बहराइच 18 जनवरी। निराश्रित/बेसहारा गोवंश को आश्रय उपलब्ध कराये जाने, आश्रय स्थल पर रखे गये गोवंश हेतु भरण-पोषण की व्यवस्था, संरक्षित गोवंश को विभिन्न बीमारियों से बचाव हेतु टीकाकरण एवं समुचित चिकित्सा व्यवस्था तथा नर गोवंश का बध्याकरण कराये जाने, संरक्षित मादा गोवंश को प्रजनन सुविधा उपलब्ध कराये जाने, गोवंश से उत्पादित दूध, गोबर, कम्पोस्ट आदि के विक्रय व्यवस्था से आश्रय स्थल को वित्तीय रूप से स्वालम्बी बनाकर जनमानस को निराश्रित/बेसहारा गोवंश की समस्या से छुटकारा दिलाये जाने के उद्देश्य से शासन द्वारा अस्थायी गोवंश आश्रय स्थल की स्थापना व संचालन नीति का प्रख्यापन किया गया है।
उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश पशुधन संख्या के दृष्टिकोण से देश का सबसे बड़ा प्रदेश है। 19वीं पशुगणना 2012 के अनुसार कुल 501.82 लाख गोवंशीय एवं महिषवंशीय पशुओं में से 195.57 लाख गोवंशीय पशु हैं। कृषि कार्य में मशीनीकरण के कारण स्वदेशी/अवर्णित गोवंश के नर वत्स का उपयोग कृषि कार्य में किये जाने की परिपाटी प्रदेश से लगभग समाप्त हो गयी है। विदेशी नस्ल के नर वत्स का उपयोग उनमें डील (हम्प) नहीं होने के कारण कृषि कार्य में नहीं होता है इस कारण वर्तमान में गोवंशीय नर वत्स अनुपयोगी होते जा रहे हैं। जिनके कारण इन नर गोवंश को पशु स्वामी बेसहारा छोड़ देते हैं।
पशु स्वामियों द्वारा बेसहारा छोड़े गये निराश्रित गोवंश अनियंत्रित प्रजनन द्वारा अनुपयोगी/कम उत्पादकता के गोवंश की उत्पत्ति करते हैं जो निराश्रित पशुओं की संख्या में बढ़ोत्तरी करते हैं। प्रदेश में लगातार बढ़ रहे निराश्रित/बेसहारा गोवंश (नर एवं मादा) की संख्या में कमी किया जाना आवश्यक है। इसके लिए राज्य सरकार द्वारा विभिन्न योजनाएं चलाकर निराश्रित एवं बेससहारा पशुओं की समस्या के निदान एवं संख्या में कमी लाने का लगातार प्रयास कर रही है तथापि इस ज्वलन्त समस्या के निराकरण हेतु उत्तर प्रदेश के समस्त ग्रामीण व शहरी स्थानीय निकायों (यथा ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत, जिला पंचायत, नगर पंचायत व नगर पालिका) में अस्थायी गोवंश आश्रय स्थल की स्थापना व संचालन नीति प्रख्यापित की गयी है।
अस्थायी गोवंश आश्रय स्थलों की स्थापना, क्रियान्वयन, संचालन व प्रबन्धन के अनुश्रवण हेतु प्रदेश स्तर पर मुख्य सचिव, उत्तर प्रदेश शासन, मण्डल स्तर पर मण्डलायुक्त, जनपद स्तर पर जिलाधिकारी, तहसील स्तर पर उप जिलाधिकारी तथा ब्लाक स्तर पर खण्ड विकास अधिकारियों की अध्यक्षता में अनुश्रवण मूल्यांकन एवं समीक्षा समिति का गठन किया गया है। यह समिति अस्थायी गोवंश आश्रय स्थलों हेतु भूमि चिन्हाॅकन व भूमि की उपलब्धता, भूमि को उपयोग योग्य बनाना, आश्रय स्थल पर वृक्षारोपण, जल, जारा, ऊर्जा/प्रकाश, पशुओं के इलाज, सुरक्षा व अन्य व्यवस्था की स्थापना, क्रियान्वयन, संचालन व प्रबन्धन के लिए जिम्मेदार होगी।
प्रख्यापित नीति में दी गयी व्यवस्था के तहत प्रदेश के नगरीय एवं ग्रामीण क्षेत्रों में नगर निकाय/स्थानीय निकाय क्षेत्रों में काॅज़ी हाउस का पुनर्जीवीकरण कराया जायेगा। गायों का दूध निकाल कर उन्हें एवं उनके गौवत्स को छोड़ने वाले कृषकों/पशुपालकों का चिन्हाॅकन ग्राम स्तरीय विभागीय कार्मिकों (यथा-राजस्व विभाग के लेखपाल, पुलिस विभाग के चैकीदार, ग्राम विकास के ग्राम विकास अधिकारी, पंचायती राज विभाग के ग्राम पंचायत अधिकारी) के माध्यम से किया जायेगा। चिन्हित गौवंश को टैग भी किया जायेगा तथा इनका ग्राम पंचायत स्तर पर अभिलेखीकरण भी किया जायेगा। इस सम्बन्ध में दी गयी व्यवस्था के तहत ऐसे पशुपालकों/कृषकों के अपने पालतू पशु सड़कों व सार्वजनिक स्थलों तथा अन्य व्यक्तियों की निजी भूमि पर संचरण हेतु छोड़ा जाता है तो इस दृष्टिकोण से स्थानीय पुलिस प्रशासन/जिला प्रशासन तथा नगर प्रशासन द्वारा उचित आर्थिक दण्डरोपण की कार्यवाही सुसंगत अधिनियम के अन्तर्गत की जायेगी।
अस्थायी गोवंश आश्रय स्थलों के संचालन व प्रबन्धन को वित्तीय रूप से स्वावलम्बी बनाने के लिए उत्तर प्रदेश राज्य जैव ऊर्जा विकास बोर्ड-नियोजन विभाग, खादी एवं ग्रामोद्योग विभाग, सूक्ष्म, लघु मध्यम उद्यम विभाग, स्किल डेवलपमेन्ट मिशन, ग्राम्य विकास विभाग, उद्यान विभाग के सहयोग से बायोगैस, कम्पोस्ट/वर्मी कम्पोस्ट, पंचगव्य आधारित बौषधियों/उत्पादों यथा साबुन, अगरबत्ती, मच्छर भगाने की कायल, गोनाइल (गोमूत्र से बनी फिनायल) औषधियों आदि का उत्पादन एवं विक्रय की व्यवस्था की जायेगी।
गोबर एवं गोमूत्र आधारित जैविक कृषि एवं बागवानी, गोशाला के गोबर व गोमूत्र से बने खाद व कीटनाशक, गोबर से बने गमले, गोबर से बने लट्ठों का शमशान घाट में व सर्दियों में अलाव जलाने, उद्यमियों को प्रेरित कर गोबर-गोमूत्र के सदुपयोग से बड़े बायोगैस/सी.एन.जी. प्लाण्ट, शून्य बजट पर गो-आधारित प्राकृतिक कृषि पद्धति को अपनाकर गोबर एवं गोमूत्र से प्राकृतिक तरीेके से जीवामृत, घन जीवामृत, बीजामृत तथा कीटनाशक का निर्माण करके भी गोवंश आश्रय स्थलों को अतिरिक्त आय प्राप्त होगी जिससे वे स्वावलम्बी हो सकेंगे।
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