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Wednesday, March 19, 2025 1:09:17 AM

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फर्जी आंकड़ों के सहारे की जा रही है जिले को स्वच्छ बनाने की कोशिश,बेलगाम अधिकारियों को नहीं रहा किसी का डर

फर्जी आंकड़ों के सहारे की जा रही है जिले को स्वच्छ बनाने की कोशिश,बेलगाम अधिकारियों को नहीं रहा किसी का डर

(रिपोर्ट:0पी0श्रीवास्तव)
बहराइच। केंद्र व प्रदेश सरकार की अति महत्वाकांक्षी योजनाओं के अंतर्गत जहाँ स्वच्छ व स्वस्थ भारत को एक मिशन की तरह लेकर आगामी 2 अक्टूबर सन दो हजार उन्नीस में गांधी जी (बापू) को देने की कवायद में योजनाओं को लेकर पूरे देश में कोहराम मचा हुआ है वहीं दूसरी ओर शासन को खुश करने की नियत से जिले में फर्जी आंकड़ों के सहारे सरकारी दस्तावेजों में कोरम पूरा करने का दिखावा कर सच्चाई के धरातल पर सौतेला व्यवहार किया जा रहा है। एक ओर जहाँ केंद्र व प्रदेश सरकार की योजनाओं को धरातल पर उतारने को लेकर जिला अधिकारी माला श्रीवास्तव अपर जिलाधिकारी राम सुरेश वर्मा पूरी गंभीरता के साथ लगातार बैठके कर धरातल की सच्चाई को परखने में कोई कोताही बरतना नहीं चाहते वही उनके अधीनस्थ चालाक अधिकारी और कर्मचारी चंद सुनियोजित जगहों का स्थानीय परीक्षण करवा कर परोक्ष रूप से आगामी लोकसभा चुनाव को प्रभावित करने का प्रयास करते भी नजर आ रहे हैं। यही नहीं अगर हम बाद ग्रामीण भारत के स्वच्छ मिशन की करें तो ओडीएफ के लिए चिन्हित किये गए 1386 राजस्व ग्राम पंचायत क्षेत्रों में लगभग 1097 ग्रामो के ओडीएफ मुक्त का ढिंढोरा पीटने वाले अधिकारियों को योजनाओं में कोई खामी नजर नहीं आ रही है। बीडीओ,एडीओ,सेक्रेटरी व प्रधान आदि को सब कुछ चाक चौबंद नजर आ रहा है। जिले से आ रहे तमाम शिकायतों के बावजूद अपनी जिम्मेदारियों को निभाने की जगह वह अधिकारी यह कहते पाए जाते हैं कि मन करता है सब कुछ छोड़ कर यहाँ से चला जाऊं। जिसका सबसे बड़ा कारण ओडीएफ घोषित ग्रामों के विकास खंड वार समीक्षा के दौरान बलहा, जरवल, कैसरगंज, महसी, मिहीपुरवा, नवाबगंज, फखरपुर,शिवपुर, तेजवापुर,विशेश्वरगंज,आदि क्षेत्रों में जिलाधिकारी के परीक्षण में कार्यों का अवशेष रहना भी बताया जा रहा है। जिम्मेदार अधिकारियों के द्वारा मामले में भौतिक सत्यापन हेतु फर्जी आंकड़ों का सहारा लेकर जिलाप्रशासन के साथ-साथ शासन को भी गुमराह कर आवाम के कॉलेजों से निकल रही बददुवाओं की फिल्टर धारा से आटा सान कर रोटी सेकने का कार्य किया जा रहा हैं। बासी रोटी की तरह सूखे ग्राम वासियों के चेहरों को देख कर ही धरातल पर वास्तविक परिस्थितियों का अंदाजा लगाया जा सकता है। और ऐसा तब हो रहा है जब आंकड़ों के सहारे ही प्रधानमंत्री 2 अक्टूबर सन दो हजार 19 तक गांधी जी को स्वच्छ एवं स्वस्थ भारत देने का सपना पाले बैठे हैं। कुछ देर के लिए अगर आंकड़ों की ही बात मान ली जाए तो सन 2014 में शुरू हुए स्वच्छता के अभियानों के अंतर्गत सन 2015 के स्वच्छता सर्वेक्षण में जहां इंदौर को भारत के पहले स्वच्छ शहर का तमंगा पहनने का गौरव प्राप्त हुआ था, वही सन 2014 में घर से बाहर शौच कर रहे 55 करोड़ लोगों के सापेक्ष में 35 करोड़ों की कमी की बात भी बताई जा रही है,जिसे 20000 अतिरिक्त स्वयंसेवकों के माध्यम से इस कमी को भी दूर करने का बीड़ा उठाया गया है। और यदि इसी क्रम में आवास को भी जोड़ दिया जाय तो जहाँ अपात्रों को आवास मिलने की शिकायतें आ रही हैं वहीँ पात्रों का धन निर्गत होने के बाद भी जिम्मेदारों द्वारा उन्हें आवास न देकर प्रताड़ित किया जा रहा है। लेकिन इतना सब होने के बाद भी केंद्र व प्रदेश सरकार के अधीनस्थ सांसदों,विधायकों के ढुलमुल रवैये व वेतन से ज्यादा भत्ता का सुख डकारने के बाद भी जनहित जैसे मुद्दों पर भी अधिकारियों को बेलगाम छोड़ आंकड़ों की बाजीगारी करते ही नजर आते हैं। लेकिन अगर आंकड़ों पर ही गौर किया जाए तो हाल ही में भारत ने ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल की करप्शन परशेप्शन की इंडेक्स में फ़ोर्ब्स की सूची में एशिया में पाकिस्तान जैसे भ्रष्ट देश को भी पीछे छोड़ कर भारत के गोल्ड मेडल पहनने के पीछे के आंकड़ो पर भी सरकार को गौर करना ही चाहिए,क्योंकि आंकडों में ही जिस देश में घूस लेने की दर 69% बताई जा रही हो उस देश के जिलों के सांसदों, विधायको, अधिकारियों, समाजसेवियों, प्रधानो, सभासदो व मीडिया की क्या भूमिका होगी इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। हालांकि आंकड़ों के खेल में सन 2012 के सर्वेक्षण के अनुसार
जिन लोगों के पास शौचालय नहीं थे वही बनने थे और उसमें से भी परिवारों की संख्या बढ़ने, परिवार के विभाजन व पिछले छः वर्षों में सन 2018 तक बढ़ी आबादी में भी आंकड़ों की ही बाजीगरी दिखाई जा रही है। जबकि नगरीय छेत्रों में 500 मीटर की परिधि में सार्वजनिक शौचालय होने की दशा में उसे ओडीएफ मान लिया जाता है। और यहाँ भी आंकड़ों की ही बाजीगरी नजर आती है। और ऐसे में जिन पात्रों का नाम सूची में होने के बाद भी ढूंढ़े नहीं मिल रहे हैं उनकी तो मानो बात ही करना बेकार है। फिर न जाने किस आधार पर पंचायती राज राज्य मंत्री भूपेंद्र सिंह छाती ठोंककर यह कह रहे है कि प्रदेश के 90 प्रतिशत से अधिक परिवारों के पास शौचालय हो गए हैं। जबकि योजनाओं में ज्यादातर लापरवाहियां प्रधानमन्त्री,मुख्यमंत्री के अधीनस्थ मंत्रियों, सांसदों,व विधायकों में ही देखी जा रही है।

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