वर्दी पहनकर आतंकियों की ड्यूटी बजाने वाले डीएसपी देविंदर सिंह से जुड़े सनसनीखेज खुलासों का सिलसिला जारी है. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के अनुसार देविंदर सिंह पहले से सर्विलांस (नज़र) पर थे. हमें इस बात की पक्का जानकारी थी कि वो आतंकियों को कश्मीर से लाने ले जाने में मदद कर रहे थे. जिस अधिकारी को देविंदर सिंह पर नज़र रखने के लिए कहा गया था उसने ही दक्षिण कश्मीर के डीआईजी अतुल गोयल को फ़ोन पर जानकारी दी कि देविंदर सिंह आतंकियों के साथ श्रीनगर पहुंच गए हैं और यहां से वो क़ाजीगुंड के रास्ते जम्मू जाएंगे. डीआईजी ने ख़ुद लीड किया और चेकप्वाइंट पर पहुंच गए.
जब उनकी गाड़ी रोकी गई तो देविंदर सिंह ने आतंकियों को अपने बॉडीगार्ड के तौर पर परिचय कराया लेकिन जब गाड़ी की तलाशी ली गई तो उसमें से 5 हैंड ग्रेनेड बरामद हुए. एक राइफ़ल भी गाड़ी से बरामद हुई. डीआईजी ने देविंदर की बात को नकारते हुए अपने आदमियों से उन्हें गिरफ़्तार करने को कहा. इस पर देविंदर सिंह ने कहा, सर ये गेम है. आप गेम ख़राब मत करो. इस बात पर डीआईजी गोयल ग़ुस्सा हो गए और उन्होंने डीएसपी देविंदर सिंह को एक थप्पड़ मारा और उन्हें पुलिस वैन में बिठाने का आदेश दिया.
देविंदर सिंह के पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए पुलिस अधिकारियों का कहना है कि उन्हें पैसों का बहुत लालच था और इसी लालच ने उन्हें ड्रग तस्करी, जबरन उगाही, कार चोरी और यहां तक कि आतंकियों तक की मदद करने के लिए मजबूर कर दिया. कई तो देविंदर सिंह पर पिछले साल पुलवामा में हुए आतंकी हमले में भी शामिल होने के आरोप लगा रहे हैं. उनका कहना है कि हमले के समय देविंदर सिंह पुलिस मुख्यालय में तैनात थे. पुलवामा हमले में 40 से ज़्यादा सुरक्षाकर्मी मारे गए थे. हालांकि देविंदर सिंह को पुलवामा हमले से जोड़ने का कोई पक्का सबूत नहीं है.
बता दें कि आतंकियों की मदद करने के आरोप में गिरफ़्तार जम्मू-कश्मीर के पुलिस अधिकारी देविंदर सिंह से अब एनआईए के अधिकारी पूछताछ करेंगे.एनआईए कश्मीर में आतंकियों की आर्थिक मदद करने के कई मामलों की पहले से ही छानबीन कर रही है. इस मामले में एनआईए की सबसे बड़ी चुनौती ये तय करना होगी कि आख़िर आतंकियों के साथ सहयोग करने के पीछे डीएसपी देविंदर सिंह रैना का असल मक़सद क्या हो सकता है.
वैसे भी, देविंदर सिंह की गिरफ़्तारी के बाद कई सवाल उभर कर सामने आ रहे हैं. अगर सिंह का रिकॉर्ड ख़राब रहा है तो फिर उनको आउट ऑफ़ टर्न प्रमोशन क्यों दिया गया? अगर उनके ख़िलाफ़ जांच चल रही थी तो फिर उन्हें कई संवेदनशील जगहों पर तैनात क्यों किया गया? अगर पुलिस को ये बात पता थी कि वो लालची हैं और आसानी से सौदा कर सकते हैं तो फिर 2003 में उन्हें यूएन शांति सेना के साथ पूर्वी यूरोप क्यों भेजा गया?
अगर बड़े अधिकारियों को उनकी गतिविधियों की जानकारी थी तो फिर उन्हें रक्षा मंत्रालय के अधीन आने वाले एयरपोर्ट पर एंटी हाईजैकिंग विंग में क्यों तैनात किया गया? अगर सबको पता था कि वो एक ख़राब पुलिसकर्मी हैं तो फिर पिछले साल उन्हें प्रदेश का सबसे बड़ा बहादुरी सम्मान शेर-ए-कश्मीर पुलिस मेडल से कैसे सम्मानित किया गया? और अगर उन्होंने सही में कहा है कि वो कोई गेम को अंजाम देने में लगे थे तो फिर इसकी जांच होनी चाहिए कि पूरा खेल क्या था और इस खेल में और कौन-कौन शामिल है?
देविंदर सिंह की गिरफ़्तारी से पहले डीआईजी ने जड़ा थप्पड़, जानिए क्या था कारण
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