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Saturday, February 8, 2025 5:54:53 PM

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लोकसभा सुरक्षित सीट का कौन बनेगा सरताज…?

लोकसभा सुरक्षित सीट का कौन बनेगा सरताज…?
/ से बेखौफ खबर के लिए स्वतंत्र पत्रकार डी0पी0श्रीवास्तव की रिपोर्ट

बहराइच। भारत निर्वाचन आयोग के निर्देशानुसार लोकसभा सामान्य निर्वाचन 2019 में 17वीं लोकसभा के गठन को लेकर विभिन्न पार्टियों द्वारा बहराइच लोकसभा 56 सुरक्षित सीट से अपने अपने प्रत्याशियों को प्रत्येक पांचवे वर्ष पूरे भारत में लगने वाले जनता की अदालत में उतार दिया गया है। जहाँ जनता द्वारा प्रत्याशियों के भाग्य के बंद तालों में चाबी लगाते हुए कुर्सी सौंपी जायेगी। हर पांचवें वर्ष की तरह इस वर्ष भी जिले में लगने वाले सबसे बड़े मेले, मतदाता मेला के तहत मतदाताओं द्वारा कैसरगंज सामान्य व बहराइच सुरक्षित सीट के लिए एक बार फिर अपना भाग्य विधाता चुना जाएगा। मालूम हो कि उत्तर प्रदेश में कृषि प्रधान जिले के रूप में ख्याति बटोरने वाले इस जनपद से जहां कई पार्टियों के प्रत्याशियों द्वारा अपने-अपने जीत के दावे ठोंके जा रहे हैं वहीँ आवाम की मानें तो मुख्य लड़ाई भाजपा, कांग्रेस और सपा बसपा गठबंधन के बीच ही मानी जा रही है। पूर्व में हुवे लोकसभा चुनावों में भी तीनों मुख्य पार्टियों सहित कुछ अन्य द्वारा यहां की लोकसभा सीटों पर कई मर्तबा अपना अपना परचम लहराया जा चुका हैं। जो इस बात का प्रतीक भी है कि यहां के मतदाताओं ने इस जिले को कभी भी किसी पार्टी को अपनी जागीर बनाने का अवसर नहीं दिया। और इस बार भी सब कुछ मतदाताओं के रुझान पर ही निर्भर होगा। अगर बात सुरक्षित सीट बहराइच लोकसभा की हो तो न ही भाजपा प्रत्याशी अक्षयवर लाल गोंड की जीत ही सुनिश्चित कही जा सकती है और ना ही कांग्रेस से सावित्रीबाई फूले व सपा बसपा गठबंधन से शब्बीर अहमद बाल्मीकि की जीत का ऐलान किया जा सकता है। क्योंकि यदि बात भाजपा की हो तो राजस्थान व तेलंगाना की वोटिंग से ठीक पहले वर्तमान में कांग्रेस का दामन थामने वाली निवर्तमान भाजपा सांसद सावित्री बाई फुले का पार्टी विरोधी बयान व धरातल पर स्वास्थ्य शिक्षा शौचालय आवास के मामलों में शहर से लेकर ग्रामीण अंचलों तक लोगों का विश्वास न जीत पाने का दंश भाजपा को झेलना पड़ सकता है। जबकि बात धरातल की करें तो सपा, बसपा व कांग्रेस का रिकॉर्ड भी बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता। ज्यादातर जगहों पर पार्टी के नजदीक रहे लोगों को ही लाभ पहुंचते देखा जाता रहा है। फिर भी मतदाताओं के बीच अपनी अपनी राय व तमाम गिले-शिकवों के बाद भी उक्त सुरक्षित सीट पर त्रिकोणीय संघर्ष के बादल मंडराते दिख रहे हैं। हालांकि आगामी 6 मई को चुनावी बादलों से होने वाली बरसात के ज्यादा से ज्यादा मतदाता रूपी पानी को अपने अपने चुनावी घड़ो में गिराने की नियत से कोई भी पार्टी किसी प्रकार का कसर छोड़ना नहीं चाहती। हालांकि चर्चाओं पर गौर करें तो भाजपा दलित यादव व कुछ मुस्लिमों का वोट पाने में कामयाब हुई तो उसे भी जीत का स्वाद मिल सकता है। जो कि इतना आसान भी नहीं होगा। क्योंकि सपा बसपा गठबंधन की सीटें भी निकलने के दावे किए जा रहे हैं जिसका एक कारण सपा पार्टी कोषाध्यक्ष अब्दुल मन्नान भी माने जा रहे हैं जो कि अपनी अच्छी छवि के लिए भी जाने जाते हैं। इस बार यदि पार्टियों में अंतर विरोध नहीं हुआ तो पार्टी की जीत पक्की समझी जा रही है। जबकि कांग्रेस प्रत्याशी के भी जीत के दावे जगह जगह पर किए जा रहे हैं चर्चा यही है कि यदि पार्टी ने दलित वोटों के साथ साथ सपा बसपा गठबंधन में छेद कर दिया तो उठ रहे चुनावी बाहर में पार्टी सब को किनारे कर जीत का सेहरा अपने सिर पर ही बांधेगी। फिर भी कुछ भी कहना अभी जल्दबाजी ही होगी क्योंकि लगभग एक माह बाद होने वाले चुनाव में यदि चुनाव का बयार मोदी फैक्टर,राहुल फैक्टर या अखिलेश और मायावती फैक्टर पर घूमा दो पार्टियों के बड़े-बड़े दावे भी जमींदोज होते देखे जाएंगे,और यदि मतदाताओं ने पार्टी से उठकर पार्टियों द्वारा उतारे गए प्रत्याशियों पर गौर करना शुरू कर दिया तो भी यहां की सुरक्षित सीट पर आश्चर्यजनक परिणाम देखने को मिल सकते हैं। क्योंकि इस बार के चुनाव में जिलाधिकारी शंभू कुमार के अथक प्रयास से वोटों के बढ़ रहे प्रतिशत के भी अनुमान लगाए जा रहे हैं जो कि लगातार कई माध्यमों से ज्यादा से ज्यादा मतदान करवाने के लिए प्रयासरत हैं। और बढ़े हुए वोटों का प्रतिशत किस पार्टी के गणित में जीरो का महत्व बताएगी यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। फिलहाल जनपद की उक्त गरिमामयी लोकसभा सीट को कौन सी पार्टी गिरफ्तार कर जनता का सरताज बनने में कामयाब होगी इसके लिए आगामी 6 मई के बाद 17 दिनों का और इंतजार करना पड़ेगा।

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