स्तन और ओवरी कैंसर का अभी तक खून के नमूनों से जांच करने चलन रहा है, लेकिन अब आईआईटी रुड़की के शोधकर्ताओं ने कैंसर का पता लगाने की नई पद्धति विकसित की है। वैज्ञानिकों ने लार में मौजूद कुछ अभूतपूर्व प्रोटीनों की पहचान की, जो स्तन और ओवरी कैंसर मेटास्टासिस (बेकाबू फैलाव) के लिए संभावित बायोमार्कर का काम करता है। शोध की खास बात यह है कि लार से जांच होने की वजह से मरीज को सुई भी नहीं लगानी होती है। तीन चक्रीय कीमोथैरेपी करा चुके मरीजों की लार के प्रोटीन से यह भी पता चल सकता है कि मरीज पर थैरेपी का क्या असर हो रहा है। आईआईटी की शोध टीम ने स्वस्थ लोगों के नमूने लेकर स्टेज 4 स्तन और ओवरी कैंसर मरीजों (न्यूनतम 3 साइकिल नीयोएडजुवांट कीमोथैरेपी प्राप्त मरीज) के नमूनों से उनकी तुलना की। लार के प्रोटीनों का मास स्पेक्ट्रोमेट्री से विश्लेषण किया गया। इससे स्तन और ओवरी के कैंसरों के पैथोफिजियोलॉजी की जानकारी मिली। इनकी तुलना स्वस्थ और ओवरी की कीमोथैरेपी कराने वाले मरीजों के साथ की गई। शोध में 646 प्रोटीनों की पहचान की गई। इनमें 409 प्रोटीन सभी चार समूहों में देखे गए। इन 409 प्रोटीनों के अतिरिक्त 352 प्रोटीन सभी ग्रुपों में कॉमन थे। शोध टीम का नेतृत्व कर रहे आईआईटी रुड़की के जैव तकनीकी विभाग के प्रो. किरण अंबातीपुदी ने बताया कि स्तन और ओवरी कैंसर की प्रवृति असमान और लक्षण रहित होने की वजह से मैमोग्राफी, कलर-फ्लो डॉप्लर इमेजिंग से ब्लड फ्लो पैटर्न और ट्रांसवेजाइनल अल्ट्रासाउंड परीक्षण से इन बीमारियों को जल्द पता लगना कठिन होता है। उन्होंने बताया कि हालांकि इन प्रोटीनों का बड़ी संख्या में प्रतिभागियों के लिए क्लिनिकल सत्यापन होना अनिवार्य है, पर वर्तमान अध्ययन के परिणाम लार से क्लिनिकल जांच की प्रक्रिया विकसित करने की दिशा में पहला कदम है। यह शोध एफएएसईबी बायो एडवांसेज नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इसमें शरीर के तरल स्वरूप संपूर्ण लार के इस्तेमाल से स्तन और ओवरी कैंसर का जल्द पता लगाने के बारे में जानकारी दी गई है।
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