चुनाव के दौरान अपने अपने क्षेत्र मे वोटरो को तरह तरह से रिझाने वाले उम्मीदवार फिर जीत कर जनप्रतिनिधि कहलाने वाले एमपी, एमएलए, चेयरमैन जिला पंचायत व नगर पालिका तथा सभासद और प्रधान आदि कहां गायब हो गए है। या फिर इस मौके की तलाश मे है कि उनके घर के सामने हाथ फैला कर खड़े हो।
आज शहर हो या गांव मोहल्ला दिहाड़ी मजदूर, बीमार और बेवा व असहाय लोगो के सामने इस लाकडाऊन मे संकट खड़ा हो गया है। लेकिन जनता के मसीहा व अपने को हितैषी बताने वाले अधिकांश नेतागण खामोश तमाशाई बने हुए है।
जहां तक निधि से सरकार की सहायता करने का सवाल है। तो यह भी आवश्यक है लेकिन सब कुछ सरकार पर छोड देने से आप अपनी जिम्मेदारी से बच नही सकते है। क्योंकि अपने क्षेत्र, पडोस व पहचान के लोगो को नजरअंदाज कैसे कर सकते है।
लेकिन आज यही पोजीशन देखने को मिल रही है। उन्हे इस संकट की घड़ी मे भी मानवता व पुण्य का भी एहसास नही है। बल्कि मुहं चुराते घूम रहे है।
चुनाव के समय गली मोहल्ले और गांव गांव घूम कर घरो के चक्कर लगाने वाले वर्तमान के जनप्रतिनिधि खुद तो मौज काट रहे है और शायद इस संकट मे जनता को अकेला छोड़ दिया है। जरा सोचिए अगर यह चुनावी समय होता तो भी इनका यही रोल होता।
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