तिपहिया वाहनों पर बच्चों को समान के पैकेट की तरह लद कर जाते देख मन मे भय व्याप्त हो जाता है और जब तक वह घर नही आते मन उन्ही पर लगा रहता है। इन अभिभावक बंधु का यह भी कहना है कि हम बड़े परिश्रम से पैसों की व्यवस्था कर के अपने बच्चों को पढ़ाते हैं उसमें भी बस का जो किराया लेकर हमारे बच्चों को तिपहिया वाहन में जाने पर मजबूर होना पड़ता है। इस पर स्कूल से संबंधित प्रशाशनिक अधिकारियों का ध्यान क्यों नही जाता। यदि हम बस का किराया दे रहे है तो टेम्पो से भेजकर क्यो अपने बच्चों की जान जोखिम में डालें टेम्पो, मैजिक जैसे वाहन जिनका खर्च बस के खर्च का एक तिहाई भी नही फिर किराया समान क्यो है। प्रशाशनिक स्तर से जब तक इसे संज्ञान में नही लिया जाएगा तब तक ये व्यस्थायें ऐसे ही रहेंगी यह दृश्य चित्र बेलौहा बाजार में चल रहे स्कूल का है जो अभिभावक बंधुओं से मिला है।
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