जय जवान जय किसान का नारा सन 1965 में लाल बहादुर शात्री ने उस समय दिया था जब भारत तथा पडोसी देश पकिस्तान के मध्य युद्ध अपनी चरम सीमा पर था। उस समय जहाँ एक तरफ देश के जवानों तथा रक्षकों की ताकत बढ़ाने का लक्ष्य सर्वोपरि था, तो दूसरी ओर देश की आर्थिक व्यवस्था को सुधारना भी प्रथम लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु अनिवार्य था। इसी स्थिति को समझते हुए आदरणीय शास्त्री जी ने “जय जवान जय किसान” रुपी नारा दिया जिसने भारत के जवानों को देश की रक्षा तथा भारत के किसानों को एकजुट होकर देश की आर्थिक व्यवस्था में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए प्रोत्साहित किया। शास्त्री जी के अनुसार अगर कोई राष्ट्र आर्थिक रूप से तथा रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर होगा तो कोई भी विश्व शक्ति उसका कुछ नही बिगाड़ सकेगी। और शास्त्री जी की यही दूरदर्शिता सटीक साबित हुई तथा भारत के जवानों ने पकिस्तान को हार का मुँह दिखाया तथा किसानो ने देश की आर्थिक व्यवस्था को सुधारा
जय जवान जय किसान” नारा जवानों की शत्रुओं पर विजय तथा किसानों की भूख व आर्थिक व्यवस्था पर विजय के लिए आह्वान करता है ये दोनों ही भारत जैसे किसी भी विकासशील देश की रीढ़ की हड्डी माने जाते हैं परन्तु आज उसी रीढ़ की हड्डी को खोखला करने का प्रयास किया जा रहा है। देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने वाले किसानो का बुरा हाल है आये दिन किसान आत्म हत्या कर रहे है और जिम्मेदार सैर सपाटा करने में लगे है,आज भी भूखे भेड़ियों की तरह किसानो को नोचा जा रहा है पर किसी को उनकी फ़िक्र नहीं है। सरकार ने तो किसानो को गेंहू का मूल्य १७३५ रुपया देने की घोषणा की परन्तु अनेको किसान ऐसे है जिन्हें १७३५ की जगह १५०० सौ रुपये प्रति कुंतल ही मिल रहा है। क्या ये कहना गलत होगा कि किसानो को आत्महत्या करने पर विवश किया जा रहा है? अधिकारी व जनप्रतिनिधियों को मनो हराम की खाने की आदत पड़ गई है शायद इसी लिए औचक निरक्षण के नाम पर दिखावा किया जाता है। प्रदेश के किसी भी गाँव में देखा जा सकता है कि अनेको किसानो को मानक अनुसार मूल्य नहीं दिया गया है।
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