बहराइच 27 अक्टूबर। जनपद में आम की अच्छी उत्पादकता सुनिश्चित करने के दृष्टिकोण से यह आवश्यक है कि आम की फसल का सम-सामयिक कीटो से बचाने हेतु उचित समय पर प्रबन्धन किया जाय। माह नवम्बर एवं दिसम्बर अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इस माह में गुजिया एवं मिज कीट का प्रकोप प्रारम्भ होता है जिससे फसल को काफी क्षति पहुॅचती है। जिला उद्यान अधिकारी पारस नाथ ने बागवानी को कीट के प्रकार एवं प्रकोप के नियंत्रण हेतु सलाह देते हुए बताया कि गुजिया कीट के शिशु जमीन से निकल कर पेड़ों पर चढ़ते हैं और मुलायम पत्तियाॅं मंजरियों एवं फलों से रस चूसकर क्षति पहॅुचाते हैं। इसके कीट 1-2 मिमी. लम्बे एवं हल्के गुलाबी रंग के चपटे तथा मादा वयस्क कीट सफेद रंग के पंखहीन एवं चपटे होते हैं। इस कीट के नियंत्रण के लिए बागों की गहरी जुताई/गुड़ाई की जाय तथा शिशु कीट को पेड़ांे पर चढ़ने से रोकने के लिए माह नवम्बर-दिसम्बर में आम के पेड़ के मुख्य तने पर भूमि से 50-60 से.मी. की उॅचाई पर 400 गेज की पालीथीन शीट की 50 सेमी चैड़ी पट्टी को तने के चारो ओर लपेट कर ऊपर व नीचे सुतली से बांध कर पालीथीन शीट के ऊपरी व निचले हिस्से पर ग्रीस लगा देना चाहिये। जिससे कीट पेड़ों के ऊपर न चढ़ सकें। इसके अतिरिक्त शिशुआंे केा जमीन पर मारने के लिए दिसम्बर के अंंितम या जनवरी के प्रथम सप्ताह में 15-15 दिन के अन्तर पर दो बार क्लोरपाइरीफाॅस (15 प्रतिशत) चूर्ण 250 ग्राम प्रति पेड़ के हिसाब से तने के चारांे ओर बुरकाव करना चाहिये। अधिक प्रकोप की स्थिति में यदि कीट पेड़ांे पर चढ़ जाते हैं तो ऐसी दशा में मोनोक्रोटोफाॅस 36 ई.सी. 10 मिली. अथवा डायमेथोएट 30 ई.सी. 2.00 मिली. दवा को प्रति ली. पानी में घोल बनाकर आवश्यकतानुसार छिड़काव करें। इसी प्रकार आम के बौर में लगने वाले मिज कीट मंजरिया, तुरन्त बने फूलों एवं फली तथा बाद में मुलायम कोपलों में अण्डे देती हैं। जिसकी सूड़ी अन्दर ही अन्दर खाकर क्षति पहॅुचाती है। इस कीट के नियंत्रण के लिए यह आवश्यक है कि बागों की जुताई/गुड़ाई की जाय तथा समय से कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करना चाहिये। इसके लिए फेनिट्राथियान 50 ई.सी. 1.00 मिली. अथवा डायजिनान 20 ई.सी. 2.00 मिली. अथवा डायमेथोएट 30 ई.सी. 1.5 मिली. दवा प्रति लीटर पानी में घोलकर बौर निकलने की अवस्था पर एक छिड़काव करने की सलाह दी है।
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