बहराइच 11 अक्टूबर। फातहे कर्बला हज़रत ईमाम हुसैन के बिसवाॅ के मौके पर इमाम बारगाह अकबरपुरा बहराइच मंगलवार की देर शाम मजलिस का आयोजन किया गया। जिसे ईमाम-ए-जमात ईमामिया मस्जिद अकबरपुरा मौलाना सैय्यद मुनतसिर हुसैन रिज़वी ने खिताब किया। इससे पूर्व नौशाद अली, समर अब्बास व अहसन हुसैन ने सोज़ख्वानी की। इस अवसर पर शायरेे अहलेबैत अंजुम जै़दी ने अपनी काव्य रचनाएं प्रस्तुत की। मजलिस के बाद इमाम बारगाह अकबरपुरा से अलम का जुलूस बरामद हुआ। मजलिस के दौरान शायरेे अहलेबैत अंजुम जै़दी के शेरों ‘‘यज़ीद से न तकाबुल हुसैन का कीजिये, कहाॅ अज़ाब के काॅटे कहाॅ सवाब के फूल’’ व ‘‘सवाल-ए-बयते फासिक को मौत सूंघ गयी, महक रहे हैं हुसैन आपके जवाब के फूल,, व ‘‘निसार मैं अली असगर की मुस्कराहट पर, सितम के सामने मकसद को लाज़वाल किया’’ व ‘‘उलझ के रह गया तीर-ओ-कमान में क़ातिल, लबों की हल्की सी जुम्बिश ने यह कमाल किया‘‘ को खूब सराहा गया। मजलिस को खिताब करते हुए मौलाना सैय्यद मुनतसिर हुसैन रिज़वी ने कहा कि पैगम्बर हज़रत मोहम्मद सल. का फरमान है कि (शुजा) वीर, बहादुर, शूरवीर बनों। मौलाना ने कहा कि हदीस-ए-पैग्बर की रोशनी में बेगुनाहों, मज़लूमों, बेखता लोगों के खून बहाने, उनमें दहशत पैदा करने, उन्हें किसी न किसी बहाने से तंग करने को बहादुरी नहीं बल्कि कायर कहा गया है। उन्होंने कहा कि इस्लाम ने जहाॅ बहादुरी को पसन्द किया है वहीं किसी प्रकार की दहशतगर्दी व जर्ब की सख्त मज़म्मत की है। मौलाना ने कहा कि समाज में अम्नो-अमान की बहाली, मज़लूमों की हर मुमकिन मदद, प्यासे को पानी पिलाने, भूखों के लिए रोटी की व्यवस्था करने, बीमार के इलाज, समतामूलक समाज की स्थापना, गरीब व मज़लूमों को उनके अधिकार दिलाने तथा एक आदर्श समाज की स्थापना के लिए किये गये सभी प्रयासों को बहादुरी कहा गया है। मौलाना ने कहा कि बहादुरी जैसे शब्द के अर्थ भी अलग-अलग परिस्थितियों में बदल जाते हैं। उन्होंने कहा कि कर्बला के तपते रेत के मैदान में तीन दिन की भूख व प्यास के बीच ईमाम हुसैन व उनके साथियों ने जिस (सब्र) धैर्य का परिचय दिया है उसे बहादुरी की चरम पराकाष्ठा कहते हैं। उन्होंने कहा कि कर्बला जैसी मिसाल न आज से पहले कोई थी और आने वाले वक्त में होगी। मजलिस के पश्चात ईमाम-बारगाह अकबरपुरा से अलम का जुलूस बरामद हुआ। जिसमें नौशद अली, फौक, फिरोज़ हुसैन, हसन अब्बास, मोहसिन अब्बास, मोनिस अब्बास, तबरेज़ हुसैन इत्यादि ने नौहाख्वानी और विभिन्न मातमी दस्तों ने मातम किया। अलम का जुलूस अपने कदीमी रास्तों से होता हुआ वापस आकर इमामिया अकबरपुरा में समाप्त हुआ। आखिर में देश की खुशहाली व अम्नो-अमान की दुआएॅ खैर के साथ कार्यक्रम का समापन किया गया।
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