एक ओर जहां मातृत्व योजना को हवा दे शिशु दर में कमी लाने और प्रसूताओं को बेहतर से बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के लिये नई-नई योजनाएँ चला कर सराकरें लाखों करोड़ों खर्च कर रही हैं वहीं दूसरी ओर बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए सराकरी अस्पताल में तैनात सरकारी डॉक्टर साहिबा हैं कि अपने ही टशन में हैं और अपने मरीजों की पीड़ा देख पल-पल दिमागी तनाव का शिकार हो रहे तीमारदारों पर अपना रौब गालिब कर रही हैं। प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार भले ही सूबे में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने कब कितने भी दावे क्यों न कर ले भले ही ग्रामीण इलाकों में प्रसूताओं को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए आशाओं पर जिम्मेदारियों का बोझ कितना भी क्यों न लाद दे लेकिन जब प्रसूताओं का इलाज करने वाली डॉक्टर साहिबा ने चिकित्सालय में अपना सिक्का चलाने की ठान ली हो तो भला किसकी मजाल है कि वह डॉक्टर साहिबा से एक आध सवाल कर ले। अभी तक तो आपने देखा इस सुना होगा कि किसी मरीज की हालत जब ज़्यादा गम्भीर होती है तब उसे जिला अस्पताल से राजधानी रेफर किया जाता है लेकिन आज हम आपको एक ऐसी काली हकीकत से रूबरू करवाने जा रहे हैं जहां एक प्रसूता के परिजनों ने जिला महिला अस्पताल में तैनात डॉक्टर साहिबा से प्रसूता की हालत पर सवाल कर लिए तो डॉक्टर साहिबा का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया और उन्होंने दो टूक धमकी भी दे डाली की इसकी वजह से आज तुम्हारा मरीज रेफर हो जायेगा। अरे डॉक्टर साहिबा यह ग्रामीण क्षेत्र की अनपढ़ तीमारदार है इन्हें बात करने का सलीका नहीं हज लेकिन आप तो डॉक्टर हैं जिन्हें भगवान कहा जाता है। अगर किसी तीमारदार ने अपसे थोड़ा अजीब से लहज़े में बात कर भी ली तो इसका मतलब यह नहीं कि आप उसके मरीज को ही रेफर कर दें। योगी जी आप खुद देख लीजिए अपने इस बीमार जिला महिला अस्पताल का हाल जहां मरीजों को उनकी गम्भीर हालत पर नहीं बल्कि गांव में रहने वाले अनपढ़ तीमारदारों के डॉक्टर साहिब से अपने मरीज के बाबत सवाल पूछने पर रेफर कर देने की धमकी दी जाती है। जिले की स्वास्थ्य सेवाएं पिछले कई दिनों से सवालों के घेरे में हैं। 80 से ज़्यादा मौतों के बाद से जिला अस्पताल की अव्यस्थाओं व लापरवाहीयों ले खिलाफ सांसद तक ने जिला अस्पताल प्रांगण में बैठ धरना तक दिया लेकिन नतीजा अब भी सिफर का सिफर ही दिखता नज़र आ रहा है। अगर हम बात करें महिला जिला चिकित्सालय की तो यहाँ का हाल तो अब और भी बत्तर होता चला जा रहा है जहां संवेदनाओं की कोई अहमियत ही नहीं रह गयी है। योगी सरकार के इस अस्पताल में यदि आपको अपने मरीज का इलाज कराना है तो पहले जाइये किसी स्कूल में अपना दाखिला करा कर बोलने का सलीका सीख कर आइये फिर अपने तड़पते मरीज को इस जिला चिकित्सालय में भर्ती कराइये वरना अगर गलती से भी आपने जिला अस्पताल में तैनात डॉक्टर साहिब से तनिक भी ऊंची आवाज में बात कर ली या उनसे कोई सवाल कर लिया तो आपके मरीज को तत्काल रेफर कर दिए जाने का तुगलकी फरमान डॉक्टर साहिब की ओर से जारी कर दिया जाएगा और मजबूरन आपको अपने मरीज की बिगड़ी हालत के कारण नहीं बल्कि डॉक्टर साहिब से बात करने और उनसे सवाल करने पर राजधानी के अस्पतालों में परिक्रमा करनी पड़ सकती है। कहते हैं कि डॉक्टर भगवान का रूप होता है लेकिन ज़रा कल्पना कीजिये कि जब धरती का भगवान कहे जाने वाले डॉक्टर इनसानियत का पाठ भूल अपने अहेम(ईगो) में आ जायें तो इन्हें आप क्या कहेंगे। जिस अस्पताल में पहुंच डॉक्टर साहिबा के मुख से संतावना वाली दो चार बातें सुन ही मरीजों और तीमारदारों के माथे की चिंता की लकीरें मिट सी जाती हैं उसी अस्पताल में तैनात डॉक्टर साहिबा की बातें सुन मरीजों और तीमारदारों में एक तर से त्राहिमाम सा मचा रहता है। अब तो हालत यह कि अपने मरीज की गम्भीर होती हालत के बारे में भी डॉक्टर साहिबा से बताने में बेचारे तीमारदारों को सोचना पड़ रहा है कि कहीं डॉक्टर साहिब का पारा हाई न हो जाये।
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