(रिपोर्ट:रुद्र आदित्य ठाकुर(बहराइच: घाघरा नदी के कटान पीडित ंअपने हाथों ही अपनी तैयार होने के कगार पर पहुंच रही धान व गन्ना की हरी भरी फसल काट रहे है। इसे महज अब जानवरों के चारे के रूप में प्रयोग में लाया जाएगा। कैसरगंज तहसील के ग्राम मझारा तौकली, 11 सौ रेती व कई अन्य आस पास के गांव के सैंकड़ों गांव के किसानों के दुखदर्द की यह कहानी जिम्मेदारों की उपेक्षा का शिकार है। बाढ का पानी घटने के बाद अब इन गांवों में कटान तेज हो गई है। नदी की प्रचंड धारा हरे भरे खेतों को अपने में समाहित करने के साथ आबाद बस्तियों को भी लील चुकी है। अब तक लगभग 1500 बीघे जमीन नदी की धारा में समा चुकी है। दो गांवों का तो नामों निशान मिट चुका है। कटान पीडित आस पास के गांवों में शरणार्थी बनकर दिन काट रहे है। उक्त
गांव निवासी
मोहन जोखन विर्धचंद बिरेंदर राम सरन पप्पू दुलारे राधेश्याम ओमप्रकाश सुरेश राजेश राजा भीम रामा ननन्द मंटू आदि की बीते 24 घण्टे में दो एकड़ गन्ने धान की फसल घाघरा में समा गई है
इन ग्रामीणों के मुताबिक बाढ व कटान पीडितों की मदद के जैसे दावे प्रशासन द्वारा किए जा रहे हैं वैसा यहां कुछ भी नहीं है। न तो लोगों को तिरपाल मुहैया कराया गया है और न खाने पीने का सामान व दवाएं ही बांटी गई हैं। ऐसे में मुश्किलें दिन प्रतिदिन बढती जा रही हैं। पालतू जानवरों के लिए चारे की जरूरत है उधर खेत धारा में समाते जा रहे हैं ऐसे में हरी फसल काटकर चारे का इंतजाम ही करने का विकल्प बचा है। ग्रामीण बताते हैं कि जल्द राहत सहायता पहुंचाने के इंतजाम नहीं किए गए तो स्थित और भयावह हो सकती है।
व्हाट्सएप पर शेयर करें
No Comments






