बहराइच। गत 6 मई को जनपद में पांचवें चरण में हुए मतदान से पूर्व भले ही जोर शोर से करवाए गए मतदाता जागरूकता अभियान का कोई खास असर जिले में न देखा गया हो लेकिन मतों के कम प्रतिशत ने जहां अच्छे-अच्छे राजनीतिक गणितज्ञों के समीकरणों को ही उल्झा दिया है वहीं कुछ लोग तो पूर्व में कमांडो कमल किशोर की तरह किसी प्रत्याशी के जीतने की उम्मीद भी जता रहे हैं।
सियासत के नखरा नाटक हिंदू व कथित हिंदू के बीच उत्तर प्रदेश की राजनीति में जमाने के बाद सपा बसपा गठबंधन में जिले की सियासत के साथ अंतिम दौड़ तक प्रत्याशी नामांकन प्रक्रिया को रद्द कराने की राजनीति के बीच 23 मई को होने वाले फैसले के पूर्व प्रत्याशियों के जीतने और हारने के साथ-साथ उन्हें जिताने और हराने की चर्चाओं से अभी भी जिले के मोहल्ले व गलियारे सियासत से अछूते नहीं हैं बात 56 लोकसभा सुरक्षित सीट की करें तो भाजपा, सपा, कांग्रेस व सभी प्रत्याशियों के साथ साथ शिवसेना भी अपने आपको रनरअप होने का दावा ठोक रही है। शिवसेना प्रत्याशिनी श्रीमती रिंकू साहनी के पति रोशनलाल नाविक दलित,पिछड़े,मुस्लिम,व सामान्य वोटरों के साथ साथ अन्य पार्टी विरोधी वोटों के दम पर शिव सेना को रनर अप मान रहे हैं। उनका कहना है कि जिसे लोग जीता हुआ प्रत्याशी मान रहे हैं ऐसे ही लोग मेरी पत्नी को अपने रास्ते का काँटा समझकर नामांकन को निरस्त कराने का कुत्सित प्रयास तक कर चुके हैं। श्री नाविक का कहना है कि आज की गंदी व दोहरी सियासत में जब पार्टी के लोग ही अपनी पार्टी को हराने का घिनौना खेल कर सकते हैं तो फिर मेरे जीतने की उम्मीद से भी इंकार नहीं किया जा सकता।
शिवसेना को रनर अप मानने वाले श्री नाविक बड़े बड़े सूरमाओं को पटखनी देने की बात कहते हुवे वे सभी पार्टियों के प्रत्याशियों के दलित व मुस्लिम वोटों की निर्भरता को उनकी सबसे बड़ी कमजोरी भी मानते हैं।
उनका कहना है कि मैं तो उस क्रम में जीरो से शुरुआत कर रहा हूं और शिव सेना की ओर मतदाताओं का आकर्षण सबके लिए चौंकाने वाला परिणाम ही साबित होगा लगभग 18,00000 से ऊपर मतदाताओं के बीच 56 लोकसभा सुरक्षित सीट के मतों के घटे हुए प्रतिशत को भी वे अपना अचूक हथियार मान रहे हैं। श्री नाविक लगभग 3,90,000 निषाद बिरादरी,दलित व मुस्लिम वोटों के सहारे हुए चुनाव को न सिर्फअपने पक्ष में मान रहे हैं बल्कि पूरे चुनाव के दौरान मीडिया को भी भ्रामक खबर फैलाने का दोषी मानते हुए पेड न्यूज़ चैनलों पर दिखाने की बात बताते हैं। उनका मत है कि 2007 व उससे पूर्व हुए लोकसभा चुनावों में किसी भी जीते हुए प्रत्याशी का दोबारा 56 लोकसभा सीट पर विजयी न होना भी शिवसेना के जीतने का एक आधार बन सकता है।
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