ठंढे मौसम की मार से बेहाल हो रहे किसान
बलरामपुर : करीब एक महीने से लगातार कोहरे व बदली के चलते दलहनी व तिलहनी फसले प्रभावित हो रही है। बरसात के कारण आलू व सरसों की फसल को व्यापक नुकसान हो चुका है। मौसम की मार से आम जन के साथ-साथ किसान भी बेहाल है। दलहनी व तिलहनी फसलों को बचाने की जुगत में किसान जुटे हुए हैं। अधिक बारिश होने पर सरसों, आलू, चना, मटर व मसूर की फसल बर्बाद होने की कगार पर पहुंच चुकी है। खेत में पानी लगने से आलू की फसल भी सड़ सकती है। तैयार सरसों की फसल बारिश के कारण खेतों में गिर गई है। चना, मसूर व मटर की फसल को अधिक बारिश के चलते नुकसान पहुंच रहा है।
लगातार हो रही बारिश व कोहरे तथा पाले के कारण अरहर, मटर, चना व मसूर की फसल में लगने वाले फूल फल बनने के पहले ही गिर जा रहे है। गेहूं के खेत में पानी भर जाने के कारण नुकसान पहुंच सकता है। धूप न मिलने के कारण पौधों का पोषण भी नहीं हो पा रहा है। सर्दी व कोहरे के कारण सरसों व अलसी की फसल में माहू की कीट का प्रकोप काफी बढ़ गया है। किसान उत्पादन की चिंता को लेकर परेशान हैं। फसलों को मौसम की मार से बचाने की चिंता किसानों को सता रही है। कोहरे व पाले तथा बारिश के कारण आलू की फसल भी प्रभावित हो रही है।
बरसात एवं कोहरे का फसलों पर पड़ने वाला कुप्रभाव
-फूलों का असमय झड़ जाना
-पोषण न होने के कारण फसल का विकास न होना
-सही अनुपात में फली का न लगना
-माहू व अन्य बीमारियां लगना
-पत्तियों का पीला होकर झड़ जाना
बलरामपुर जिले में दलहनी व तिलहनी फसलों का क्षेत्रफल
अरहर -18 हजार हेक्टेअर
सरसों -25 हजार हेक्टेअर
मटर -2110 हेक्टेअर
आलू -6 हजार हेक्टेअर
चना -490 हेक्टेअर
अलसी -20 हेक्टेअर
घटेगा उत्पादन
बरसात के कारण खेतों में गिरी सरसो की फसल।
किसान राकेश पाठक, पप्पू, बड़कन व मेवालाल ने बताया कि लगातार हो रही बारिश व घने कोहरे के चलते दलहनी तथा तिलहनी फसलों का विकास रुक गया है। फसल में ठीक तरह से फूल व फल भी नहीं लग रहा है। पत्तियां पीली पड़ रही हैं। इन लोगों ने बताया कि यदि मौसम का मिजाज नहीं बदला तो अरहर, मटर व आलू का उत्पादन करीब 40 फीसदी कम होगा।
खेतों में न जमा होने दे पानी
कृषि वैज्ञानिक डॉ. अंकित तिवारी ने किसानों को सुझाव देते हुए बताया कि बरसात अधिक होने पर खेतों में पानी न जमा होने दें। खेतों से जलनिकासी की समुचित व्यवस्था रखें। माहू कीट के प्रकोप से बचने के लिए फसलों की नियमित निगरानी रखें और साफ मौसम रहने पर डाईमेथोएट 30 ईसी या फैटोंथीऑन 50 ईसी को एक लीटर प्रति हेक्टेअर की दर से 700-800 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें।
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