बहराइच। एक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार भले ही देश के लगभग एक अरब तीस करोड़ की आबादी में 16 करोड़ से अधिक लोग शराब का सेवन करते हो लेकिन अगर हम भारत के उ0प्र0 राज्य के अंतिम जिले के रूप में देखे जा रहे व तराई में बसने वाले बहराइच की बात करें तो यहां न तो दारु/शराब बेचने का कोई मानक ही है और न ही विभाग द्वारा उसे सुधारे जाने की कोई योजना। यहाँ नियमों की धज्जियां उड़ाकर न सिर्फ मानक विहीन दुकान चलाए जा रहे हैं बल्कि दुकानों पर सूरज की गहरी रोशनी में भी पीने और पिलाने का नंगा खेल खेला जा रहा है,बावजूद अगर हम आबकारी विभाग की कर्तव्यहीनता की बात करें तो मामला और भी गंभीर नजर आता है।
आपको बताते चलें कि यह विभाग नगर के सार्वजनिक स्थानों पर खुलेआम शराब का खेल होने के बाद भी कुछ कर पाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। हाल यह है कि जब कभी खास जगहों पर यह विभाग छापा मरता है तो वहां सत्ता पक्ष के पिछलग्गू नेताओं की झंडा लगी गाड़ी की मौजूदगी भी अपने आप में कई सवाल खड़ा करती नजर आती है। और इतने बुरे हालातों में जब अधिकारी से सरकारी सेंटरों पर छापे मारने की बात पूँछी जाती है तो बहुत ही सलीके से चुप्पी साध ली जाती है।
मालूम हो कि जिले में अंग्रेजी शराब की चार होलसेल दुकानों में एक सरकारी दुकान होने के साथ देसी मदिरा का भी एक सेंटर है जहाँ से जिले में सबसे अधिक दारु/ शराब सप्लाई की बात बताई जाने के साथ साथ समय समय पर मिलावट होने की भी बात बताई जा रही है।
सूत्र बताते हैं कि ऐसे बोतलों/पाउचों को कुछ कोडेड शब्दों के माध्यम से अवैध रूप से सुरेबाजों को थमा दिया जाता है। जबकि सेंटर के आसपास ही एक दो नहीं बल्कि 3-3 फुटकर दुकानों को लाइसेंस देकर आपसी प्रतिस्पर्धा को भी बढ़ावा दिया गया है। अगर बात नफे नुकसान की हो तो बिकने वाली देसी/अंग्रेजी शराब में सबसे ज्यादा फ़ायदा विभागीय लोगों का होना बताया जाता है। जहाँ देसी डुप्लीकेट 30-40 रुपया पौवा या उससे अधिक का होता है वहीं अंग्रेजी डुप्लीकेट 100 से 200 रुपया पौवा या उससे अधिक मूल्य पर बेचने की बात बताई जाती है जिसका प्रमाण पकड़े जाने पर ही सामने आ सकता है। और यही कारण है कि जहाँ कुछ शराब तो थोड़ा पीने पर ही नशा कर जाता है वहीँ कुछ ज्यादा पीने पर भी काम नहीं करती,परिणाम स्वरूप सुरे बाजो के और अधिक पीने की इच्छा से जहाँ राजस्व में और अधिक बढ़ोतरी होनी चाहिए वहां अधिकारियों के चेहरे के मुस्कुराहट का कारण बनते देखा जा रहा है,जो काम बड़ी चालाकी से आपसी सांठगांठ कर करने की बात बताई जाती है।
अब यहां बड़ा सवाल यही है कि जब पूरे जिले की दारु शराब की सप्लाई ज्यादातर सरकारी दुकानों से होती है तो फिर यह नकली दारु शराब आती कहां से है?
जबकि चीनी मिलों से परचेजिंग की गई अल्कोहल से ही जब दारु यहीं बनाई जाती है तो फिर परसेंटेज के मानकों का ध्यान क्यों नहीं रखा जाता?जबकि डिस्टलरी लगाने वाले मिल अपने अपने कॉन्ट्रैक्ट,निर्धारित जिलों व अन्य प्रदेशों में अपने अपने होलोग्राम व गारेंटेड परसेंटेज के साथ मदिरा उपलब्ध करवाते हैं। लेकिन यहां का परसेंटेज कुतुवा होने के कारण लोगों की जिंदगी तक छीन सकता है।
ऐसे में दारु पीने से जो मौतें हो रही हैं उस पर प्रशासन बड़ी ही चालाकी से कच्ची दारू व अवैध भट्टियों का खौफ पैदा कर विभागीय कमी को सामने नहीं आने देता, जहरीली शराब से होने वाली मौतों पर आखिर शीशियों की बरामदगी पूरी निष्पक्षता व इमानदारी के साथ क्यों नहीं दिखाई जाती?
जब शीरे से निकलने वाले लदोई जो कि खाद के रूप में भी प्रयोग होता है उससे निकलने वाले अल्कोहल से आदमी की मौत हो सकती है फिर सरकारी सेंटरों पर अल्कोहल की मिलावट में कुतुबे बाजी क्यों की जाती है?”यहां समय-समय पर विभाग द्वारा छापेमारी क्यों नहीं की जाती है?
लेकिन अपने मीठे बोल के लिए जाने जा रहे आबकारी अधिकारी प्रगल्भ लवानियां बहुत ही चालाक किस्म के अधिकारी बताए जाने के साथ-साथ अपने नफे नुकसान का पैमाना नापने के भी माहिर खिलाड़ी बताए जाते हैं। अभी हाल में जिले में हुवे दारु/शराब ठेके के मामले में भी विभाग द्वारा खेल करने की चर्चा होती रही है जिसमें सही जानकारी न होने से तमाम लोगों को ठेका लेने से वंचित होना पड़ा था। इच्छुक लोगों को आबकारी अधिकारी द्वारा बताया गया था कि राजस्व में 40 प्रतिशत बढ़ोत्तरी होने के कारण पुराने लाइसेंस धारियों का ही रिनिवल किया जायेगा जबकि दूसरी तरफ सरकार से जुड़े लोगों को ठेका दिलाने के लिए गुपचुप तरीके से टेंडर भरवाए जाने की बात बताई जा रही है। सूत्र बताते हैं कि बची हुई दुकानों को सुनियोजित तरीके से सम्पर्क में रहे लोगों का लाटरी के माध्यम से ठेका कर दिया गया। अभी हाल ही में रेलवे पुलिस द्वारा दारु का जो बड़ा खेप पकड़ा गया था उसमें भी उक्त विभाग द्वारा संयुक्त वाहवाही लूटने का प्रयास करने की बात बताई जा रही है।
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